वो
करते
थे सुना
गुलामी
की बात
जो
कभी
आजाद
भी हो गये थे
कुछ
बच गये थे
आज
भी हैं
शायद
कहीं
इंतजार में
बहुत सारे
मर खप भी
कभी के गये थे
ऐसे ही
कुछ
निशान
आजादी
के कुछ
गुलामी
के कुछ
आज भी
नजर कहीं
आ ही जाते हैं
कुछ
खड़ी
मूर्तियाँ
शहर
दर शहर
चौराहों पर
कुछ
बैठे बूढ़े
लाठी लिये
खेतों के लिये
जैसे वजूका
एक हो जाते है
पर
कौए
फिर भी
बैठ ही
कभी जाते हैं
कोई
नहीं देखता
उस तरफ
कभी भी
मगर
साल
के किसी
एक दिन
रंग
रोगन कर
नये कर
दिये जाते हैं
देख सुन
पढ़ रहे होंं
सब कुछ
आज भी
आज को
उसी अंदाज में
देखो
उनकी
तरफ तो
नजर से
नजर मिलाते
नजर आ जाते हैं
बदतमीजी
बहुत
हो रही है
चारों तरफ
बहुत
ही तमीज
और बहुत
आजादी के साथ
बस
दिखता है
इन्ही को
समझते
भी ये
हैं सब
बाकी तो
आजाद हैं
कुछ
इधर से
निकलते
हैं उनके
कुछ
उधर से
भी निकल
जाते हैं ।
करते
थे सुना
गुलामी
की बात
जो
कभी
आजाद
भी हो गये थे
कुछ
बच गये थे
आज
भी हैं
शायद
कहीं
इंतजार में
बहुत सारे
मर खप भी
कभी के गये थे
ऐसे ही
कुछ
निशान
आजादी
के कुछ
गुलामी
के कुछ
आज भी
नजर कहीं
आ ही जाते हैं
कुछ
खड़ी
मूर्तियाँ
शहर
दर शहर
चौराहों पर
कुछ
बैठे बूढ़े
लाठी लिये
खेतों के लिये
जैसे वजूका
एक हो जाते है
पर
कौए
फिर भी
बैठ ही
कभी जाते हैं
कोई
नहीं देखता
उस तरफ
कभी भी
मगर
साल
के किसी
एक दिन
रंग
रोगन कर
नये कर
दिये जाते हैं
देख सुन
पढ़ रहे होंं
सब कुछ
आज भी
आज को
उसी अंदाज में
देखो
उनकी
तरफ तो
नजर से
नजर मिलाते
नजर आ जाते हैं
बदतमीजी
बहुत
हो रही है
चारों तरफ
बहुत
ही तमीज
और बहुत
आजादी के साथ
बस
दिखता है
इन्ही को
समझते
भी ये
हैं सब
बाकी तो
आजाद हैं
कुछ
इधर से
निकलते
हैं उनके
कुछ
उधर से
भी निकल
जाते हैं ।