उलूक टाइम्स: सत्तर साल
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गुरुवार, 30 जुलाई 2020

बड़े काम की खबर ले कर आया है पैंसठ से ऊपर के बुड्ढे मास्टरों के लिये आज अखबार

 

गजब की खबर है बुड्ढे के लिये 
तेल पिला लाठी को
दौड़ लगाने को हो जा फिर से तैयार

सत्तर पर ही सही 
सूट भी नयी सिला कर रख ले
दो चार एक इस बार 

कोई बात नहीं
इसमें तेरे लिये
अगर एक जवान को
चालीस तक मिलती है 
या नहीं मिलती है नौकरी
आज के जमाने में
कुछ हजूर हजूर करके
कुछ खजूर पेश करके सरकार 

क्या होता है याद रखना पड़ेगा 
कि पचास पर कर दिया जायेगा
कार्यमुक्त देकर अवकाश
लगेगा अगर अपने आदमी की तरह
पेश नहीं आ पा रहा है कोई 
मान लिया जायेगा हो चुका है बेकार 

चिन्ता की बात केवल आम के लिये है
इसलिये खास होने के लिये 
बनाना शुरु किया जा सकता है
बेशर्मी की मिट्टी मिले 
मक्खन लगे सीमेंट के साथ
हवा में ही हवा हवा टाईप का कोई एक आधार 

कच्ची जमीन ढूँढ कर कहीं भी 
सस्ते दाम वाली दिखने में कामवाली 
ढक ढका कर हरी पीली चमकीली सोच से ऐसी 
जो धोखा दे सकें समय पर उड़ा कर हवा में 
चोरी किये कहीं से दो चार 
चलते फिरते जमाने के दौड़ लगाते सुविचार 

जिन्दगी भर पढ़ाई लिखाई को छोड़ 
बाकी कुछ भी कर लेने वाले मास्टरों का
होने वाला है सत्कार 

करेगी इसी उम्र को पार कर बन चुकी 
जवान पीढ़ी के द्वारा छाँट कर खुद के लिये 
बूढ़ी हो चुकी कोई एक सरकार 

‘उलूक’ 
इन्तजार कर आँखों के कुछ और 
कमजोर हो लेने का साल पाँच एक तक और 
तब तक डाल अच्छी बची खुची सोच का
तेल डाल कर अचार 

फिर देखना
लाठी लेकर आते हुऐ जवान कुलपति
सत्तर साल के 
लगाते नये जमाने की
 उच्च शिक्षा का बेड़ा पार । 

चित्र साभार: https://www.thegazelle.org/

गुरुवार, 27 जून 2019

खूबसूरत लिखे के ऊपर खूबसूरत चेहरे के नकाब ओढ़ाये जायेंगे फिर ईनाम दिलवाये जायेंगे



सुपुर्द-ए-खाक
हो गये हों

या
जल कर
राख हो गये हों

ढूँढ कर

निकाल कर
लाये जायेंगे 

राख और मिट्टी
हो गये कुछ खास

फिर से

जमीन से खोद कर
धुलवाये जायेंगे

विज्ञान के
सारे ज्ञान का तेल

निकाल कर
पेल ले जायेंगे

पर छोड़ेंगे नहीं

मरे हुऐ भी

फिर से
जिन्दा
करवाये जायेंगे

अभी

बस
भूतों के
पीछे पड़े हैं

पाँच साल
रुकिये
भविष्य तय
कर करा कर

फंदे के
अंदर घसीट
लटका कर
ही जायेंगे

बाकि
काम तो
चलता ही रहता है

सत्तर साल
मिले हैं
आगे के

बराबरी
करने के लिये

अभी तो
सारा वही कुछ

पुराना
खोद कर
धो पोछ कर

नया बना

गा गा
कर लोरियाँ बनायेंगे

चेहरे
सामने के
चेहरे
आईने के

दिखते रहेंगे
देखते चले जायेंगे

चेहरे
असली
पीछे के

कोशिश करेंगे

जितना
हो सके
छुपायेंगे

कविता लिखेंगे

चेहरे बुनेंगे

साम्य
कुछ
जरूर बैठायेंगे

कर्म
किसने
देखने सुनने हैं

कभी
खुल भी गये

तो
थोड़ा सा
होंठों में
मुस्कुरायेंगे

कुछ को
ईनाम देंगे

कुछ को
शाबाशी मिलेगी

थोड़े कुछ
लिखने वाले रोड़े

गालियाँ
भी खायेंगे

गिरोह
शराफत के
दिखेंगे
जगह जगह

कुछ
हरों में
कुछ
पीलों में
गिने जायेंगे

कुछ
अलग होगा
कहीं किसी जगह
की सोच
बनाये रखेंगे

देखेंगे

हर जगह

राष्ट्रीय चरित्र
एक जैसा
‘उलूक’

जापान
के लोगों
के उदाहरण

जरूर
पेश किये जायेंगे

लिखना
जरूरी है
जो
जरूरी है

लोग
खूबसूरत हैं

गजब का
लिखते हैं

नाम है

पर

क्या
 सच के साथ

खड़े हो पायेंगे?

चित्र साभार: www.istockphoto.com