उलूक टाइम्स: मुर्गे
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मंगलवार, 8 सितंबर 2015

समाचार बड़े का कहीं बड़ा कहीं थोड़ा छोटा सा होता है

बकरे और मुर्गे
चैंन की साँस
खींच कर
ले रहे हैं
सारे नहीं देश
में बस एक दो
जगह पर कहीं
वहीं मारिया जी की
पदोन्नति हो गई है
शीना बोरा को
आरूषि नहीं बनने दूँगा
उनसे कहा गया
उनके लिये लगता है 
फलीभूत हो गया है
मृतक की आत्मा ने
खुश हो कर
सरकार से उनको
अपने केस को छोड़
आगे बढ़ाने के लिये
कुछ कुछ बहुत
अच्छा कह दिया है
हेम मिश्रा बेल पर
बाहर आ गया है
सरकार का कोई
आदमी आकर इस
बात को यहाँ
नहीं बता गया है
खुद ही बाहर आया है
खुद ही आकर उसने
खुद ही फैला दिया है
बड़े फ्रेम की बडी खबरें
और उसके
फ्रेम की
दरारों से 
निकलती
छोटी खुरचने
रोज ही होती हैं
ऐसे में ही होता है और
बहुत अच्छा होता है
अपने छोटे फ्रेम के
बड़े लोगों की छोटी
छोटी जेबकतरई
उठाइगीरी के बीच
से उठा कर कुछ
छोटा छोटा चुरा
कर कुछ यहाँ
ले आना होता है
फिर उसे जी भर
कर अपने ही कैनवास
में बेफिक्र सजाना होता है
बड़े हम्माम से अच्छा
छोटे तंग गोसलखाने का
अपना मजा अपना
ही आनन्द होता है

उलूक करता रहता है
हमेशा कुछ ना कुछ
नौटंकी कुछ कलाकारी
कुछ बाजीगरी
उसकी रात की दुनियाँ
में इन्ही सब फुलझड़ियों
का उजाला होता है  ।

चित्र साभार:
earthend-newbeginning.com

शनिवार, 28 सितंबर 2013

कल तक चाँद हो रहा था रात ही रात में दाग हो गया

सुबह के
अखबार से
सबको पता
हो गया
बच्चा बापू
से बहुत
नाराज हो गया
उसके जवान
हो जाने का
जैसे कहीं कोई
ऐलान हो गया
घर के अंदर
लग रहा था
कल ही कल
में कोई
संग्राम हो गया
अंदर ही अंदर
पक रहा हलुवा
पता नहीं कैसे
आम हो गया
चाँद के सुंदर
होने की बात
पीछे हो गई
दाग होने से
ही वो आज
बेकाम हो गया
माँ की
अंगुली छोड़
अचानक
बेटा खड़ा
हो कर
आम हो गया
विदेश गये
बापू जी
का वहाँ रहना
हराम हो गया
एक बड़ा
दाग होना
होने जा रहा था
सोने में सुहागा
अचानक कोड़ में
खाज हो गया
कुछ खास बड़ा
नहीं बस एक
छोटा सा
अध्यादेश
मुंह में शहद
हो रहा था
गले तक पहुंचते
पहुंचते मुर्गे की
हड्डी हो गया
सच्ची मुच्ची में
लगने लगा है
किसी को कुछ
कुछ हो गया
क्या था कल तक
घर का ही आदमी
घर ही घर में
क्या से क्या
आज हो गया
बेवफा तू ऐसे में
पूरी पूरी रात
चैन की नींद
कैसे सो गया ।

सोमवार, 11 जून 2012

डिस्को मुर्गे

समय के
साथ चलना
जरूरी है

परिवर्तन
के साथ
बदलना
मजबूरी है

मुर्गे
स्वदेशी
इसी चीज के
पीछे पीछे
जा रहे हैं

अपनी
को टोपी
के नीचे
छिपा कर
ऊपर से
विदेशी
कलगी
लगा रहे हैं

जब तक
मुँह नहीं
खोलते
अच्छा प्रभाव
भी जमा रहे हैं

पर बाँग
देते समय
बेचारे
रंगे हाथों
पकड़े भी
जा रहे हैं

अब अपने
घर के
अपने ही
मुर्गे हैं

हम भी
कुछ कह
नहीं पा
रहे हैं

उनकी
बेढंगी चालों
पर ताल
बजा रहे हैं

ना
चाहते
हुवे भी एक
मौन स्वीकृति
दिये जा रहे हैं ।

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।