कोई
बुरी बात
नहीं है
ढूँढना
लिखे हुवे
के चेहरे को
कुछ
लोग आँखें
भी ढूँढते हैं
कुछ
की नजर
लिखे हुवे की
कमर पर
भी होती है
कुछ
पाजेब और
बिछुओं को
देख भर लेने
की ललक
के साथ
शब्दों से
ढके हुऐ
पैरों की
अँगुलियों
के दीदार
भर के लिये
नजरें तक
बिछा देते हैं
सबके लिये
रस्में हैं
अपने
हिसाब से
जगह के
हिसाब से
समय के
हिसाब से
कुछ को
लिखे हुऐ में
अपना चेहरा
भी नजर
आ जाता है
कुछ
के लिये
बहुत साफ
कुछ
के लिये
कुछ धुँधला सा
कुछ
के लिये चाँद
हो जाता है
कुछ नहीं
किया जा
सकता है
अगर कोई
ढूँढना शुरु
कर दे रिश्ते
लिखे हुऐ के
पीछे से
झाँकते हुऐ
अर्थों में
बबाल तो
हर जगह
होते हैं
कुछ
बने बनाये
होते हैं
कुछ
खुद के लिये
कुरेद कर
पन्नों को
बिना नोंक
की पेन्सिल से
खुद ही
बनाये गये
होते हैं
फट चुके
कागज भी
चुगली करने में
माहिर होते हैं
अब
इस सब से
‘उलूक’ को
क्या लेना देना
फटे में
अपनी टाँग
अढ़ाने के
चक्कर में
कई बार
खुद भी
फटते फटते
बचा हो कोई
या
फट भी
गया हो
तो भी
क्या है
होना तो
वही होता है
जो सुना
जा चुका
होता है
‘राम जी रच चुके हैं’
गाल पीटने
वालों के
गालों से
उन सब
को कहाँ
मतलब
होता है
जिन्हें
पिटने
या
पीटने की
आवाज
संगीत ही
सुनाई
देती हो
रहने दीजिये
ये रामायण
का आखरी
पन्ना नहीं है
अभी
कई राम
और पैदा
होने के
आसार हैं
भविष्यवाणी
करना ठीक
नहीं है
हनुमानों
पर नजर
रखते चलिये
कुछ
ना कुछ
संकेत
जरूर मिलेंगे
अब
लिखा हुआ
ही आईना हो
या
आईने में ही
लिखा गया हो
रहने
भी दीजिये
इस पर
फिर कभी कुछ
अगली
बकवास
के पैदा होने
तक के लिये
‘राम राम’
चित्र साभार: study.com