पंडित जी बहुत ही व्यस्त हो जाते हैं
श्राद्ध सामग्री के लिये एक लम्बी सूची भी प्रिंट कराते हैं
दूध दही घीं शहद काजू किशमिश
बादाम फल मिठाई कपड़े लत्ते
अच्छी क्वालिटी और अच्छी दुकान से
लाने का आदेश साथ में दे जाते हैं
खुद ही खा कर पितर लोगों तक खाना पहुंचाते हैं
इसलिये भोजन छप्पन प्रकार का
होना ही चाहिये समझा जाते हैं
सुबह सात बजे का समय देकर दिन में
दो बजे से पहले कभी नहीं आ पाते हैं
देरी का कारण पूछने पर
बताने में भी नहीं हिचकिचाते हैं
लोग बाग जीते जी अपने मां बाप के लिये
कुछ नहीं कर पाते हैं
इसलिये मरने के बाद उनकी इच्छाओं को पूरा
जरूर करना चाहते हैं
अपनी इच्छाओं को
इसके लिये मारना भी पड़े
तब भी नहीं हिचकिचाते हैं
मृतात्मा के जीवन काल के शौक को
पंडित से पूरा कराते हैं
जजमान
आप इतना भी नहीं समझ पाते हैं
मरने के बाद
मरने वाले क्योंकि भूत बन जाते हैं
उसके डर से
अपने को निकालने के लिये लोग
कुछ भी कर जाते हैं
कुछ दिन
हमारी भी चल निकलती है गाड़ी
ऐसे लोग वैसे तो कभी हाथ नहीं आते हैं
कुछ जजमान
पीने के शौक रखने वाले
पितर के नाम से पंडित जी को अंग्रेजी ला कर दे जाते हैं
उनके यहां
पहले जाना बहुत जरूरी होता है इन दिनो
इसलिये
आपके यहां थोड़ा देर से आते हैं ।
आपके यहां थोड़ा देर से आते हैं ।
चित्र साभार: https://marathi.webdunia.com/
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआप की ये रचना आने वाले शनीवार यानी 28 सितंबर 2013 को ब्लौग प्रसारण पर लिंक की जा रही है...आप भी इस प्रसारण में सादर आमंत्रित है... आप इस प्रसारण में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...
उजाले उनकी यादों के पर आना... इस ब्लौग पर आप हर रोज कालजयी रचनाएं पढेंगे... आप भी इस ब्लौग का अनुसरण करना।
आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।
मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]
आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
जवाब देंहटाएंजो भूत से डरता है पक्का श्राद्ध करता है
सोलह दिन के पित्र पक्ष
के शुरु होते ही
पंडित जी बहुत ही
व्यस्त हो जाते हैं
शनिवार 28/09/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
जब कोई बात बिना लाग लपेट के कही जाती है ...तब ऐसी ही सुंदर पोस्ट बन जाती है .. बधाई आपको // मेरे भी ब्लॉग पर आये...
जवाब देंहटाएंhttp://babanpandey.blogspot.com
बहुत बढ़िया , सुशिल जी आपने तो सबकी पोलखोल कर रख दी
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (28-09-2013) को ""इस दिल में तुम्हारी यादें.." (चर्चा मंचःअंक-1382)
पर भी होगा!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सही लिखा है |सरल और सामयिक |
जवाब देंहटाएंआशा
सुशील भाई बहुत सटीक व्यंग्य। समसामयिक और सन्देश परक।
जवाब देंहटाएंएक बार कबीर के गुरु ने सभी शिष्यों को कहा -श्राद्ध पक्ष लग रहें हैं सभी नगर को जाओ फल फूल दूध शक्कर चावल आदि सामग्री लाओ पितरों का श्राद्ध करना है सब शिष्य लौट आये सामिग्री लिए लेकिन कबीर जब रात तक भी न पहुंचे तो गुरुदेव को चिंता हुई शिष्यों में से एक ने बताया वह तो यही मोड़ पे बैठा है। गुरुदेव ने कहा कबीर क्या कर रहे हो -गुरुदेव ये गाय आज दोपहर मर गई मैं इसलिए बैठाहूँ ये उठे तो मैं इसे कुछ खिलाऊ। गुरु बोले ये अब नहीं उठेगी मर गई तो खायेगी कैसे कबीर बोले जैसे आपके पित र खायेंगे। उन्हें तो मरे बरसों बीत गए।
बढ़िया -
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
पंडिताइन खुश हुई, बढ़ी मास की आय |
किटी पार्टी में गईं, देती वहां डुबाय ||
बस यही छूट गया था
हटाएंआपने पूरा कर दिया !
आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 07 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसच कहना भी एक कला है जिसमें आपकी लेखनी सक्षम है
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