उलूक टाइम्स: सबूत
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शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

रखना एक खास किताब का जिल्द और देना अपने होने ना होने का सबूत

उसके
पास है

एक किताब

वो

उस किताब
को
पढ़ता जैसा

नजर आता है

पढ़ा लिखा है
 बताना चाहता है

उसे
पसन्द नहीं हैं

पढ़े लिखे लोग

जो
उसकी

उस
किताब
की

बात 
करने की

कोशिश
भी
करते हैं

किताब
में

सुना है
सब कुछ
लिखा है

उसी
लिखे हुऐ से

कहा जाता है

बहुत कुछ

चलेगा या नहीं
का 

पता चलता है

ऐसा
कुछ कुछ
और 

किताबों में

उस
किताब 

के बारे में

लिखा हुआ
मिलता है

देखना
और
समझना
जरूरी है

अपने आसपास

जो कुछ
छोटा या बड़ा
होता है

मानकर

किताब में
लिखा होगा

उसके होने
या 

ना होने
के 

बारे में

संशय
उचित
नहीं होता है

कम से कम

उसकी
पढ़ी हुयी

किताब
को लेकर

जिसके
उसके पास
होने की खबर से

सारा जमाना

उसपर
नतमस्तक
होता है

उसी की सुनता है

उसी के
कहे को लेकर

बिना
फन्दे 

के
सपने 

तक
बुनता है

सुना है

जल्दी ही
उस किताब 

के
जिल्द की 


कापियाँ
बनायी जायेंगी

सारे
पढ़े लिखों
को
छोड़कर

निरक्षरों
में
बंटवा दी
जायेंगी

‘उलूक’
पढ़ना लिखना
छोड़ देना

और 

रखना

एक जिल्द
उस किताब 

का

खुद 
अपने पास भी

जरूरी
हो जायेगा

बहुत जल्दी

तेरे
होने ना होने
का

वही बस
एक
सफेद झूठ

यानि
सबसे बड़ा
सबूत।
चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

मंगलवार, 20 मार्च 2018

जरूरी है सबूत होने ना होने का रद्दी निकाल कबाड़ निकाल सुनना अच्छा लगता है दिनों के बाद

आदतें
बदलती नहीं हैं
छोटे से
अंतराल में

सिमट
जाती हैं
खोल में किसी
खुद के
बनाये हुऐ
आभास
देने भर
के लिये बस

अस्तित्व
होने से लेकर
नहीं होने की
जद्दोजहद जारी
रहती है हमेशा

मजबूरियाँ
जकड़ लेती हैं
अँगुलियों को
लेखनी के
आभास भर
के साथ भींच कर

लिखता
चला जाता है
समय
रेंगता हुआ
सब कुछ हमेशा

रेत पर
धुएं में
या फिर
उड़ती हुई
पतझड़
से गिरी
सूखी पत्तियों
के ढेर पर

कई
सारे चित्र
यादों से
निकल कर
ओढ़ लेते हैं
फूल मालायें

होने से
ना होने तक
की दौड़ में
फिसल कर
भीड़ में से
ना जाने कब

कौन गिनता है
चित्रकारों के
काफिलों में
कैनवासों से
निकलकर
बहते
बिखरते रंगों को

किसे
फिक्र होती है
कूँचियों के
निर्जीव झड़ते
टूटते बालों की
उतरते
रंगों में सिमटते
घुलते बिखरते
इंद्रधनुषों की

नजर का
जरूरी नहीं
होता है
टिके रहना
आसमान पर
चमकते
किसी तारे पर
हमेशा के लिये

रोशनी
होती ही है
लम्बी चमक
के बाद
धुँधलाने के लिये

सब कुछ
बहुत जल्दी
सिमट जाता है
छोटे छोटे
बाजारों में

मेले
रोज ही
लगा करते हैं
यहाँ नहीं
वहाँ नहीं
तो कहीं
और सही

आज
कल परसों
रोज नहीं भी तो
बरसों में कभी
एक बार ही  सही

आदतें
बदलती नहीं हैं
छोटे से अंतराल में
सिमट जाती हैं
खोल में किसी
खुद के बनाये हुऐ

