उलूक टाइम्स: लहर
लहर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
लहर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

भीड़ से निकल बस्ती नहीं शहर लिख दे



एक लहर उठती है उठे
कहर लिख दे
एक लहर बैठती है बैठे
ठहर 
लिख दे

भीड़ से निकल
बस्ती नहीं शहर लिख दे
कोशिश कर
कुछ मीठा सा जहर लिख दे

नशे में रह
मत निकल बाहर
बहर लिख दे
रेत के टीले कहीं मैदान कहीं
लहर लिख दे

मांग कुछ
थोड़ा सा कोशिश कर
महर लिख दे
सूखे खेत के बीच
जा बड़ी सी एक 
नहर लिख दे

कुछ तो लिख
रोज नहीं कभी
एक 
पहर लिख दे
किस को पड़ी है
‘उलूक’ गर
गहर लिख दे |

चित्र साभार: http://clipart-library.com/poison-cliparts.html

महर = वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है।

कहर= गुस्सा, क्रोध।

बहर= आकाश, आस्मान।

गहर= पृथ्वी-तल में पाया जानेवाला कोई ऐसा गहरा गड्ढा, जो प्राकृतिक कारणों से बना हो

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

बेहयाई से लिखे बेहयाई लिखे माफ होता है



लहर कब उठेगी पता नहीं होता है
जरूरी नहीं उसके उठने के समय हाथ में किसी के कैमरा होता है

शेर शायरी लिखने की बातें हैं शायरों की
ऐसा सभी सुनते हैं बहुतों को पता होता है

बहकती है सोच जैसे पी कर शराब
सोचने वाला पीने पिलाने की बस बातें सोचता रहता है

कुछ आ रहा था मौज में
लिख देना चाहिये सोच कर लिखना शुरु होता है

सोच कब मौज में आयी
सोचा हुआ कब बह गया होता है किसे पता होता है

रहने दे चल कुछ फिर और डाल साकी सोच के गिलास में
शराब और गिलास का रिश्ता हमेशा ही बचा होता है

कोई गिला कोई शिकवा नहीं बताता है अखबार वाला भी
कभी पढ़ने में सुनने में ऐसा आया भी नहीं होता है

‘उलूक’ की आदत है इधर की उधर करने की
जैसा कहावतों में किसी की आदत के लिये कहा होता है

बेहयाई बेहया की कभी किसी एक दिन लिख भी दे
रोज लिखना शरीफों की खबर ठीक नहीं होता है

किसी दिन शरीफों के मोहल्ले में
शराफत से कुछ नहीं बोल देना भी ठीक होता है।

चित्र साभार: Shutterstock

बुधवार, 19 मार्च 2014

लहर दर लहर बहा सके बहा ले अपना घर

ना पानी की
है लहर
ना हवा की
है लहर
बस लहर है
कहीं किसी
चीज की है
कहीं से कहीं
के लिये चल
रही है लहर
चलना शुरु
होती है लहरें
इस तरह की
हमेशा ही नहीं
बस कभी कभी
लहर बनती
नहीं है कहीं
लहर बनाई
जाती है
थोड़ा सा
जोर लगा कर
कहीं से कहीं को
चलाई जाती है
हाँकना शुरु
करती है लहर
पत्ते पेड़ पौंधों
को छोड़ कर
ज्यादातर भेड़
बकरी गधे
कुत्तों पर
आजमाई जाती
है लहर
बहना शुरु
होता है
कुछ कुछ
शुरु में
लहर के
बिना भी
कहीं को
कुछ इधर
कुछ उधर
बाद में कुछ
ले दे कर
लहराई जाती
है लहर
आदत हो चुकी
हो लहर की
हर किस को
जिस जमीन पर
वहाँ बिना लहर
दिन दोपहर
नींद में ले
जाती है लहर
कैसे जगेगा
कब उठेगा
उलूक नींद से
जगाना मुश्किल
ही नहीं
नामुमकिन है तुझे
लहर ना तो
दिखती है कहीं
ना किसी को
कहीं दिखाई
जाती है लहर
सोच बंद रख
कर चल उसी
रास्ते पर तू भी
हमेशा की तरह
आपदा आती
नहीं है कहीं
भी कहीं से
लहर से लहर
मिला कर ही
हमेशा से लहर
में लाई जाती
है लहर
लहर को सोच
लहर को बना
लहर को फैला
डूब सकता है
डूब ही जा
डूबने की इच्छा
हो भी कभी भी
किसी को इस
तरह बताई नहीं
जाती है लहर
हमेशा नहीं चलती
बस जरूरत भर
के लिये ही
चलाई जाती
है लहर ।