उलूक टाइम्स: आठसौवीं
आठसौवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आठसौवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 23 सितंबर 2017

घर में सड़क में पार्क में बाजार में स्कूल के खेल के मैदान में बज रहें हैं भीषण तीखे भोंपू भागने वाले है शोर से ही रावण शुँभ निशुंभ इस बार बिना आये दशहरे के त्यौहार में

बस मतलब
की बातें
समझने
वालों को
कैसे
समझाई
जायें
बेमतलब
की बातें


कौन दिखाये
फकीरों के
 साथ फकीरी
 में रमें
फकीरों को
लकीरें 
और बताये
लकीरों की बातें


लेता रहता है
समय का
ऊँट करवटें
खा जातें हैं
पचा जाते हैं
कुछ भी खाने
पचाने वाले
उसकी भी लातें
********
***


तो आईये
‘आठ सौवीं’
'पाँच लिंको
 की हलचल’
के लिये पकाते हैं
आसपास हो रही
हलचल को लेकर
दिमाग के गोबर
के कुछ कंडे
यूँ ही सोच
में लाकर
रंग में सरोबार
कन्हैया भक्त
बरसाने के
डंडे बरसाते

********


इस बार पक्का
उतर कर आयेगें
वो आसमान से
डरकर ही सही
भक्तों के भोंपुओं
के शोर से जब
जमीन के लोगों
की फट रही हैं
अपने ही घर में
सोते बैठते आतें

इतना ज्वार
नहीं देखा
आता भक्ति का
घर की पूजायें
छोड़ कर निकल
रहें हैं पंडाल पंडाल
शहर दर शहर

दिख रहा है
उसने बुलाया है
हर कान में
अलग से
आवाज दे
निकल आये
सब ही
तेजी से
बरसते
पानी की
बौछारों
के बीच
बिना बरसाती
बिना छाते

ऐसे ही
कई बार
पगलाता है
‘उलूक’
बड़बड़ाता हुआ
बुखार में तेज
जैसे असमाजिक
बीमार कोई
समाज के नये
रूप को देख
बौखला कर
निकल पड़ता है
जगाने अपनी
ही सोई हुई
आत्मा को
हाथ में
लेकर
खड़ाऊ
मान कर
राम के पैर
बहुत पुरानी
घर पर ही पड़ी
लकड़ी की
बजाते खड़खड़ाते ।
*********

चित्र साभार: Shutterstock