अपने
होने ना होने
का आभास
खुद के लिये
जरूरी है ‘उलूक’

याद
करने के लिये
अपने हाथ में
चिकोटी
काट लेना
बहुत जरूरी 
होता है कभी कभी ।

चित्र साभार: https://www.pinterest.co.uk/

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

कभी तो छोड़ दिया कर ‘उलूक’ हवा हवा में हवा बना कर हवा दे जाना




किसी की मजबूरी होती है
अन्दर की बात लाकर
बाहर के अंधों को दिखाना
बहरों को सुनाना

और
बेजुबानों को
बात को बार बार कई बार
बोलने बतियाने के लिये
उकसाना

सबके बस में भी
नहीं होती है

झोले में कौए रख कर
रोज की कबूतर बाजी

हर कोई नहीं कर सकता है

भागते हुऐ शब्दों को
लंगोट पहना पहना कर
मैदान में दौड़ा ले जाना

कुछ कलाकार होते हैं
माहिर होते हैं

जानते हैं शब्दों को बाँध कर
उल्लू की भाँति
अंधेरे आकाश में
बिना लालटेन बांधे
उड़ा ले जाना

सुना है
कहीं किसी हकीम लुकमान ने
अपने बिना लिखे नुस्खे
में कहा है

अच्छा नहीं होता है
पत्थरों पर 
कुछ भी लिख लिखा कर
 सबूत दे जाना

देख सुन कर तो
कभी किसी दिन
समझ लिया कर
‘उलूक’

अन्दर की बात का
बाहर निकलते निकलते
हवा हवा में हवा होकर
हवा हो जाना।

चित्र साभार: www.clker.com

शनिवार, 17 जून 2017

अट्ठाईस लाख का घपला पुराना हो भी अगर घर का ‘उलूक’ किस लिये बिना सबूत नया नया रो रहा होता है

सोच कर
लिखे गये
कुछ को
पढ़ कर
कोई 
कुछ भी
सोच रहा
होता है

लिखे हुऐ पर
लिखने वाला
समय 
नहीं
लिख
 रहा
होता है 


किसे
पता होता है
सोचने से
लिखने तक
पहुँच लेने में
कितना समय
लग रहा होता है

होने का क्या है
हो चुका कुछ
आज ही नहीं
हो रहा होता है

पता हेी
नहीं होता है
बहुत बार
पहले भी
कुछ कुछ
ऐसा ही
कई बार
हो रहा
होता है

सोच कर
लिखना
कई बार
लगता है
सच में बहुत
बुरा हो
रहा होता है

अपने शहर
की बात
अपने शहर
के लोगों से
करना ठीक
नहीं हो
रहा होता है

खून हो
रहा होता है
किसी के
हाथों से
खुले आम
हो रहा
होता है
अपना ही
कोई कर
रहा होता है
कोई कुछ भी
नहीं कहीं
कह रहा
होता है

मरने वाले
शहर में
रोज ही मर
रहे होते हैं
एक दो
बाजार में
अगले दिन
दिखने वाला
उसके जैसे
कोई भी
भूत नहीं
हो रहा
होता है

लिखना बेवफाई
बेवफाओं के देश में

इस से बढ़ कर
बड़ा गुनाह
कोई नहीं
 हो रहा होता है

हिस्सेदारी में
नहीं लगे
लोगों को
कहने का
कोई
हक नहीं
हो रहा होता है

लुटेरे सफेदपोशों
की लूट का हिस्सा
उनके अपनों में
बट रहा होता है

रविश को भी
मिल रही
हैं गालियाँ
लोकतंत्र का
सबूत बन रही हैं
गाँधी भेी
गालियाँ
खा रहा है
इससे अच्छा
कुछ भी कहीं
नहीं हो
रहा होता है

 ‘उलूक’
बहुत ही गंदी
आदत होती है
तेरे जैसे
कहने वालों की
बहुत सा
बहुत अच्छा
रोज ही जब
अखबारों में
रोज ही हो
रहा होता है ।

