उलूक टाइम्स: खिलौना सोच

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

खिलौना सोच

कुछ लोग बडे़
तो हो जाते हैं
पर खिलौनों से
खेलने के अपने
बचपन के दिन
नहीं भूल पाते हैं
खिलौनों में चाभी
भर कर भालू
को नचाना
बार्बी डौल में
बैटरी डाल कर
बटन दबाना
आँखे मटकाती
गुड़िया देख कर
खुश हो जाना
उनकी सोच से
निकल ही
नहीं पाता है
सामने किसी के
आते ही उनको
अपना बचपन
याद आ जाता है
खिलौना प्रेम पुन:
एक बार और
जागृत हो जाता है
खिलौनों की तरह
करता रहे कोई
उनके आगे या पीछे
कहीं भी कभी भी
तब तक वो
दिखाते हैं ऎसा
जैसे उनको कुछ
मजा नहीं आता है
जरा सा खिलौनापन
को छोड़ कर कोई
अगर कुछ अलग
करना चाहता है
तुरंत उनको समझ
में आ जाता है
अब उनका खिलौना
उनके हाथ से
निकल जाता है
सोच कर कि अब
आगे तो नहीं
कोई उनसे कहीं
बढ़ जाता है
फटाफट वो कुछ
ऎसा काम ढूँढ कर
ले आते है
खिलौने तो क्या
अच्छे भले आदमी
जो नहीं कर पाते है
फिर तो जब
उनका खिलौना
आदमी वाला काम
नहीं कर पाता है
तो वो ऎसा
दिखाते है
जैसा कि
खिलौने तो
उनको बिल्कुल
भी पसंद
नहीं आते हैं ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ लोग ऐसे भी होते है
    जो बिना खिलोने ,बिना बचपन
    बड़े होते हैं .....
    बुढ़ापे में बचपन याद करके
    उदास होते हैं .....

    खुश रहें!

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    From Another Annual Day

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

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  4. आपको पढकर बहुत अच्छा लगता है,सुशील जी.
    मेरे ब्लॉग पर आपकी सुन्दर टिपण्णी के लिए
    हार्दिक आभार जी.

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  5. आपका ८१ वाँ फालोअर बनते हुए मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.

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  6. पहली ६/७ लाइनों में तो हमें लगा जैसे सचमुच कुछ बचपन के खिलौनों से मुलाक़ात होगी.... पर अंत तक पहुँचते पहुँचते समझ आया...कि यहाँ तो कुछ ज़्यादा ही समझदार और चालाक बच्चों की बातें हो रहीं हैं.. :-)
    बहुत सुंदर व सच्चाई बयान करती रचना !
    ~सादर !!!

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  7. खिलौनों के माध्यम से आपने ज़िन्दगी की हक़ीक़त बयान की है।

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  8. सार्थक प्रस्तुति बधाई सुशील जी

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  9. kya khoob :"hr kisi ke pas to aisi nazar hogi nhi","ho khi bhi aag lekin aag jalni chahiye" Dushyant

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  10. खिलौने के माध्यम से जिन्दगी की हकीकत बता दी.. सुशील जी आप ने आभार

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