उलूक टाइम्स: तिरंगे
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गुरुवार, 25 जनवरी 2018

गणों को तंत्र के शुभकामनाएं आज के लिये कल से फिर लग लेना है सजाने अपनी अपनी दुकान को


कहाँ जरूरत है
किसे जरूरत है
पढ़ने याद करने
या समझने की
संविधान को



कुछ दिन होते हैं
बस करने को सलाम
दूर ऊपर देखते हुऐ
फहराते हुऐ तिरंगे को
और नीले आसमान को




किसने कह दिया
चलते रहिये
बने हुऐ
रास्तों पर पुराने
बना कर पंक्तियाँ
मिला कर कदम
बचा कर
अपने स्वाभिमान को


उतर कर तो देखिये
बाहर किनारे
से सड़क के लेकर
भीड़ एक बेतरतीब
चिल्लाते हुऐ कहीं
किसी बियाबान को

सभी कुछ सीखना
जरूरी नहीं है
लिखी लिखाई
किताबों से पढ़कर
एक ही बात को
रोज ही सुबह
और शाम को


दिख रही है
मौज में आयी हुई
तालीमें घर की
सड़क पर पत्थर
मारती हुई बच्चों
के मुकाम को



सम्भाल कर
रखे हुऐ है पता नहीं
कब से सोच में
तीन रंग झंडा एक
और कुछ दुआएं
अमनोचैन की
याद करते हुए
मुल्क-ए-राम को


लगा रहता है
‘उलूक’
समझने में
झंडे के बगल में
आ खड़े हुऐ
एक रंगी झंडे
की शखसियत
सत्तर मना लिये
कितने और भी
मनायेगा अभी
गणतंत्र दिवस
बढ़ाने को
गणों के
सम्मान को ।



चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com

शनिवार, 15 मार्च 2014

होली को होना होता है बस एक दिन का सनीमा होता है

मित्रों के
लिये कम
दुश्मनों से
गले मिलने
के लिये
कुछ ज्यादा
होनी होती है
होली कई 
कई सालों
के गिले शिकवे
दूर करने की
एक मीठी सी
गोली होती है
बस एक दिन
के लिये
“आप” होते हैं
एक “हाथ”
में “कमल”
एक हाथ
में “लालटेन”
भी होनी होती है
“हाथी” की सूँड
से रंगों की बरसात
हरे सफेद नारंगी
रंग के “तिरंगे”
को “लाल” रंग
से सलामी
लेनी होती है
सफेद टोपी
किसी की भी हो
रंग भरी हो
आड़ी तिरछी हो
सभी के सिर पर
होनी होती है
“साईकिल” के
सवारों की
मेजबानी “कार”
वालों को
लेनी होती है
कहीं “गैससिलेण्डर”
कहीं “पतंग”
कहीं कहीं
जेब काटने
की “कैंची”
एक होनी
होती है
एक दिन
ही होता है
बिना पिये
जिस दिन
हर किसी
को भाँग
चढ़ी होनी
होती है
नेता कौन
अभिनेता कौन
मतलब ही नहीं
होना होता है
जनता हूँ
जनता को
एसा कुछ भी
कहीं भी नहीं
कहना होता है
बस एक ही दिन
प्यार मनुहार और
गिले शिकवे दूर
करने के लिये
होना होता है
जिसके होने को
हर कोई “होली”
होना कहता है
ना हरा होना
होता है ना
लाल होना होता है
जो होना होता है
बस काला और
सफेद होना होता है
एक दिन के
कन्फ्यूजन से
करोड़ों को
हजारों दिन
आगे के लिये
रोना होता है
होली हो लेती
है हर बार
चढ़े हुए रंगों
को उतरना
ही होता है
बाकी के
पाँच साल
का हर दिन
“उलूक”
देश की
खाल खीँचना
और
निचोड़ना
होता है
बुरा होता
भी है तो
बुरा नहीं
लगना होता है
होली की
शुभकामनाऐं
ले दे कर
सबको सब से
"बुरा ना मानो होली है"
बस कहना
होता है ।

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

देश बड़ा है घर की बनाते हैं

देश की सरकार
तक फिर कभी
पहुँच ही लेगें
चल आज अपने
घर की सरकार
बना ले जाते हैं
अंदर की बात
अंदर ही रहने
देते हैं किसी को
भी क्यों बताते हैं
ना अन्ना की टोपी
की जरूरत होती है
ना ही मोदी का कोई
पोस्टर कहीं लगाते हैं
मनमोहन को चाहने
वाले को भी अपने
साथ में मिलाते हैं
चल घर में घर की ही
एक सरकार बनाते हैं
मिड डे मील से हो
रही मौतों से कुछ तो
सबक सीख ले जाते हैं
जहर को जहर ही
काटता है चल
मीठा जहर ही
कुछ कहीं फैलाते हैं
घर के अंदर लाल
हरे भगवे में तिरंगे
रंगो को मिलाते हैं
कुछ पाने के लिये
कुछ खोने का
एहसास घर के
सदस्यों को दिलाते हैं
चाचा को समझा
कुछ देते हैं और
भतीजे को इस
बार कुछ बनाते हैं
घर की ही तो है
अपनी ही है
सरकार हर बार
की तरह इस
बार भी बनाते हैं
किसी को भी इस
से फरक नहीं
पड़ने वाला है कहीं
कल को घर से
बाहर शहर की
गलियों में अगर
हम अपने अपने
झंडों को लेकर
अलग अलग
रास्तों से निकल
देश के लिये एक
सरकार बनाने
के लिये जाते हैं ।