उलूक टाइम्स: बहुमत
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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

गुलामी आजाद कर रहे हैं ये तो मनमानी है आओ किसी की पाली हुयी एक ढोर हो जायें

दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से

किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें

आओ
एक चोर हो जायें

मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक

क्या परेशानी है

आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें

कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते

पहुचने की
किसने ठानी है

खोने का डर
निकालें दिल से

आओ
निडर होकर

किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें

सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में

कौन सा
बे‌ईमानी है

बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं

आओ
एक और हो जायें

पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं

‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें

आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

गुरुवार, 12 जून 2014

हद नहीं होती जब हदों के साथ उसे पार किया जाता है

हदें पार करना
आसान होता है

बस समझने तक
सालों गुजर जाते हैं

पिता जी किया
करते थे बस
हद में रहने की बात

शायद
उस समय
नहीं की जाती
होंगी पार हदें
उस तरह से
जिस तरह से पार
कर ली जाती हैं आज

बहुत आसान
होता है हदों को
पार कर ले जाना
यूँ ही खेल खेल में

बनाना
होता है बहुमत
दिखाना
भी होता है

वो सब
गलत होता है

जो अकेले
अकेले में
एक अकेले ने
कर लिया होता है

और
पिताजी
आप भी तो
अकेले ही
हुआ करते थे
लिये धनुष
और तीर
अपने विचारों का
अपने ही हाथ

सीखने
वाला भी
अकेला रहा
करता था
कभी भी नहीं
बन पाता था बहुमत

एक और एक
दो की बातों का
समझ में आने
लगा है अब
पार करने का
तरीका हदों को

सीखा
नहीं जाता है
लेकिन बस
सलीका
बहुमत बनाने का

समझ में
आती है
बहुत छोटी सी
एक बात

जो अकेले
किया जाता है
वो सही
कभी नहीं होता
गलत हो जाता है

बहुमत के द्वारा
एक अकेले को
हद में रहना
लेकिन
बहुत आसानी से
सिखा दिया जाता है

और
उसी हद को
बहुत प्यार से
बहुमत बना के
बहुत सी हदों के
साथ साथ शहीद
कर दिया जाता है

'उलूक'
अकेला चना
बस एक चना
ही रह जाता है।

सोमवार, 12 मई 2014

सियार ने खड़े किये हुऐ हैं कान होशियारी जरूर दिखायेगा

आज हो ही गया
लग पड़ कर पूरा
बहुत दिन से
लग रहा था
कहीं है कुछ तो
अधूरा अधूरा
कल से दो चार
दिन के लिये
कोई कहीं
नहीं जायेगा
उसके बाद कौन
कहाँ पहुँच जायेगा
ये सब मशीनों का
मूड ही बता पायेगा
किस ने खर्च किया है
और कुछ खरीदा है
किस को मौका मिला
है बेचने का जिसने
बेच भी दिया है
बहुमत बनेगा और
सौ आना पक्का बनेगा
पर शक्ल उसी तरह
की ही तो ले पायेगा
जिस तरह का बहुमत
रोज कोई अपने
आसपास हमेशा
अपने जैसों के
साथ मिल बैठ
कर बनायेगा
कान का पूँछ से
वैसे तो कम ही
पड़ता है मतलब
कान पूँछ के पास
हो सकता है
नहीं भी जायेगा
काम निकालने
निकलवाने की भी
प्रैक्टिस करनी
पड़ती है जनाब
काम निकालने
के लिये बिना
पूँछ वाला भी
किसी और की
पूँछ मोड़ कर
अपने कान के
पीछे से भी
निकाल ले जायेगा
अँगुली में लगा
हुआ काला निशान
इतनी जल्दी भी
फीका नहीं हो जायेगा
कहीं खिलेगा चमकेगा
कहीं नीला होते होते
काला पड़ जायेगा
जो भी होगा
अच्छा होगा
अच्छे को ही
आगे ला
कर दिखायेगा
नहीं भी होगा
तो अच्छा
ही आया है
मान कर तसल्ली
करने का
संदेश दे जायेगा
कितनी बार
हो चुका है
इसी तरह का
क्या पता
इस बार
कुछ नया
इतिहास बनायेगा
छोटे छोटे गाँवों से
मिलकर बने देश ने
हमेशा गाँव दिखाया है
इसी बार बताया
जा रहा है
शहर से
होता हुआ शहर
अपनी चाल दिखायेगा
सोलहवाँ सावन
है सरकार
सरकार बनने
बनाने में
देख लीजियेगा
सोलह गुल
जरूर खिलायेगा
इसकी बने तो इसकी
उसकी बने तो उसकी
जैसी कहने वालों का
बोलबाला हमेशा ही
जलवा बिखेरता रहा है
इस बार भी नहीं चूकेगा
अपना दाँव चलाने का
मौका जरूर
निकाल ले जायेगा ।

