उलूक टाइम्स: साफ
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गुरुवार, 5 सितंबर 2019

‘उलूक’ साफ करना है बहुत सारा इतिहास है


ना खुश है ना उदास है 
थोड़ी सी बची हुयी है
है कुछ आस है 

बहुत कुछ लिखना है 
कागज है कलम की है इफरात है 

ना नींद है ना सपने हैं 
शाम से जरा सा पहले की है बात है 

बन्द है बोतल है खाली है गिलास है
अंधेरा है अमावस की है रात है 

ना पढ़ना है ना पढ़ाना है 
किताबों के नीचे दबी है खुद की है किताब है 

श्याम पट काला है सफेद है चॉक है 
खाली है कक्षा है बस थोड़ी सी उदास है 

ना समझना है ना समझाना है 
नयी तकनीक है आज है सब की है बॉस है 

गुरु घंटाल हैं जितने मालामाल हैं 
सरकारी ईनाम हैं लेने गये हैंं सारे हैं खास हैं 

ना राधा है ना कृष्ण है 
राधाकृष्णन का जन्मदिन
सुना है शायद है आज है 

पदचिन्ह हैंं मिटाने हैं नये अपने बनाने हैं ‘उलूक’ 
साफ करने हैंं बहुत हैंं सारे हैं इतिहास हैंं । 

चित्र साभार:
https://www.1001freedownloads.com

शनिवार, 31 अगस्त 2019

ठीक नहीं ‘उलूक’ थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना



आभार पाठक
 'उलूक टाइम्स' पर जुलाई 2016 के अब तक के अधिकतम 217629 हिट्स को 
अगस्त 2019 के 220621 हिट्स ने पीछे छोड़ा 
पुन: आभार 
पाठक


सुना गया है
अब हर कोई एक खुली हुयी किताब है 

हर पन्ना जिसका
झक्क है सफेद है और साफ है 

सभी लिखते हैं
आज कुछ ना कुछ
बहुत बड़ी बात है 

कलम और कागज ही नहीं रहे बस
बाकी सब इफरात है 

कोई नहीं लिखता है कहीं
किसी भी अन्दर की बात को 

ढूँढने निकलता है
एक सूरज को मगर
वो भी किसी रात को 

सोचता है साथ में
सब दिन दोपहर में
कभी आ कर उसे पढ़ें

कुछ वाह करें
कुछ लाजवाब
कुछ टिप्पणी
कुछ स्वर्णिम गढ़ें

समझ में
सब के सब कुछ
बहुत अच्छी तरह से आता है 

जितने से
जिसका काम चलता है
उतना समझ गया होता है
उसे
ढोल नगाड़े साथ ला कर
खुल कर
जरूर बताता है 

जहाँ फंसती है जान
होता है
बहुत बड़ी जनसंख्या से जुड़ा
कोई उनवान
शरमाना दिखा कर
अपने ही किसी डर के खोल में
घुस जाता है 

किस अखबार को
कौन कितना पढ़ता है
सारे आँकड़े
सामने आ जाते हैं 

किस अखबार में
कैसे अपनी खबर कोई
हर हफ्ते छपवा ले जाता है
कैसे हो रहा है होता है
ऐसा कोई
पूछने ही नहीं जाता है 

कोई
नजर नहीं आता है का मतलब
नहीं होता है
कि
समझ में नहीं आता है 

उलूक के लिये
बस
एक राय 

लिखना लिखाना छपना छपाना कहीं भीड़ कहीं खालिस सा वीराना
‘उलूक’ ठीक नहीं थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

सोमवार, 11 जून 2018

जरूरी है फटी रजाई का घर के अन्दर ही रहना खोल सफेद झक्क बस दिखाते चलें धूप में सूखते हुऐ करीने से लगे लाईन में

खोल
जरूरी है

साफ
सफेद झक्क

फटी हुई
रजाई को
ढकने के लिये

सारे
सफेद खोल
लटके हुऐ
करीने से
चमचमाती
धूप में 

सूखते हुऐ

खुशनसीब
खुशफहमी
की रूईयाँ

उधड़ी 
दरारों से
झाँकती हुई

घर के अन्दर
अंधेरे की
खिड़कियों को
समझाती हुई

परहेज करना
रोशनी से 


फटी
रजाई ओढ़ते
आदमी का

बाहर
झाँकता चेहरा
साँस लेने के लिये

साफ हवा
भी जरूरी है

लेकिन खोल
ज्यादा जरूरी है

और
जरूरी है

उसका
धुला होना
साफ होना
झक्कास रहना

चमकना 
धूप में
फिर स्त्री 

किया जाना

फटी हुयी
रजाइयाँ 

और
आदत 

में शामिल
बाहर 

को लटकते
रूई के फाहे

खोल
मजबूरी
नहीं होते हैं
किसी के लिये

एक
पाठ्यक्रम
हो जाते हैं

बिना 

खोल के
उधड़ा 

हुआ आदमी
बेकार है 

बेमानी है

आइये
सजायें
ला ला कर
सफेद
झक्कास
खोलों को

अलग अलग
जगह के
अलग अलग
आदमी के

आदमी के
लिये ही
बनाने 

और
दिखाने के
लिये इंद्रधनुष

सात रंगों
के नशे में
चूर के लिये
नशे की सोच
भी पाप है

और 

प्रायश्चित
बस 

एक ही है

साफ 

सफेद
धुले हुऐ
धूप में
लाईन 

लगा कर
सुखाये 

गये खोल

फटी हुई
रजाई
कहीं भी
नजर नहीं
आनी चाहिये
'उलूक'
किसे
जरूरत है

आँखें
अच्छा देखें
कान
अच्छा सुनें
अच्छे
की आशायें
खोल में
समाहित
होती हैं

यही
फलसफा है
बकवास
करते चले
जाने का।

चित्र साभार: www.amazon.com