उलूक टाइम्स: बड़ा बैनर
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सोमवार, 23 नवंबर 2015

गजब है सोचा भी नहीं कभी कभी ये सब भी यहीं पर होना है

उसे मालूम है
किसी के कुछ
भी कहने देने से
कहीं भी कुछ भी
नहीं होना है

उसी के सारे
कहने वालों
ने मिलकर
सब कुछ
उसी का कहना
उसी के शब्दों
उसी की भाषा
उसी की आवाज
में ही कहना है

बड़ा बैनर है
बड़ी बातें को
बड़े बड़े खम्भों
के बीच में बड़ी
शान से रहना है

खड़े हैं चाहे बड़े हैं
खम्भों का बोझ
कौन सा किसी
को अपने कंधों
पर ही सहना है

छोटे छोटे
छोटे नारों के
छोटे विचारों के
छोटे करतब बाजों
को एक खम्भे से
दूसरे खम्भे तक
दौड़ते कूदते रहना है

बहस होनी है
देश के लिये
देशवासियों
के सिवा
इसने उसने
सभी ने
उसमें रहना है
भाग लेना है

कहना क्या है
क्या नहीं है
ना सोचना
इसने है
ना उसने है
समझने
की बात है
समझने
वालों के लिये
नासमझ होने से
दिखाने से इसका
उसका सबका
ही भला होना है

अपनी
बातों को
अपनी सोच
के साथ
बस चाँद तारों
की दुनियाँ
के लिये
छोड़ देना है

मत कर
‘उलूक’
इतनी हिम्मत
सब कुछ
कह देने
की अपनी

अपनी अपनी
कह देने वाले
को सुना है
अब यहाँ
नहीं कहीं
और जा
कर के
रहना है ।

चित्र साभार: es.dreamstime.com