उलूक टाइम्स: उठा
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शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

क्या लिखे क्यों लिखे किसके लिये लिखे जानेजां



कुछ खुरच दीवार से मिट्टी थोड़ी सी कुछ जमीन से उठा
मिला के देख रंग से रंग ना मिले धूप में ले जा और सुखा

मिट्टी हो या हो राख आग हो या धुआं हो मत उलझ और जा
आता रहा है बरसों से यहां सोच मत और आ फिर से आ

गिट्टियाँ खेलते कोई लिखने लगे आंगन जरा मत भरमा
अपने लिए हैं खेल अपने हैं मैदान कौन कहता है शरमा

मन नहीं है टूटते हैं पुल शब्दों के इधर और उधर वहाँ
सबके अपने खिलौने आयें सब और खेलें मिलकर यहां

खेलें दो या खेलें ग्यारह हजारों करोड़ों हैं तो सही मेहरबां
‘उलूक’ सत्तर निकल लिए सत्तर आने हैं साल अभी कद्रदां |

चित्र साभार:
https://www.facebook.com/photo/?fbid=1898646290178703&set=a.1894919707218028


मंगलवार, 18 नवंबर 2014

कहने को कुछ नहीं है ऐसे हालातों में कैसे कोई कुछ कहेगा

दिख तो रहा है
अब मत कह देना
नहीं दिख रहा है
क्यों दिख रहा है
दिखना तो
नहीं चाहिये था
क्या हुआ ऐसा
दिखाई दे गया
और जो दिखा
वही सच है
ऐसे कई सच
हर जगह
सीँच रहे हैं
खून से
जिंदा लाशों को
और बेशरम लाशें
खुश हैं व्यस्त हैं
बंद आँखों से
मरोड़ते हुऐ
सपने अपने भी
और सपनों के भी
ये दिखना दिखेगा
कोई कुछ कहेगा
कोई कुछ कहेगा
मकान चार खंभों पे
टिका ही रहेगा
खंभा खंभे
को नोचेगा
एक गिरेगा
तीन पर हिलेगा
दो गिरेंगे
दो पर चलेगा
लंगड़ायेगा
कोई नहीं देखेगा
लंगड़ा होकर भी
गिरा हुआ खंभा
मरेगा नहीं
खड़ा हो जायेगा
फिर से मकान
की खातिर नहीं
खंभे की खातिरदारी
के लिये
ऐसे ही चलेगा
कल मकान में
जलसा मिलेगा
दावत होगी
लाशें होंगी
मरी हुई नहीं
जिंदा होंगी
तालियाँ बजेंगी
एक लाल गुलाब
कहीं खिलेगा
आँसू रंगहीन
नहीं होंगे
हर जगह रंग
लाल ही होगा
पर लाली नहीं होगी
खून पीला हो चुकेगा
कोई नहीं कुछ कहेगा
कुछ दिन चलेगा
फिर कहीं कोई
किसी और रंग का
झंडा लिये खड़ा
झंडे की जगह ले लेगा
खंबा हिलेगा
हिलते खंबे को देख
खंबा हिलेगा
मकान में जलसा
फिर भी चलेगा।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

शनिवार, 25 अगस्त 2012

पैर जमीन से उठा बड़ा आदमी हो जा

जब तक
जमीन से
नहीं उठ पायेगा

बड़ा
आदमी तुझे
कोई नहीं बनायेगा

सुन
अगर
बड़ा आदमी

सच्ची
में तू बनना
बहुत ही
ज्यादा चाहता है

तो मेरी
एक सस्ती
आसान सी
सलाह को
क्यों नहीं
अपनाता है

अभी
कहना मान जा
और कल को ही
बडे़ आदमी की
सूची देखने
किसी बडे़ आदमी
के पास चला जा

वैसे
अपना खुद भी
तो सोचा कर कुछ जरा

कब तक
छोटे आदमी
की तरह करेगा मरा मरा

कोशिश कर
पाँव थोड़ा सा सही
जमीन से उठा
हवा में तो कुछ लटका

अब चाहे
इसके लिये
अपना घर बेच जेवर बेच
या फिर जमीन बेच के आ

साईकिल
ही सही
अपने नीचे तो लगा

बस
जमीन से पैर
कुछ ऊपर उठा

हैसियत
इससे ज्यादा की
समझता है अपनी अगर
तो स्कूटर लगा
मोटरसाईकिल लगा

ज्यादा ही
बड़ा होना हो अगर
तो चल
कार ही ला कर के लगा

पर देख
बड़ा आदमी
अब तो हो ही जा

सबसे
बड़ा आदमी
होने की ख्वाहिश
रखता है तू
थोड़ी सी भी अगर
तो ऎसा कर

हवाई जहाज
का टिकट एक मंगवा
उस में बैठ और
पैर छोड़ पूरा का पूरा
हवा में चला जा

सबसे
बडे़ आदमी
की सूची में जाकर
के जुड़जा और
हवा भी खा  ।