कई
सालों से
कोई
मिलने आता
रहे हमेशा
बिना
नागा किये
निश्चित समय पर
एक सपाट
चेहरे के साथ
दो ठहरी
हुई आँखे
जैसे खो
गई हों कहीं
मिले
बिना छुऐ हाथ
या
बिना मिले गले
बहुत कुछ
कहने के लिये
हो कहीं
छुपाया हुआ जैसे
पूछ्ने पर
मिले हमेशा
बस
एक ही जवाब
यहाँ आया था
सोचा
मिलता चलूँ
वैसे
कुछ खास
बात नहीं है
सब ठीक है
अपनी
जगह पर
जैसा था
बस
इसी जैसा था
पर उठते हैं
कई सवाल
कैसे
कई लोग
कितना कुछ
जज्ब
कर ले जाते हैं
सोख्ते में
स्याही की तरह
पता ही
नहीं चलता है
स्याही में
सोख्ता है
या सोख्ता में
स्याही थोड़ी सी
पर
काला
कुछ
नहीं होता
कुछ भी
कहीं
जरा सा भी
कितने
सपाट
हो लेते हैं
कई लोग
सब कुछ
ऊबड़ खाबड़
झेलते झेलते
सारी जिंदगी ।
सालों से
कोई
मिलने आता
रहे हमेशा
बिना
नागा किये
निश्चित समय पर
एक सपाट
चेहरे के साथ
दो ठहरी
हुई आँखे
जैसे खो
गई हों कहीं
मिले
बिना छुऐ हाथ
या
बिना मिले गले
बहुत कुछ
कहने के लिये
हो कहीं
छुपाया हुआ जैसे
पूछ्ने पर
मिले हमेशा
बस
एक ही जवाब
यहाँ आया था
सोचा
मिलता चलूँ
वैसे
कुछ खास
बात नहीं है
सब ठीक है
अपनी
जगह पर
जैसा था
बस
इसी जैसा था
पर उठते हैं
कई सवाल
कैसे
कई लोग
कितना कुछ
जज्ब
कर ले जाते हैं
सोख्ते में
स्याही की तरह
पता ही
नहीं चलता है
स्याही में
सोख्ता है
या सोख्ता में
स्याही थोड़ी सी
पर
काला
कुछ
नहीं होता
कुछ भी
कहीं
जरा सा भी
कितने
सपाट
हो लेते हैं
कई लोग
सब कुछ
ऊबड़ खाबड़
झेलते झेलते
सारी जिंदगी ।
बढ़िया लेखन , सर धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-06-2014) को "यह किसका प्रेम है बोलो" (चर्चा मंच-1638) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
कितने सपाट हो लेते हैं कई लोग
जवाब देंहटाएंसब कुछ ऊबड़ खाबड़
झेलते झेलते सारी जिंदगी ।
वाह।
सपाट हो सकें हर कोई तो फिर बात ही क्या .. जीवन क हर कोई ऐसा नहीं ले पाटा ...
जवाब देंहटाएंसपाट होना आजकल बहुत कष्टकारी है पर आपकी कविता पढ़कर सपाट लोगों के कष्ट अवश्य दूर हो जाएंगे।
जवाब देंहटाएं