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बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

सत्य अहिंसा सत्याग्रह नाटक के अभ्यास के लिये रोज एक मंचन का अभिनव प्रयोग हो रहा है


जब
गाँधी
मारा गया था

तब
वो
पैदा भी
नहीं हुआ था

उसकी
किताबों से
उसे
बताया गया था

गाँधी
जिस दिन
पैदा हुआ था

असल में
उस दिन
शास्त्री
पैदा
हुआ था

जो
असली 
था
सच था

उसने
ना
गाँधी को
पढ़ा था

ना ही
उसे

शास्त्री
का
ही
पता था

उसे
समझाया
गया था

गाँधी
मरते
नहीं है

शास्त्री
मरते हैं

 इसलिये
गाँधी की
मुक्ति के लिये

शास्त्री
जरुरी है

कभी
कोई
गाँधी की
बात करे

उसे
तुरन्त
शास्त्री
की बात
शुरु
कर देनी
चाहिये

गाँधी
अभी तक
जिन्दा है

और
इसी बात की
शर्मिंदगी है

उसकी
मुक्ति
नहीं
हो पा रही है

देख लो

अभी भी
याद किया
जा रहा है

आज
उसकी
एक सौ
पचासवीं
जयन्ती है

गाँधी को
तब
गोली लगी थी

वो
मरा
नहीं था

मर तो
वो
आज रहा है

रोज
उसे
तिल तिल
मरता
हर कोई
देख रहा है

‘उलूक’
समझाकर

कोई
कुछ
इसलिये
नहीं कह रहा है

क्योंकि
कहीं
गाँधी
होने की

अतृप्त
इच्छा के साथ

पर्दे
के पीछे से
धीरे धीरे
गाँधी
होने के लिये

सत्य अहिंसा सत्याग्रह
नाटक
के
अभ्यास के लिये

रोज
एक मंचन
का

अभिनव प्रयोग
हो रहा है ।

चित्र साभार: https://www.facebook.com/pg/basavagurukul/posts/