उलूक टाइम्स: बेहयाई
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शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

बेहयाई से लिखे बेहयाई लिखे माफ होता है



लहर कब उठेगी पता नहीं होता है
जरूरी नहीं उसके उठने के समय हाथ में किसी के कैमरा होता है

शेर शायरी लिखने की बातें हैं शायरों की
ऐसा सभी सुनते हैं बहुतों को पता होता है

बहकती है सोच जैसे पी कर शराब
सोचने वाला पीने पिलाने की बस बातें सोचता रहता है

कुछ आ रहा था मौज में
लिख देना चाहिये सोच कर लिखना शुरु होता है

सोच कब मौज में आयी
सोचा हुआ कब बह गया होता है किसे पता होता है

रहने दे चल कुछ फिर और डाल साकी सोच के गिलास में
शराब और गिलास का रिश्ता हमेशा ही बचा होता है

कोई गिला कोई शिकवा नहीं बताता है अखबार वाला भी
कभी पढ़ने में सुनने में ऐसा आया भी नहीं होता है

‘उलूक’ की आदत है इधर की उधर करने की
जैसा कहावतों में किसी की आदत के लिये कहा होता है

बेहयाई बेहया की कभी किसी एक दिन लिख भी दे
रोज लिखना शरीफों की खबर ठीक नहीं होता है

किसी दिन शरीफों के मोहल्ले में
शराफत से कुछ नहीं बोल देना भी ठीक होता है।

चित्र साभार: Shutterstock

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

कुछ नया लिख कोशिश तो कर उल्टा ही लिख

किसी
एक दिन
लिख क्यों
नहीं लेता
अपनी तन्हाई

पूरी
ना सही
आधी अधूरी
ही सही

अपने लिये
ना सही
किसी और को
समझाने के
लिये ही सही

पता
तो चले
तन्हाई
तन्हाई
का अंतर

तुझे भी
और
किसी और
को भी

सभी
लिखते हैं
बताने के लिये

वो सब
जो पता
होता है

कोई
कहाँ लिखता है
वो सब कुछ
जो सच में
छुपा होता है

दिखाने की
हो चुकी है
दुनियाँ तो
दिखाने के
लिये ही सही

कुछ लिख
तो सही
अजीब सा
ही सही

जो है
लिखा हुआ
कुछ भी
नया नहीं

कुछ है नया
लिखा हुआ
बताने के
लिये ही सही

तन्हाई
कोई नहीं
लिखता है
कभी हिम्मत
तो कर

कुछ लिख
कोशिश तो कर
ना पढ़े
ना समझे कोई

आज तक
कौन सा समझ
ले रहा है तेरा लिखा

समझा कर
कौन सा
मर जायेगा
लिख कर
अपनी तन्हाई

समझा कर
मर भी गया
तो कुछ नहीं होगा

तन्हा तन्हा
मरने वालों के
गम को
कुछ तो
कम कर

चल
तन्हाई पर
लिख ही ले आज

कुछ अपना
और
कुछ किसी का
बोझ तो
कम कर

जो
होना है वो
हो रहा है
होता रहेगा

तू लिखेगा
लिखता रहेगा

कभी अपनी
अंगड़ाई
पर लिख
कभी अपनी
तन्हाई
पर लिख

कोशिश
तो कर
कुछ नया
लिखने की
ऊपर वाले की
बेहयाई पर लिख ।