उलूक टाइम्स: अनुवाद
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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

अंगरेजी में अनुवाद कर समझ में आ जायें फितूर ‘उलूक’ के ऐसा भी नहीं होता है

महसूस
करना
मौसम की
नजाकत
और
समय
के साथ
बदलती
उसकी
नफासत
सबके लिये
एक ही
सिक्के
का एक
पहलू हो
जरूरी
नहीं है

मिजाज
की तासीर
गर्म
और ठंडी
जगह की
गहराई
और
ऊँचाई
से भी
नहीं नापी
जाती है

आदमी की
फितरत
कभी भी
अकेली
नहीं होती है
बहुत कुछ
होता है
सामंजस्य
बिठाने
के लिये

खाँचे सोच
में लिये
हुऐ लोग
बदलना
जानते है
लम्बाई
चौड़ाई
और
गोलाई
सोच की

लचीलापन
एक गुण
होता है जिसे
सकारात्मक
माना जाता है

एक
सकारात्मक
भीड़ के लिये
जरूरत भी
यही होती है
और
पैमाना भी

भीड़ हमेशा
खाँचों में
ढली होती है

खाँचे सोच
में होते हैं
सोच का
कोई खाँचा
नहीं होता है

‘उलूक’
नाकारा सा
लगा रहता है
सोच की
पूँछ पर
प्लास्टर
लगाने
और
उखाड़ने में

हर बार
खाँचा
कुत्ते की
पूँछ सा
मुड़ा हुआ
ही
होता है

दीवारों पर
कोयले से
खींची गई
लकीरों का
अंगरेजी में
अनुवाद भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: Shutterstock

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कभी कभी अनुवाद करने से मामला गंभीर हो जाता है



बायोडाटा या क्यूरिक्यूलम विटे
नजदीकी और जाने पहचाने शब्द

अर्थ आज तक कभी सोचा नहीं
हाँ बनाये एक नहीं कई बार हैं

कई जगह जा कर बहुत से कागज 
बहुत से लोगों को दिखाते भी आये हैं

कोई नयी बात नहीं है 
पर आज अचानक हिंदी में सोच बैठा

पता चला
अर्थ नहीं हमेशा अनर्थ ही करते चले आये हैं
व्यक्तिवृत या जीवनवृतांत होता हो जिनका मतलब
उसके अंदर बहुत कुछ
ऊल जलूल बस बताते चले आये हैं

डेटा तक सब कुछ ठीक ठाक नजर आता है
बहुत से लोगों के पास
बहुत ज्यादा ज्यादा भी पाया जाता है

कुछ खुद ही बना लिया जाता है
कुछ
सौ पचास बार जनता से कहलवा कर
जुड़वा दिया जाता है

पर वृतांत कहते ही
डेटा खुद ही पल्टी मार ले जाता है

अपने बारे में सभी कुछ
सच सच बता देने का इशारा
करना शुरु हो जाता है

और
जैसे ही बात शुरु होती है
कुछ सोचने की वृतांत की

उसके बारे में फिर
कहाँ कुछ भी किसी से भी कहा जाता है

अपने अंदर की सच्चाई से लड़ता भिड़ता ही कोई
अपने बारे में कुछ सोच पाता है

रखता है जिस जगह पर अपने आप को
उस जगह को पहले से ही किसी और से
घिरा हुआ पाता है

आसान ही नहीं बहुत मुश्किल होता है
जहां अपने सारे सचों को
बिना किसी झूठ का सहारा लिये
किसी के सामने से रख देना

वहीं बायोडेटा किसी का 
किसी को
कहाँ से कहाँ रख के आ जाता है

इस सब के बीच
बेचारा जीवनवृतांत
कब खुद से ही उलझ जाता है
पता ही नहीं चल पाता है ।

चित्र साभार:
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