उलूक टाइम्स: लेखन
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रविवार, 28 अप्रैल 2024

ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है नहीं आती है


बहुत ही छोटी सी बात है समझ में नहीं आती है
प्राथमिकताएं हैं लेखन में हैं सब की नजर आती हैं

जो कुछ भी है कुछ अजीब है बस तेरे ही आस पास ही है
बाकी सब के आस पास बस जन्नत है की खबर आती है

सब की खुशी में अपनी खुशी है होनी ही चाहिए
सारे खुशी से लिखते हैं खुशी लिखे में है नजर भी आती है

खुदा सब की खैर करे भगवान भी देखें सब ठीक हो
ईसा मसीह भी है की खबर पता नहीं कहाँ है कहीं से भी नहीं आती है

‘उलूक’ सब के दिमाग हैं सही हैं अपनी ही जगह पर हैं
बस तेरे लिखे में ही है कुछ सीलन सी नजर आती है

चित्र साभार: https://www.biography.com/

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

खुजली कौन लिखता है सब बिजली लिखते हैं फिर भी नया साल मुबारक


खुजली
सब को होती है
लिखते
सब नहीं हैं

बिजली
सब लिखना चाहते हैं
वो भी
चार सौ चालीस वोल्ट की

झटके
सबको लगते हैं
दिखाते नहीं हैं
बस

बताते जरूर हैं
झटके
लगते हैं जोर के
सामने वाले को
कुछ भी
धीरे से कहने के बाद 

बंद होने
के कगार पर
लिखना लिखाना चला जाये
बुरी बात
नहीं होती है

कौन सा
बकवास को लिखना पढना
मान लेने वाले
विद्वानों की गिनती करनी है

एक दो
निकल भी गये तो
सिद्ध करवा दिया जा सकता है 
निरे बेवकूफ हैं

आध्यात्मिक लिखा हुआ
पढते समय
लेखक खुजलाता हुआ
सोच मे आ जाये
कौन सी बुरी बात है

होता है
होता रहेगा
जो लिखा दिखता है सामने
वो किसी एक घर पर
रोने वाले ने लिखा है

महीना डेढ़ से बंद लिखना
नहीं बता पाता है
लिखने वाला
कितना कितना खुजलाता है

अब
खुजलाना भी
बहुत बड़ा हो गया है
समझा और माना जाता है
जब लिखने वाला
लिखने ही नहीं आ पाता है

एक हाथ से लिखना
और दूसरे से
खुजला लेने की
महारत भी पायी जाती है
पर ना तो दिखाई जाती है
ना ही बताई जाती है

कोई बात नहीं
लिखना भी
जारी रहना जरूरी है
और खुजली को
खुजलाना भी जरूरी है

खुजलाइये प्रेम से
एक हाथ से
और लिखने भी आ जाइये
दूसरे हाथ से

‘उलूक’
ठीक बात नहीं है
खुजलाने के चक्कर में
लिख जाना भूल जाना

नया साल
नयी खुजलियाँ लाये
नयी विधियाँ पैदा की जायें 
 खुजली हो भी
और खुजली पर
कुछ लिख दिया जाये

खुजली जिंदाबाद
लिखना रहे आबाद

इसी तरह
फिर एक नये साल का हो
खुजलाता हुआ आगाज।

चित्र साभार: 
https://www.clipartmax.com/

सोमवार, 4 मई 2015

बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं

बावरे
की कलम
बेजान
जरूर होती है

पर
लिखने पर
आती है तो
बावरे की
तरह ही
बावरी हो
जाती है

बावरों
की दुनियाँ के
बावरेपन को
बावरे ही
समझ पाते हैं

जो बावरे
नहीं होते हैं
उनको
कलम से
कुछ लेना देना
नहीं होता है

जो भी
लिखवाते हैं
दिमाग से
लिखवाते हैं

दिमाग
वाले ही उसे
पढ़ना भी
चाहते हैं

बावरों
का लिखना
और दिमाग
का चलना

दोनों
एक समय में
एक साथ
एक जगह
पर नहीं
पाये जाते हैं

बावरा होकर
बावरी कलम से
जब लिखना शुरु
करता है
एक बावरा

कलम
के पर भी
बावरे हो कर
निकल जाते हैं

उड़ना
शुरु होता है
लिखना भी
बावरा सा

क्या लिखा है
क्यों लिखा है
किस पर
लिखा है
पढ़ने वाले
बावरे
बिना पढ़े भी
मजमून को
भाँप जाते हैं

‘उलूक’
घिसा
करता है
कलम को
रोज पत्थर पर

पैना
कुछ लिख
ले जाने
के आसार
फिर भी कहीं
नजर नहीं आते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

