उलूक टाइम्स: बुद्धिजीवियों
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रविवार, 1 जुलाई 2012

योगी लोग

घर हमारा
आपको
बहुत ही
स्वच्छ
मिलेगा

कूड़ा
तरतीब
से संभाल
कर के

नीचे
वाले पड़ोसी
की गली में

पौलीथिन में
पैक किया
हुआ मिलेगा

पानी हमारे
घर का
स्वतंत्र रूप
से खिलेगा

वो गंगा
नहीं है कि
सरकार
के इशारों
पर उसका
आना जाना
यहां भी चलेगा

जहाँ उसका
मन चाहेगा
बहता ही
चला जायेगा

किसी की
हिम्मत नहीं है
कि उसपर
कोई बाँध बना
के बिजली
बना ले जायेगा

नालियों में
कभी नहीं बहेगा
जहां भी मन
आये अपनी
उपस्थिति
दर्ज करायेगा

हम ऎसे वैसे
लोग नहीं हैं
अल्मोड़ा शहर
के वासी हैं
गांंधी नेहरू
विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों
ने भी कभी
इस जगह की
धूल फाँकी है

इतिहास में
बुद्धिजीवियों
के वारिसों
के नाम से
अभी भी
इस जगह को
जाना जाता है

पानी भी
पी ले
कोई मेरे
शहर का
तो बुद्धिजीवी
की सूची में
अपना नाम
दर्ज कराता है

योगा करना
जिम जाना
आर्ट आफ
लिविंग के
कैम्प लगाना
रामदेव और
अन्ना के
नाम पर
कुर्बान होते
चले जाना

क्या क्या
नहीं आता
है यहां के
लोगों को
सीखना
और
सिखाना

सुमित्रानन्दन पंत
के हिमालय
देख देख
कर भावुक
हो जाते हैं

यहाँ की
आबो हवा
से ही लोग
पैदा होते
ही योगी
हो जाते है

छोटी छोटी
चीजें फिर
किसी को
प्रभावित नहीं
करती यहाँ

कैक्टस के
जैसे होकर
पानी लोग
फिर कहाँ
चाहते हैं

अब आप को
नालियों और
कूड़े की पड़ी
है जनाब

तभी कहा
जाता है
ज्यादा पढ़ने
लिखने वाले
लोग बहुत
खुराफाती
हो जाते हैं

अमन चैन
की बात
कभी भी
नहीं करते

फालतू बातों
को लोगो को
सुना सुना
सबका दिमाग
खराब यूँ ही
हमेंशा करने
यहाँ भी
चले आते हैं।

बुधवार, 2 मई 2012

सरकार का आईना

उन्होंने
जैसे ही
एक बात
उछाली

मैंने तुरन्त
अपने मन
की जेब
में सम्भाली

घर आकर
चार लाईन
लिख
ही डाली

कह रहे थे
जोर लगाकर

किसी
राज्य की
सरकार का
चेहरा देखना
हो अगर 

उस राज्य के
विश्वविद्यालय 
पर सरसरी
नजर डालो

कैसी चल
रही है सरकार
तुरत फुरत में
पता लगालो

वाह जी
क्या इंडीकेटर
ढूंढ के चाचा
जी लाये हैं

अपनी पोल
पट्टी खुद ही
खोलने का
जुगाड़
बनाये हैं

मेरी समझ
में भी बहुत
दिनों से
ये नहीं
आ रहा था

हर रिटायर
होने वाला
शख्स
कोर्ट जा जा
कर स्टे
क्यों ले
आ रहा था

अरे
जब बूढ़े
से बूढ़ा
सरकार में
मंत्री हो
जा रहा था

इतने
बड़े राज्य
का बेड़ा गर्क
करने में
बिल्कुल भी
नहीं शरमा
रहा था

तो
मास्टर जी
ने 
किसी
का 
क्या 
बिगाड़ा था

क्यों
उनको साठ
साल होते ही
घर चले जाओ
का आदेश दिया
जा रहा था

काम धाम के
सपने
खाली पीली
जब राजधानी
में जा कर
सरकार जनता
को दिखाती है

उसी तरह
विश्विद्यालय
की गाड़ी
भी तो
खरामे खरामे
बुद्धि का
गोबर बनाती है

जो कहीं
नहीं हो
सकता है
उसे करने की
स्वतंत्रता भी
यहाँ आसानी से
मिल जाती है

बहुत सी
बाते तो
यहाँ कहने
की मेरी भी
हिम्मत नहीं
हो पाती है

सुप्रीम कोर्ट
भी केवल
बुद्धिजीवियों
के झांसे
में ही आ
पाती है

वाकई में
सरकार का
असली चेहरा
तो हमें
ये ही
दिखाती है।