उलूक टाइम्स: जीवन
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शनिवार, 31 दिसंबर 2022

लम्हे

 


कुछ लम्हे मुट्ठी के अंदर
कुछ लम्हे मुट्ठी के बाहर
कुछ लम्हे बिछे सड़क में
कुछ लम्हे तो हो गए शायर


लम्हे लम्हे सिमटा जीवन
लम्हे लम्हे बिखरा जीवन
किसने पकड़े किसने जकड़े
लम्हे बहके लम्हे संभले
मन ही मन


लम्हे दर लम्हे पीड़ा
लम्हे दर लम्हे दुख
कर बस कर वंदन
लम्हे दर लम्हे खुशियां
लम्हे दर लम्हे चंदन
चन्दन


लम्हे चिढ़ के लम्हे गुस्सों के
लम्हे मार पीट के
गिन मधुबन
लम्हे चीर फाड़ के
लम्हे प्यार बाँट के
जोड़ घटा
शबनम शबनम


लम्हे के पीछे मन
लम्हे के आगे तन
लम्हों से बिखरा आँगन
लम्हे पाठक के
बस नव वर्ष का स्वागतम |

चित्र साभार: https://www.youtube.com/watch?v=iFHpIMzVO3Y

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गुरुवार, 18 सितंबर 2014

“जीवन कैसा होता है” अभी कुछ भी नहीं पता है सोचते ही ऐसा कुछ आभास हो जाता है

बिना
सोचे समझे
कुछ पर
कुछ भी
लिख देने
की आदत

लिख भी
दिया जाता है
कुछ भी

बात अलग है

कुछ दिनों बाद

फिर से
बार बार
कई बार
पढ़ने पर
उस कुछ को

खुद को भी
कुछ भी
समझ में
नहीं आता है

किसी को
लगने लगता है
शायद

सरल नहीं
कुछ गूढ़
कहा जाता है

कौऐ पर
मोर पंख
लगा दिया जाये
तो ऐसा ही
कुछ हो जाता है

और ऐसे में
अनजाने में
उससे पूछ
लिया जाता है
ऐसा प्रश्न
जिसे समझने
समझने तक
अलविदा कहने का
वक्त हो जाता है

और प्रश्न
प्रश्न वाचक चिन्ह
का पहरा
करते हुऐ जैसे
कहीं खड़ा रह जाता है

“जीवन कैसा होता है ?”
कुछ कहीं सुना हुआ
जैसा कुछ ऐसा
नजर आता है

जिसपर सोचना
शुरु करते ही
सब कुछ
उल्टा पुल्टा
होने लग जाता है

कुछ दिमाग में
जरूर आता है
थोड़ी सी रोशनी
भी कर जाता है

फिर सब वही
धुँधला सा
धूल भरा
नीला आसमान
भूरा भूरा हो जाता है

बताया भी
नहीं जाता है
कि सामने से कभी
एक परत दर परत
खुलता हुआ प्याज
आ जाता है

कभी
एक साबुन
का हवा में
फूटता हुआ
बुलबुला हो जाता है

कभी
भरे हुऐ पेटों
के द्वारा
जमा किया हुआ
अनाज की बोरियों का
जखीरा हो जाता है

क्या क्या नहीं
दिखने लगता है
सामने सामने

एक मरे शेर का
माँस नोचते कुत्तों
पर लगा सियारों का
पहरा हो जाता है

अरे
नहीं पता चल
पाया होता है
कुछ भी
‘उलूक’ को
एक चौथाई
जिंदगी गुजारने
के बाद भी

एक तेरे प्रश्न से
जूझते जूझते
रात पूरी की पूरी

अंधेरा ही
अंधेरे पर
सवार होकर
जैसे सवेरा
हो जाता है

फिर कभी
देखेंगे पूछ कर
किसी ज्ञानी से
“जीवन कैसा होता है”

सभी प्रश्नों का
उत्तर देना
किस ने कह दिया
हर बार बहुत ही
जरूरी हो जाता है

पास होना ठीक है
पर कभी कभी
फेल हो जाना भी
किसी की एक बड़ी
मजबूरी हो जाता है ।

चित्र साभार: http://ado4ever.overblog.com/page/2

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"चेस्टर" सितम्बर 2008- 08-02-2012


निर्मोही आँखिर तुम भी
हो गये एक चित्र
हमें मोह में उलझा के
हौले से चल दिये मित्र
बहुत कुछ दे गये एक
इतने छोटे से काल में
मौन से स्पर्श से
हावभाव से संकेत से
निस्वार्थ निश्चल प्रेम से
अपनो का अपना दिखा के
अपनो को अपना बना के
दूर तक साँथ चलने का
झूठा सा अहसास दिला के
उड़ गये फुर्र से
हम देखते ही रह गये
किंकर्तव्यविमूढ़ बह गये
भावनाओं के ज्वार मे
उलझ के तुम्हारे प्यार में
रोक भी नहीं पाये तुमको
ये बताया भी कहाँ हमको
जल्दी है तुम्हें बहुत जाने की
कहीं और जा के लोगों को
कुछ बातें समझाने की
यहाँ लेना था तुम्हें
बहुत से लोगों से
पुराना कुछ हिसाब
शायद लाये भी होगे
कहीं कोई बही किताब
दूर हो या नजदीक
बुलाया उन सभी को
किसी ना किसी तरह
कभी ना कभी
अपने ही पास
जीवन मृत्यू का
एक पाठ पुन:
समझा के एक और बार
चल पडे़ हो एक लम्बी
डगर पर हमें दे कर केवल
अपनी एक याद
शुभ यात्रा प्रिय
करना क्षमा  तृटियों के लिये
फिर जन्म लेना कहीं
हमसे मिलने के लिये
करेंगे इंतजार लगातार।

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नासमझ

कहाँ पता चल पाता है आदमी को
कि वो एक माला पहने हुवे फोटो हो जाता है

अगरबत्ती की खुश्बू भी कहां आ पाती है उसे
तीन पीढ़ियों के चित्र
दिखाई देते हैं सामने कानस में
धूल झाड़ने के लिये
दीपावली से एक दिन पहले

चौथी पीढ़ी का चित्र वहां नहीं दिखता
शायद मिटा चुका होगा सिल्वर फिश की भूख

गद्दाफी को क्रूरता से नंगा कर
नाले में दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज में रखा उसका शव भी नहीं देख पाया होगा
वो अकूत संपत्ति
जो अगली सात पीढ़ियों के लिये भी कम होती
पर बगल में पड़ा
उसके बेटे का शव भी खिलखिला के हँसता रहा होगा
शायद

कौन बेवकूफ समझना चाहता है ये सब कहानियां
रोज शामिल होता है एक शव यात्रा में
लौटते लौटते उसे याद आने लगती है
जीवन बीमा की किस्त ।