ओ बदरिया कारी
है गरमी का मौसम
और तू रोज रोज
क्यों आ जा रही
बेटाईम आ आ के
भिगा रही
बरस जा रही
सबको ठंड लगा रही
जाडो़ भर तूने नहीं
बताया कि तू क्यों
नही बरसने
को आ रही
लगता है तू आदमी
को अपना
मूड दिखा रही
आदमी के
कर्मों का
फल उसको
दिला रही
पर तू ये भूल
क्यों जा रही
कि तेरे बदलने
से ही तो
आदमी की पौ
बारा हो जा रही
क्लाईमेट चेंज और
ग्लोबल वार्मिंग
के नाम पर
जगह जगह दुकानें
खुलते जा रही
जैसे ही नदी सूख
जाने की खबर
दी जा रही
तू शैतान बरस
के पानी से लबालब
करने क्यों आ रही
बदरिया जरा कुछ
तो बता जा री।
है गरमी का मौसम
और तू रोज रोज
क्यों आ जा रही
बेटाईम आ आ के
भिगा रही
बरस जा रही
सबको ठंड लगा रही
जाडो़ भर तूने नहीं
बताया कि तू क्यों
नही बरसने
को आ रही
लगता है तू आदमी
को अपना
मूड दिखा रही
आदमी के
कर्मों का
फल उसको
दिला रही
पर तू ये भूल
क्यों जा रही
कि तेरे बदलने
से ही तो
आदमी की पौ
बारा हो जा रही
क्लाईमेट चेंज और
ग्लोबल वार्मिंग
के नाम पर
जगह जगह दुकानें
खुलते जा रही
जैसे ही नदी सूख
जाने की खबर
दी जा रही
तू शैतान बरस
के पानी से लबालब
करने क्यों आ रही
बदरिया जरा कुछ
तो बता जा री।