एक नहीं
कई बार
होता है
आभास
भटकने का
समझ में
भी आता
है बहुत
साफ साफ
दिखता
भी है
जैसे
साफ
निर्मल
पानी में
अपना
अक्स ही
इनकार
करता हुआ
खुद ही का
प्रतिबिम्ब
होने से
बस
थोड़े से
लालच
के कारण
जिसे
स्वीकार
करना
मुश्किल
होता है
और
हमेशा
की तरह
कोशिश
व्यर्थ
चली
जाती है
बेचने की
एक
सत्य को
पता होने
के
बावजूद भी
कि
सत्य कभी
भी नहीं
बिका है
बिकता
हमेशा
झूठ ही
रहा है
और
वो भी
कम कम
नहीं
हमेशा ही
बहुत ऊँचे
दामों में
बिना किसी
बाजार
और
दुकान में
सजे हुऐ
जिसे खरीदते
समय किसी
को भी कभी
थोड़ी सी भी
झिझक
नहीं होती है
सोच और
कलम के
लिये कभी
कहीं कोई
बाजार
ना हुआ है
ना कभी होगा
फिर भी
गुजरते हुऐ
बाजारों के बीच
लटके हुऐ
झूठे इनामों
सम्मानों
दुकानों की
चकाचौंध
और
ठेकेदारों की
निविदाओं के
लिये लगाई
जा रही
बोलियों से
जब भी
कलम लेखन
और
लेखक का ध्यान
भटकता है
थोड़ी देर के
लिये ही सही
सत्य नंगा
हो जाता है
खुद का खुद
के लिये
खुद के ही
सामने
और
रास्ता
दिखना
शुरु हो
जाता है
तेज रोशनी
से चौधिया
के अंधी
हो गई
आँखो
को भी ।
चित्र साभार: www.gograph.com
कई बार
होता है
आभास
भटकने का
समझ में
भी आता
है बहुत
साफ साफ
दिखता
भी है
जैसे
साफ
निर्मल
पानी में
अपना
अक्स ही
इनकार
करता हुआ
खुद ही का
प्रतिबिम्ब
होने से
बस
थोड़े से
लालच
के कारण
जिसे
स्वीकार
करना
मुश्किल
होता है
और
हमेशा
की तरह
कोशिश
व्यर्थ
चली
जाती है
बेचने की
एक
सत्य को
पता होने
के
बावजूद भी
कि
सत्य कभी
भी नहीं
बिका है
बिकता
हमेशा
झूठ ही
रहा है
और
वो भी
कम कम
नहीं
हमेशा ही
बहुत ऊँचे
दामों में
बिना किसी
बाजार
और
दुकान में
सजे हुऐ
जिसे खरीदते
समय किसी
को भी कभी
थोड़ी सी भी
झिझक
नहीं होती है
सोच और
कलम के
लिये कभी
कहीं कोई
बाजार
ना हुआ है
ना कभी होगा
फिर भी
गुजरते हुऐ
बाजारों के बीच
लटके हुऐ
झूठे इनामों
सम्मानों
दुकानों की
चकाचौंध
और
ठेकेदारों की
निविदाओं के
लिये लगाई
जा रही
बोलियों से
जब भी
कलम लेखन
और
लेखक का ध्यान
भटकता है
थोड़ी देर के
लिये ही सही
सत्य नंगा
हो जाता है
खुद का खुद
के लिये
खुद के ही
सामने
और
रास्ता
दिखना
शुरु हो
जाता है
तेज रोशनी
से चौधिया
के अंधी
हो गई
आँखो
को भी ।
चित्र साभार: www.gograph.com