आज ही पाँच साल पहले शुरु किया था यहाँ आ कर कबूतर उड़ाना


च्यूइंगम को चबा चबा कर
मुँह के अंदर ही अंदर
लम्बा खींच कर बाहर ले आना

फिर लपेटते हुऐ उसे फिर से
मुँह के अंदर कर ले जाना फिर चबाना

कुछ इसी तरह का
लिखने लिखाने के साथ हो जाना

छोटी सी बात का
बतंगड़ बनाते बनाते
बातें बनाने की आदत हो जाना

कुछ ऐसी ही बीमारी का
एक छोटा सा कीटाणु
अंदर ही कहीं सोया हुआ किसी के
किसी को नजर आ जाना

मौका मिलते ही 
उसे काँटा चुभा कर चम्पत हो जाना

एक खतरनाक लेखक का
एक नासमझ के हाथ में
लिखने लिखाने की पिचकारी थमा जाना

एक अनाड़ी का
खिलाड़ियों के खेल पर कमेंटरी
रोज का रोज देकर जाना शुरु हो जाना

खेल का मैदान पर चलते रहना
मैदान की पुरानी घास का
नई हो कर उग जाना

खिलाड़ियों का अनाड़ियों को
रोज पागल बना ले जाना

शुरु होना 
एक भड़ास का कागज पर उतरना

शरम छोड़ कर
भड़ास का ही खुद बेशरम हो जाना

बेबस ‘उलूक’ के हाथ से
बात का निकल जाना

पांंच साल की हर बात का
अपनी जगह पर चले जाना

फिर से एक पुराने उधड़ चुके
कफन का झंडा डंडे पर लगा
अगले पाँच साल की सोचना शुरु हो जाना

ज्यादा नहीं भी 
दो चार के रोज का रास्ता
चलता रहेगा आना जाना

बस यही सोच कर कब्र के ऊपर
दो चार फूलों के बीज छिड़क कर
वापस यहीं आ जाना

च्यूइंगम चबाना
कुछ लम्बा खींच लेना
कुछ गोले मुँह से बनाना ।

चित्र साभार: http://www.illustrationsof.com/

शुक्रवार, 20 जून 2014

आभार वीरू भाई आपके हौसला बढ़ाने के लिये और आज का मौजू आपकी बात पर ।



'उलूक टाइम्स' के 18-06-2014 के पन्ने की पोस्ट 

पर ब्लॉग
के ब्लॉगर 
की टिप्पणी 
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आभार आपकी टिप्पणियों का।
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सार्थक लेखन को पंख लग गए हैं आपके।"
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पर आभार व्यक्त करते हुऐ
                   

‌‌‌सब कुछ उड़ता है वहाँ 
उड़ाने वाले होते हैं जहाँ


लेखन को पँख
लग गये हैं जैसे
उसने कहा

क्या उड़ता हुआ
दिखा उसे बस
यही पता नहीं चला

लिखा हुआ भी
उड़ता है
उसकी भी उड़ाने
होती हैं सही है

लेकिन कौन सी
कलम किस तरह
कट कर बनी है

कैसे चाकू से
छिल कर उसकी
धार बही है

खून सफेद रँग
का कहीं गिरा
या फैला तो नहीं है

किसे सोचना है
किसे देखना है

मन से हाथों से
होते होते
कागज तक
उड़कर पहुँची है

छोटी सोच की
ऊड़ान है और
बहुत ऊँची है

किस जमीन में
कहाँ रगड़ने के
निशान
छोड़ बैठी है

उड़ता हुआ जब
किसी को किसी ने
नहीं देखा है

तो उड़ने की बात
कहाँ से लाकर
यूँ ही कह दी गई है

पँख कटते है जितना
उतना और ऊँचा
सोच उड़ान भरती है

पूरा नहीं तो नापने को
आकाश आधा ही
निकल पड़ती है

पँख पड़े रहते हैं
जमीन में कहीं
फड़फड़ाते हुऐ

किसे फुरसत होती है
सुनने की उनको
उनके अगल बगल
से भी आते जाते हुऐ

उड़ती हुई चीजें
और उड़ाने किसे
अच्छी नहीं लगती हैं

‘उलूक’ तारीफ
पैदल की होती हुई
क्या कहीं दिखती है

जल्लाद खूँन
गिराने वाले नहीं
सुखाने में माहिर
जो होते हैं

असली हकदार
आभार के बस
वही होते हैं

लिखने वाला हो
लेखनी हो या
लिखा हुआ हो

उड़ना उड़ाना हो
ऊँचाइ पर ले जा कर
गिरना गिराना हो

तूफान में कभी
दिखते नहीं
कहीं भी कभी भी
तूफान लाने का
जिसको अनुभव
कुछ पुराना हो

असली कलाकार
वो ही और बस
वो ही होते हैं

लिखने लिखाने वाले
तो बस यूँ ही कुछ भी
कहीं भी लिख रहे होते हैं

तेरी नजर में ही है
कुछ अलग बात
तेरे लिये तो उड़ने के
मायने ही अलग होते हैं ।