उलूक टाइम्स: लोमड़ी
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बुधवार, 27 मई 2015

परेशान हो जाना सवाल देख कर सवाल का जवाब नहीं होता है



हमाम
के 
अंदर रहता है 

अपने
खुद के 
पहने हुऐ 
कपड़ों को 
देख कर 
परेशान होता है 

दो चार
जानवरों 
के बारे में
बात 
कर पाता है 

जिसमें
एक गधा 
एक लोमड़ी
या 
एक कुत्ता होता है 

सब होते हैं
जहाँ 
वहाँ
खुद मौजूद 
नहीं होता है 

इंसानों
के बीच
एक गधे को 
और
गधों के बीच 
एक इंसान
का रहना 

एक
अकेले के लिये 
अच्छा
नहीं होता है 

ढू‌ंंढ लेते हैं
अपनी 
शक्ल से
मिलती 
शक्लें
लोग
हमेशा ही 

इस
सब के लिये 
आईना
किसी के 
पास होना
जरूरी 
नहीं होता है 

इज्जत उतारने 
के लिये
कुछ 
कह दिया जाये 
किसी से 

किसी
किताब में 
कहीं कुछ
ऐसा 
लिखा
भी 
नहीं होता है 

अपने
कपड़े तेरे 
खुद के ही हैं 
‘उलूक’ 

नंगों के 
बीच जाता है 
जिस समय 

कुछ
देर के लिये 
उतार

क्यों 
नहीं देता है ?

चित्र साभार: imageenvision.com

मंगलवार, 26 मई 2015

शतक इस साल का कमाल आस पास की हवा के उछाल का

फिर से
हो गया
एक शतक

और
वो भी पुराने
किसी का नहीं

इसी का
और इसी
साल का

जनाब
क्रिकेट नहीं
खेल रहा है
यहाँ कोई

ये सब
हिसाब है
लिखने
लिखाने के
फितूर के
बबाल का

करते नहीं
अब शेर कुछ
करने दिया
जाता भी नहीं
कुछ कहीं

जो भी
होता है
लोमड़ियों
का होता है
हर इंतजाम

दिखता
भी है
बाहर ही
बाहर से

बहुत ही
और
बहुत ही
कमाल का

हाथियों
की होती
है लाईन
लगी हुई
चीटिंयों
के इशारे पर

देखने
लायक
होता है
सुबह से लेकर
शाम तक

माहौल उनके
भारी भरकम
कदमताल का

मन ही मन
नचाता है
मोर भी ‘उलूक’

सोच सोच कर
मुस्कुराते हुऐ

जब मिलता
नहीं जवाब
कहीं भी
देखकर
अपने
आस पास

सभी के
पिटे पिटाये से
चेहरों के साथ

बंद आँख और
कान करके
चुप हो जाने
के सवाल का ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म की शिक्षा जरूरी है भाई नहीं तो लगेगा यहीं पर है मार खाई

चुनाव
की आहट

धर्म ने
सुन ली है

और

भटकना
शुरु हो गई हैं

कुछ
अतृप्त आत्माऐं

मुक्ति की चाह में

चुनाव
के बाद

अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये

कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं

जिनमें

किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है

वैसे भी

पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म

बस
कुछ विशेष
लोगों को

मिला होता है
अधिकार
सिखाने का

धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी

आदमी होना

सबसे बड़ा
अधर्म होता है

सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है

कोमल
मन में
बिठाया जाता है

एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ

सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी

जिस
दीक्षा को देकर

उसे
सड़क पर

लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है

उस
शीशे में

भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी

अभी
नहीं आ
पा रहा है

आने
वाले समय
के लिये

धार्मिक
गुरु लोग

जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में

अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं

उनके
फूटने से

वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से  जानते हैं

बस

प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को

ये पता
नहीं होता है

कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ

यही लोग

कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे

धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ

कुछ
कोमल मन

अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते

हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते

अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे

और

उस समय
उनके ही

धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग

गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे

अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक

भुना रहे होंगे।

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

क्षमा विष्णु शर्मा : संशोधन पञ्चतन्त्र के लिये


कल
की दावत में 
बस लोमड़ी दिखी थाली के साथ

पर
नजर नहीं आया 
कहीं बगुला अपनी सुराही के साथ 

विष्णु शर्मा 
तुम्हारा पञ्चतन्त्र 
इस जमाने में पता नहीं क्यों 
थोड़ा सा कहीं पर कतरा रहा है 

पैंतरे 
दिखा दिखा कर के नये 
नये छेदों से पता नहीं 
कहाँ से कहाँ घुस जा रहा है 

कुछ दिनों से 
क्योंकि
लोमड़ी और बगुला साथ नजर आ रहे हैं 

दावत में 
एक दूसरे को अपने अपने
घर भी नहीं बुला रहे हैं 

किसी तीसरी जगह 
साथ साथ दोनो अपनी उपस्थिति 
जरूर दर्ज करा रहे हैं 

लोमड़ी
अपनी थाली ले कर चली आ रही है 

बगुला भी 
सुराही दबाये बगल में 
दिख जा रहा है 

ना बगुला 
अपनी सुराही 
लोमड़ी की तरफ बढ़ाता है 

ना ही लोमड़ी
बगुले को 
थाली में खाने के लिये बुलाती है 

पर मजे की बात है 
दोनो ही मोटे होते जा रहे हैं 

दोनो ही 
कुछ ना कुछ लेकिन जरूर खा रहे हैं 

बहुत 
समझदार 
हो गये हैं सारे जानवर जंगल के 

विष्णु शर्मा जी 
फिर से आ जाओ 
नया पञ्चतन्त्र लिखो और देख लो 

जंगल राज 
कैसे जंगल से 
आदमी में घुस के आ गया है 

और 
जानवर 
आदमी बन के आदमी के अंदर 
पूरा का पूरा छा गया है । 

चित्र साभार: https://hubpages.com/

सोमवार, 24 सितंबर 2012

खरपतवार से प्यार

जंगल की सब्जियों
फल फूल को छोड़

घास फूस खरपतवार
के लिये थी जो होड़

उसपर शेर ने जैसे
ही विराम लगवाया

फालतू पैदावार
के सब ठेकों को

दूसरे
जंगल के
घोडों को
दिलवाने का
पक्का
भरोसा दिलवाया

लोमड़ी के
आह्वाहन पर
भेड़ बकरियों ने
सियारों के साथ
मिलकर आज
प्रदर्शन करवाया

परेशानी क्या है
पूछने पर
ऎसा कुछ
समझ में है आया

बकरियों ने
अब तक
घास के साथ
खरपतवार को
जबसे है उगाया

हर साल की बोली में
हजारों लाखों का
हेर फेर है करवाया

जिसका
हिसाब किताब
आज तक कभी भी
आडिट में नहीं आया

लम्बी चौड़ी
खरपतवार के बीच में
सियारों ने भी
बहुत से खरगोशों
को भी शिकार बनाया

जिसका पता
किसी को
कभी नहीं चल पाया

एक दो खरगोश
का हिस्सा
लोमड़ी के हाथ भी
हमेशा ही है आया

माना कि अब
खाली सब्जी ही
उगायी जायेगी

सबकी सेहत भी
वो बनायेगी

पर घास
खरपतवार की
ऊपर की कमाई
किसी के हाथ
नहीं आयेगी

सीधे सीधे
हवा में घुस जायेगी

इसपर नाराजगी
को है दर्ज कराया

बीस की भीड़ ने
एक आवाज से
सरकार को
है चेताया

सौ के नाम
एक पर्ची में
लिखकर

कल के
अखबार में
छपने के लिये
भी है भिजवाया ।