चित्रसा भार: Credit Union Times

शनिवार, 29 अगस्त 2015

ले भी लीजिये हजूर छुट्टी के दिन ऐसा ही बेचा जायेगा

ले लीजिये
साहब
थोड़ा सा
बड़ा जरूर
हो गया है
पर सच में
बहुत अच्छा है
अच्छा है
सामने है
दिख ही
रहा है
स्वभाव दिख
ही जायेगा
कुछ दिनों बाद
सब कुछ
साफ साफ
इधर उधर
आगे पीछे
ऊपर नीचे
सब जगह
जगह जगह
नजर आयेगा
वैसे इसके
इलाके में
किसी से भी
पूछ लीजिये
ज्यादातर
कुछ भी
नहीं कहेंगे
चुप ही रहेंगे
कुछ बस
मुस्कुरायेंगे
एक दो
बेकार के
फालतू
हर जगह
होते ही है
आदत होती है
आदतन
कुछ ना कुछ
बड़बड़ायेंगे
कुछ पालतू
भी मिलेंगे
एक जैसे
नहीं हो
सकते हैं
कभी भी
फिर भी
जैसा ये है
वैसे ही नजर
भी आयेंगे
मिलेंगे नहीं भी
तब भी
आभास जैसा
ही दे जायेंगे
अच्छी जाति
दिखने से
कहाँ कहीं
पता चलती है
काम करने
के तरीके से
पता चल
ही जाती है
डी एन ए
की बात तभी
तो की जाती है
अब अपने
मुँह मियाँ
मिट्ठू भी
होना ठीक
नहीं होता है
‘उलूक’
माना दिन
में बस
सुनता है
कुछ भी
कहीं भी
नहीं देखता है
रख कर तो
देखिये हजूर
सबूत जरूर
मिल जायेंगे
काम करता
हुआ कभी
भी नजर
नहीं आयेगा
काम के समय
इधर उधर
चला जायेगा
दिखेगा
चुस्त बैठा
हमेशा
नजर आयेगा
कसम से
अभी कुछ भी
पता नहीं चलेगा
जाने के बाद
देखियेगा
हर जगह
खोदा खोदा
सा सब
नजर आयेगा
ले लीजिये साहब
दिखने दिखाने
में कुछ
नहीं रखा है
बहुत
काम का है
बहुत
काम आयेगा
आगे काम ही
काम दिखेगा
बचा कुछ भी
नहीं रह जायेगा
रख ही लीजिये
हजूर देखा जायेगा ।

 चित्र साभार: kennysclipart.com

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट है

एक नहीं 
कई कई हैं 

बहुत
से हैं 
सबूत हैं 

चलते फिरते 
नजर
आते हैं 

असल
में 
ताबूत हैं 

ख्वाबों
में 
कफन 
बेचते हैं

जीवन बीमा
के
दूत हैं 

नाटक
में 
पात्र हैं 

सुंदर
से 
देवदूत हैं

विज्ञापन
में 
इंसान हैं 

इंसानों
में 
भूत हैं 

बाहर
से 
सजने सवरने 
की
मन
चाही है 
और खुली छूट है 

अंदर
छुपी 
कहीं पर 
लम्बी एक 
सूची है 

पहली लिखी 
इबारत 

जिसमें 
लूट सके 
तो
लूट है । 

चित्र साभार: pixshark.com

शुक्रवार, 13 जून 2014

गौण ही है पर यही है बताने के लिये आज भी

उसके चेहरे पर
शिकन नहीं है
सुना है उसकी
शोध छात्रा ने
शिकायत की है
छेड़ छाड़ की

अच्छे दिन
लाने वाले लोगों
को वैसे भी
देश देखना है
ये बातें तो
छोटे लोग
करते हैं तेरे जैसे

कोई हल्ला गुल्ला
जब नहीं है कहीं
कोई एफ आई आर
नहीं है कोई कहीं
कोई सबूत नहीं है

फिर अगर कोई
खुले आम बिना
किसी झिझक
मुस्कुराते हुऐ
घूमता है तो
तेरे को काहे
चिढ़ लग रही है

