उलूक टाइम्स: कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

सोमवार, 21 अगस्त 2023

कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

 


सांप और उसके जहर को क्या लिखना
महसूस कर और सिहर
तेंदुआ शहर में घूम रहा है
दिखा कल अखबार में है एक खबर
बहुत कुछ हो रहा है हमारे आस पास
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

अवकाश में चला गया है
पेंशन भी आ गयी है पहली खाते में इधर
काम पर लेकिन अब लगा है बना रहा है बम
साथ में है सुना है जफ़र
उड़ाने का इरादा है उसका सब कुछ
जिससे मिला उसे हमेशा ही सिफर

कभी इधर की थाली का रहा बैगन
लुडकता इधर से उधर
आज उधर दिख रहा है यही बैगन
लुडकता उधर से इधर

इधर था
तो इधर की खोद देता था जड़ें सारी होकर बेफिकर
उधर भी
खोद ही रहा होगा जड़ें किसी की अभी नहीं आई है कोई खबर

बरबाद कर दूंगा
तो बस एक मुहिम है सोच है
दिखाना तो है २०२४ का एक शहर
हर शय पर है हर घर में है हर जगह है
बर्बाद कर दूंगा का नुमाइंदा दिखाने को कहर

बस ‘उलूक’ को पता है
उसका राम है उसका अल्लाह है उसका जीजस है
और सब एक है बाकी सांप है और है जहर
सांप है तो जहर भी है काटता भी है तो मरता भी है
सुबह से लेकर शाम तक जिंदगी और मौत है
लेकिन कड़क धूप है तो है दोपहर

चित्र साभार : https://www.clipartmax.com/

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 22 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. बस ‘उलूक’ को पता है
    उसका राम है उसका अल्लाह है उसका जीजस है
    और सब एक है बाकी सांप है जहर है

    -गजब अनोखी बात

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  3. आपकी अनुपम रचनाएँ किसी प्रसिद्ध 'मॉडर्न आर्ट गैलरी' में प्रस्तुत किसी विख्यात चित्रकार की तूलिका से सजी उस 'पेंटिंग्स' की तरह प्रतीत होती हैं, जो किसी आम इंसान की नज़र में चंद आड़ी-तिरछी रेखाओं का संगम, कुछ मेल-बेमेल रंगों का समागम और कुछ डफर 'टाइप' बेतरतीबी से लगे 'स्ट्रोक्स' वाले अर्थहीन 'कैनवास' के टुकड़े लगते हैं तो ... किसी पारखी नज़र के लिए छः-सात अंकों में या उससे भी ज्यादा की क़ीमत पर क्रय-विक्रय के बाद 'मॉडर्न आर्ट गैलरी' से उतर कर उस क़द्रदान के 'ड्राइंग रूम' को सुशोभित करती हुई मुस्कान बिखेरती वर्षों तक सभी के लिए परिस्थितियों और दर्शक की मानसिकता के अनुरूप पृथक-पृथक "विशेषार्थ" प्रदान करती रहती है .. शायद ...
    आप दीर्घायु हों .. बस यूँ ही ... 🙏
    🙂🙂🙂🙂🙂

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  4. कभी इधर की थाली का रहा बैगन
    लुडकता इधर से उधर
    आज उधर दिख रहा है यही बैगन
    लुडकता उधर से इधर

    बस ‘उलूक’ को पता है
    उसका राम है उसका अल्लाह है उसका जीजस है...
    ये सबको पता हो तो बात ही अलग हो...
    वाह!!!
    अद्भुत सृजन।

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  5. पता नहीं इस बैगन की सब्जी बना, किस्सा ख़त्म क्यों नहीं किया जाता 😧

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