उलूक टाइम्स: कंजूस
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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

सच कहा जाये तो दिल की बात कहने में दिल घबराता है

कितना
कुछ भी

लिख
दिया जाये

वो

लिखा ही
नहीं जाता है

जो

बस
अपने से
ही साझा
किया जाता है

इस पर
लिखना
उस पर
लिखना

लिखते
लिखते
कुछ भी
लिखना

बहुत
कुछ
ऐसे ही
लिखा
जाता है

लिखते
लिखते भी
महसूस होना

कि
कुछ भी
नहीं लिखा
जाता है

हर
लिखने वाला
इसी मोड़ पर

बहुत ही
कंजूस
हो जाता है

पढ़ने
वाले भी
बहुत होते हैं

कोई
पूरा का पूरा
शब्द दर शब्द
पढ़ ले जाता है

बेवकूफ
भी नहीं होता है

फिर भी
कुछ भी नहीं
समझ पाता है

शराफत होती है

बहुत
अच्छा
लिखा है
की टिप्पणी

एक
जरूर दे जाता है

बहुत अच्छा
लिखने वाले को
पाठक ही नहीं
मिल पाता है

एक
अच्छी तस्वीर के

यहाँ बाजार
लगा नजर आता है

 कुछ अच्छा
लिख लेने की सोच

जब तक
पैदा करे कोई
एक कभाड़ी 
बाजार भाव
गिरा जाता है

बहुत से
पहलवान हैं

यहाँ भी
और वहाँ भी

दादागिरी
करने में

लेखक
और
पाठक से
कमतर
कोई नजर
नहीं आता है

दाऊद
यहाँ भी हैं
बहुत से

पता नहीं

मेरा
ख्वाब है
या
किसी और
को भी
नजर आता है ।