उलूक टाइम्स: सब जानते है सीवर खुला है और आ रही है बदबू सड़न की खुशबू गाने में किसी का क्या चला जाता है

बुधवार, 15 मई 2024

सब जानते है सीवर खुला है और आ रही है बदबू सड़न की खुशबू गाने में किसी का क्या चला जाता है

 

उसने ऐसा क्या कर दिया
किसी को कुछ कहीं नजर नहीं आता है
चश्मा पहनाया है या उतार दिया है
ये समझ से बाहर हो जाता है

जो देख रहे हैं महसूस कर रहे हैं
वो वो नहीं है जो वो बताता है
वो वो है वो नहीं है वो तो मासूम है
वो तो बस एक झंडा फहराता है

पढ़े लिखे नाच रहे हैं
लिखे में दिख रहा है उनके
राम भी समझ में आता है
राम नाम सत्य है बस
एक और केवल एक ही दिन
एक भीड़ से बांच दिया जाता है

आदमी लिख रहा है बन कर चम्मच
कटोरा पकडे हुए एक इंसान की कहानी
उसे कहाँ कोई समझाता है
कटोरे से कुर्सी और कुर्सी से देश खाने में
कहां समय लगता है
दीमक होशियारी अपनी कहाँ छुपाता है

 शर्म आती है ‘उलूक’ को
पढकर किसी का पन्ना
ब्लोगिंग में ब्लोगर बहुत बढ़ा
ऐसा कौन हो पाता है
सब को पता है सब जानते है
सीवर खुला है और आ रही है बदबू
सड़न की खुशबू गाने में
किसी का क्या चला जाता है |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. सोलह मई की शुभकामनाएं
    सादर वंदन

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 18 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. लोकतंत्र में अथवा किसी भी तंत्र में अथवा कोई भी तंत्र न हो, आदमी आज़ाद हो हर तरह से, फिर भी हर व्यक्ति अपनी तरह सोचता है, कोई किसी के मन में जाकर तो अपनी बात नहीं रख पाता है, यही तो मानव होने का सौंदर्य है !

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  5. अपने अपने तरीके से सब अपनी सडांध ही तो निकाल रहे हैं ...

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  6. कटोरे से कुर्सी और कुर्सी से देश खाने में
    कहां समय लगता है
    दीमक होशियारी अपनी कहाँ छुपाता है
    दीमक कितना भी होशियार हो अगर हमने अपना सामान सम्भाल लिया तो दीमक की होशियारी धरी की धरी रह जाये...
    कटोरा दे कुर्सी दें पर देश ना दें, बस इतना ध्यान रखें कि देश हमारा है हम सबका है । आगामी चुनौतियों से आगाह कराती लाजवाब रचना ।

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  7. अच्छा लगता है : बेबाक लेखन पढ़ना
    -साधुवाद

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