उलूक टाइम्स: बावन पत्ते कुछ इधर कुछ उधर हंस रहा है बस एक जोकर

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

बावन पत्ते कुछ इधर कुछ उधर हंस रहा है बस एक जोकर

चिड़ी ईट पान हुकुम
बस काले और लाल
तेरह गुणा चार
इक्के से लेकर
गुलाम बेगम बादशाह
पल पल हर पल
सुबह दिन शाम
आज कल परसों
दिन महीने
साल दर साल
फिर बरसों
बस और बस
बावन तरीकों से
कुछ इधर और
कुछ उधर से
हुई उंच नीच को
बराबर करने की
जुगत में लगे लगे
बहुत कुछ बटोर कर
अंगुलियों के पोरों के
बीच छुपा लेने की
एक भरपूर कोशिश के
बावजूद सब कुछ का
छिर जाना सब कुछ
साफ साफ नजर
आते हुऐ भी
फिर से जुट जाना
भरने के लिये
अंधेरे के लिफाफे में
जैसे कुछ रोशनी
एक नहीं कई बार
ये सोच कर
कभी तो कुछ रुकेगा
कहीं जाकर रास्ते के
किसी मोड़ पर
थोड़ी देर के लिये
सुस्ताते समय ही सही
बस नहीं दिखता है
तो केवल
ताश के पत्तों के
पट्ठे के डिब्बे में से
आधा बाहर निकला
हुआ त्रेपनवां पत्ता
बहुत बेशर्मी से
मुस्कुराता हुआ ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. तिरपनवें पत्ते के बल पर ही कभी कभी ज़िन्दगी रास्ता पाती है … और वह न दिखे तो हताशा !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (11-12-13) को अड़ियल टट्टू आपका, अड़ा-खड़ा मझधार-चर्चा मंच 1458 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. सुन्दर व्यंग-
    आपकी प्रेरणा-
    आभार
    पंजे मिले दबोचते, छक्के मिलते साथ |
    चारो राजा छोड़ते, जब रानी का हाथ |
    जब रानी का हाथ, गुलामों की बन आये |
    फिर इक्के पर बैठ, सैर की खातिर जाए |
    दिखें आठ के ठाठ, लगते चौका गंजे |
    सत्ता दे दहलाय, डुबा नहलाते पंजे ||

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