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

अच्छी तरह से समझ लेना अच्छा होता है जब कोई समझा रहा होता है

समझा कर
जब कोई
बहुत प्यार से
कुछ समझा
रहा होता है
बस अच्छे दिन
आने ही वाले हैं
तुझे और बस
तुझे ही केवल
बता रहा होता है
किसके आयेंगे
कब तक आयेंगे
कैसे आयेंगे
नहीं सोचनी
होती हैं ऐसे में
ऐसी बातें जिनको
सुलझाने में
समझने वाला
खुद ही उलझा
जा रहा होता है
देश सबका होता है
हर कोई देश की
खातिर ही अपने
को दाँव पर
लगा रहा होता है
किसको गलत
कहा जा सकता है
ऐसे में अगर
ये इसके साथ
और वो उसके साथ
जा रहा होता है
मतदाता होने का
फख्र तुझे भी
होना ही है कुछ दिन
तक ही सही
बेकार का कुछ सामान
सबके लिये ही बहुत
काम की चीज जब
हो जा रहा होता है
होना वही होता है
कहते हैं जो
राम के द्वारा
उपर कहीं आसमान में
रचा जा रहा होता है
क्या बुरा है
देख लेना ऐसे में
शेखचिल्ली का
एक सपना जिसमें
बहुमत मत देने
वाले का ही
आ रहा होता है
वो एक अलग
पहलू रहा होता है
बात का हमेशा से ही
समझाने वाला
समझाते समझाते
अपने आने वाले
अच्छे दिनों का
सपना समझा
रहा होता है
समझा कर
कहाँ मिलता है
एक समझाने वाला
ये वाला भी
कई सालों बाद
फिर उसी बात को
समझाने के लिये
ही तो आ जा
रहा होता है ।

बुधवार, 12 जून 2013

समाज को समझ सामाजिक हो जा

तेरे मन की जैसी नहीं होती है
तो 
बौरा क्यों जाता है 

सारे लोग लगे हैं जब लोगों को पागल बनाने में 
तू क्यों पागल हो जाता है 

जमाना तेजी से बदल रहा है 
कुछ तो अपनी आदतों को बदल डाल 
बात बात में फालतू की बात अब ना निकाल 

मान भी जा 
कुछ तो समझौते करने की आदत अब ले डाल 

देखता नहीं 
बढ़ती उम्र में भी आदमी बदल जाता है 
अच्छा आदमी होता है तो आडवानी हो जाता है 

अपने घर से शुरु कर के तो देख जरा 
थोड़ा थोड़ा घरवाली की बात पर
होना छोड़ दे अब टेढ़ा टेढ़ा

उसके बाद 
आफिस की आदतों में परिवर्तन ला 
साहब चाहते हों तुझे गधा भी बनाना 
वो भी बन कर के दिखा 
समझा कर 
तेरा कुछ भी नहीं जायेगा 
पर तेरा साहब जरूर एक धोबी हो जायेगा

सत्कर्म करने वाला ही मोक्ष पाता है 
किताबों में लिखा है ऎसा माना जाता है 
ऎसी किताबों को कबाड़ी को बेच कर के आ 
बहुमत के साथ रह बहुमत की बात कर 
बहुमत के मौन की इज्जत करने में
तेरा क्या जाता है 

तू इतना बोलता है 
तेरे को सुनने क्या कोई आता है 
समझने वाले लोग
समझदारों की बात ही समझ पाते हैं 
तेरे भेजे में ये कड़वा सच क्यों नहीं घुस पाता है 

अब भी समय है 
समझदारों में जा कर के शामिल हो जा 
अन्ना की टोपी पहन मोदी को माला पहना 
मौका आता है जैसे ही राहुल की सरकार बना 
सबके मन की जैसी करना अब तो सीख जा 
बात कहने को किसी ने नहीं किया है मना 

लेखन को धारदार बना 
लोहे की हो जरूरी नहीं लकड़ी की तलवार बना 

मन की जैसी नहीं हो रही हो तो मत बौरा 
खुद पागल क्यों होता है 
लोगों को पागल बना 

समाज से अलग थलग पड़ने का नहीं है मजा 
बहुमत को समझने की कभी तो कोशिश कर 
'उलूक' थोड़ी देर के लिये ही सही सामाजिक हो जा । 

चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

शनिवार, 11 मई 2013

फिर देख फिर समझ लोकतंत्र



रोज एक
लोकतंत्र समझ में आता है
तू फिर भी लोकतंत्र समझना चाहता है 

क्यों तू
इतना बेशरम हो जाता है 
बहुमत को
समझने में सारी जिंदगी यूँ ही गंवाता है

बहुमत
इस देश की सरकार है
क्या तेरे भेजे मेंये नहीं घुस पाता है 

देखता नहीं
सबसे ज्यादा 
मूल्यों की बात उठाने वाला ही तो 
मौका आने पर
अपना बहुमत अखबार में छपवाता है 
मौसम मौसम दिल्ली सरकार 
और उसके लोगों को
कोसने वालों की भीड़ का झंडा उठाता है 

अपनी गली में
उसी सरकार के झंडे के परदे का
घूँघट बनाने से बाज नहीं आता है 

मेरे देश की हर गली कूँचे में 
एक ऎसा शख्स जरूर पाया जाता है 
जो अपना उल्लू
सीधा करने के लिये
लोकतंत्र की धोती को
सफेद से गेरुआँ रंगवाता है 
तिरंगे के रंगो की टोपियाँ बेचता हुआ 
कई बार पकड़ा जाता है

ऎसा ही शख्स
कामयाबी की बुलंदी छूने की मुहिम में
इस समाज के बहुमत से
दोनो हाथों में उठाया जाता है

और एक तू बेशरम है
सब कुछ देखते सुनते हुऎ 
अभी तक दलाली के पाठ को नहीं सीख पाता है
तेरे सामने सामने कोई तेरा घर नीलाम कर ले जाता है

'उलूक'
जब तू अपना घर ही नहीं बेच पाता है 
तो कैसे तू
पूरे देश को नीलाम करने की तमन्ना के
सपने पाल कर 
अपने को भरमाता है । 

चित्र साभार: https://www.pravakta.com/what-the-poor-in-democracy/

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

बहुमत

बहुमत से
जीतना
अच्छा
होता होगा

जो आज हैं
वो भी
बहुमत से हैं
जो कल होंगे
वो भी
बहुमत से
ही होंगे

बहुमत
लोग ही
बनाया
करते हैं
फिर
बहुमत पर
लोग ही
गुर्राया
करते हैं

मैं तो अपने
आस पास के
बहुमत से
परेशान हूँ

बहुमत
लोग अपनी
सुविधा से
ही बनाते
आये हैं

मेरे
आसपास
मैंंने
महसूस
किया है
बहुमत को
बहुत
नजदीकी से

लोग
लगे हैं
मट्ठा
डालने में
बहुमत से

हमसे
नाराज भी
हो जाते हैं
लोग
बहुमत के

हमने
लेकिन हमेशा
अपने को
अल्पमत में
पाया है

बहुत से
लोग
बहुमत
के साथ
अभी भी
जा रहे हैं

अपने लिये
अल्पमत
का गड्ढा
सजा रहे हैं

क्या किया
जा सकता है
कुछ नहीं
कभी नहीं
कोई नहीं
जान पायेगा
कभी
कि
बहुमत
कितनी
चालाकी से
बनाया
जाता है

गलत
बातों को
इस तरह
से सजाया
जाता है
किसी को
भी पता
नहीं चल
कभी पाता है
कि
वो जा
रहा है
बहुमत
के साथ
अपने
लिये ही
एक कब्र
तैयार
करने
के लिए

जाग जाओ
ऎसा बहुमत
मत बनाओ।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कुछ कहो

बस दो चार ही
लोग गांव के
अब कुछ
अपने जैसे
नजर आते हैं
सड़क और गली
की बात मगर
कुछ और ही
दिखाई देती है
सारे ही कुत्ते
सामने पा कर
जोर जोर से
अपनी पूंछे
हिलाते हैं
फिर भी समझ
नहीं पाते हैं
पागलखाने के
डाक्टर साहब
को अब भी
नार्मल ही
नजर आते हैं
हां लोग देख
कर थोड़ा सा
अब कतराते हैं
बहुमत साथ ना
होने का फायदा
हमेशा पार्टी के
लोग उठाते हैं
फुसफुसा कर ही
करते हैं बात भी
मोहल्ले वाले
फिर गया दिमाग
कहते तो नहीं हैं
बस सोच कर
सामने सामने से
ही मुस्कुराते हैं
कुछ तो समझाओ
'उलूक' जमाने को
पागल खाने के डाक्टर
ऐसे लोगों को ऐसे में भी
मुहँ 
क्यों नहीं लगाते हैं?