लड़के लड़कियाँ
परीक्षा दें या
मोमबत्तियाँ लेकर
शहर की गलियों में
शोर करने निकल पड़े
निर्भया होने से
तो बच ही गई है

वैसे भी जब तक
कोई अपराध
सिद्ध नहीं
हो जाता है
अपराध कहाँ
और कब
माना जाता है

और  अगर
घर की बात
घर में रहे तो
अच्छा होता है

‘उलूक’
तुझे तो
इस सब
के बारे में
सोच कर ही
झुर झुरी
हो जाया
करती है

उनको पता
चल गया
तू सोच रहा है
तो बबाल
हो जायेगा

उसने किया है
तो होने दे
बड़े आदमी
के बड़े हाथ
और सारे
आस पास के
बड़े लोग
उसके साथ

तू अपनी
गुड़ गुड़ी
खुशी से
यहाँ छाप
सिर खुजा
और उसको
मौज करते हुऐ
रोज का रोज
देखता जा
फाल्तू की
अपनी बात
उलूक टाइम्स में
ला ला कर सजा ।

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

सबूत होना जरूरी है ताबूत होने से पहले

छोटी हो या बड़ी आफत
कभी बता कर नहीं आती है 
और समझदार लोग 
हर चीज के लिये तैयार नजर आते है 

आफत बाद में आती है 
उससे पहले निपटने के हथियार लिये 
हजूर दिख जाते हैं 

जिनके लिये पूरी जिंदगी प्रायिकता का एक खेल हो 
उनको किस चीज का डर 

पासा फेंकते ही छ: हवा में ही ले आते है 

जैसे सब कुछ बहुत आसान होता है 

एक लूडो साँप सीढ़ी 
या 
शतरंज का कोई खेल 

ऐसे में ही कभी कभी 
खुद के अंदर एक डर सा बैठने लगता है 

जैसे कोई 
उससे उसके होने का सबूत मांगने लगता है 

पता होता है
सबूत सच का कभी भी नहीं होता है 
सबूतों से तो सच बनाया जाता है 
कब कौन कहाँ किस हालत में 
क्या करता हुआ
अखबार के मुख्य पृष्ठ पर दिख जाये 
बहुत से ज्योतिष हैं यहाँ 
जिनको इस सबकी गणना करना 
बहुत ही सफाई के साथ आता है 

बस एक बात सब जगह 
उभयनिष्ठ नजर आती है 
जो किसी भी हालत में 
एक रक्षा कवच 
फंसे हुऐ के लिये बन जाती है 

कहीं ना कहीं किसी ना किसी गिरोह से 
जुड़ा होना हर मर्ज की एक दवा होता है

नहीं तो क्या जरूरत है 
किसी सी सी टी वी के फुटेज की 
जब कोई स्वीकार कर रहा हो अपना अपराध 
बिना शर्म बिना किसी लिहाज 

ऐसे में ही महसूस होता है 
किसी गिरोह से ना जुड़ा होना 
कितना दुख:दायी होता है 

कभी भी कोई पूछ सकता है 
तेरे होने या ना होने का सबूत 
उससे पहले कि बने 
तेरे लिये भी कहीं कोई ताबूत 

सोच ले 'उलूक' अभी भी
है कोई सबूत कहीं 
कि तू है और सच में है 
बेकार ही सही पर है यहीं कहीं
ताबूत में जाने के लिये भी
एक सबूत जरूरी होता है।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



उपरोक्त बकवास पर भाई रविकर जी की टिप्पणी: 


छोटा है ताबूत यह, पर सबूत मजबूत |
धन सम्पदा अकूत पर, द्वार खड़ा यमदूत |
द्वार खड़ा यमदूत, नहीं बच पाये काया |
कुल जीवन के पाप, आज दुर्दिन ले आया |
होजा तू तैयार, कर्म कर के अति खोटा |
पापी किन्तु करोड़, बिचारा रविकर छोटा ||