उलूक टाइम्स: हिंदी
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बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

आज कुछ टुकड़े पुराने जो पूरे नहीं हो पाये टुकड़े रह गये

(कृपया बकवास को
कवि, कविता और
हिंदी की किसी
विधा से ना जोड़ेंं
और
टुकड़ों को ना जोड़ें,
अभिव्यक्ति कविता से हो
और कवि ही करे
जरूरी नहीं होता है ) 


सोच खोलना
बंद करना भी
आना चाहिये
सरकारी
दायरे में
ज्यादा नहीं भी
कम से कम
कुछ घंटे ही सही
>>>>>>>>>>>>

बेहिसाब
रेत में
बिखरे हुऐ
सवालों को
रौंदते हुऐ
दौड़ने में
कोई बुराई
नहीं है
गलती
सवालों
की है
किसने
कहा था
उनसे उठने
के लिये
बेवजह
बिना सोचे
बिना समझे
बिना जाने
बिना बूझे
और
बिना पूछे
उससे
जिसपर
उठना शुरु
हो चले
>>>>>>

मालूम है
बात को
लम्बा
खींच
देने से
ज्यादा
समझ
में नहीं
आता है

खींचने की
आदत पड़
गई होती
है जिसे
उससे
फिर भी
आदतन
खींचा ही
जाता है
जानता है
ज्ञानी
बहुत अच्छी
तरह से
अपने घर में
बैठे बैठे भी
अपने
आस पास
दूसरों के
घरों के
कटोरों की
मलाई की
फोटो देख
देख कर
अपने फटे
दूध को
नहीं सिला
जाता है
>>>>>>>

कोई नहीं
खोलता है
अपनी खुद
की किताबें
दूसरों
के सामने

खोलनी
भी क्यों हैं
पढ़ाने की
कोशिश
जरूर
करते
हैं लोग
समझाने
के लिये
किताबें
लोगों को

 बहुत सी
किताबें
रखी हुई
दिखती
भी हैं
किताबचियों
के आस पास
कहीं करीने
से लगी हुई
कहीं बिखरी
हुई सी
कहीं धूल
में लिपटी
कहीं साफ
धूप
दिखाई गई
सूखी हुई सी ।

>>>>>>>>>

चित्र साभार: ClipartFest

सोमवार, 14 सितंबर 2015

‘उलूक’ का बुदबुदाना समझे तो बस बुखार में किसी का बड़बड़ाना है

ना किसी को
समझाना है
ना किसी को
बताना है

रोज लिखने
की आदत है
बही खाते में

बस रोज का
हिसाब किताब
रोज दिखाना है

किसी के देखने
के लिये नहीं
किसी के समझने
के लिये नहीं

बस यूँ हीं कुछ
इस तरह से
यहीं का यहीं
छोड़ जाना है

होना तो वही है
जो होना जाना है

करने वाले हैं
कम नहीं हैं
बहुत बहुत हैं
करने कराने
के लिये ही हैं
उनको ही करना है
उनको ही कराना है

कविता कहानी
सुननी सुनानी
लिखनी लिखानी
दिखना दिखाना
बस एक बहाना है

छोटी सी बात
घुमा फिरा कर
टेढ़े मेढ़े पन्ने पर
कलम को
भटकाना है

हिंदी का दिन है
हिंदी की बात को
हिंदी की भाषा में
हिंदी के ही कान में
बस फुसफुसाना है

आशा है
आशावाद है
कुछ भी नहीं है
जो बरबाद है

सब है बस
आबाद है

महामृत्युँजय
मंत्र का जाप
करते रहे
हिंदी को
समझाना है

‘उलूक’
अच्छा जमाना
अब शर्तिया
हिंदी का
हिंदी में ही
आना है ।


चित्र साभार: www.cliparthut.com

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

दसवाँ हिंदी का सम्मेलन कुछ नया होगा सदियों तक याद किया जायेगा

हर जगह
कुछ ना कुछ
अढ़ाने की
आदत है

यहाँ
कैसे उसे
छोड़ पायेगा

दूर से ही सही
कुछ तो
उल्टा सीधा
खोज कर
लाकर
पढ़ायेगा

विश्व का है
हिंदी का है
सम्मेलन बड़ा है

छोटी मोटी
बात से
नहीं घुमायेगा

छोटा
होता होगा
तेरे घर के
आसपास
उसी तरह
का कुछ
बड़ा बड़ा
किया जायेगा

जमाना
अंतःविषय
दृष्टिकोण
का होना
बहुत जरूरी
हो गया
है आजकल

एक विषय
पर ही
बात करने से
दूसरे विषय का
अपना आदमी
कहाँ समायोजित
किया जायेगा

सारे
विषयों पर
चर्चा के बाद
समय बच गया
तो हिंदी पर भी
कुछ हवा में
छोड़ा जायेगा

कुछ फोड़ने
लायक हुआ तो
फोड़ा भी जायेगा

सम्मान
की पड़ी है
कुछ लोगों को

उनको ना सही
उनसे मिलते जुलते
किसी ना किसी को
तो दिया ही जायेगा

सम्मानित
किया जायेगा
तो दो मीटर
के कपड़े का
शॉल भी
दिया ही जायेगा

दिख जायेगा
किसी ना किसी
के कंधे पर
फोटो

टी वी अखबार
वालों को
तो बुलाया
जरूर ही जायेगा

हिंदी वाला नहीं
बुलाया गया
कोई चिंता की बात
नही करनी होगी

कुछ ना कुछ
उनके घर को
डाक से
भेज दिया जायेगा

नेता होंगे
राजनेता होंगे
मंच सुप्रसिद्ध
व्यक्तियों से
पाट दिया जायेगा

शराबियों
को रोकने
का इंतजाम
किया ही गया है

पहले से ही
किसी सरकारी
बड़े ने
कह ही दिया है

पीने पिलाने
छी छी
की कोशिश
करना छोड़

बात करने पर भी
हिंदी सम्मेलन से बाहर
फेंक दिया जायेगा

और क्या चाहिये
बता हिंदी तुझको

तेरे लिये है तेरे द्वारा
ही किया जा रहा है
तेरा उद्धार हमेशा से

मेरा कुछ नहीं है
तेरा तुझको अर्पण
ही किया जायेगा
जरूर किया जायेगा

'उलूक'
बहुत कुछ कहने
की आदत है जिसको

यहाँ आ कर पक्का
इसी तरह का कुछ
कहने से अपने को
नहीं रोक पायेगा

देख लेना
जो भी होगा
सामने होगा
समय बतायेगा ।

चित्र साभार: kharinews.in

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कभी कभी अनुवाद करने से मामला गंभीर हो जाता है



बायोडाटा या क्यूरिक्यूलम विटे
नजदीकी और जाने पहचाने शब्द

अर्थ आज तक कभी सोचा नहीं
हाँ बनाये एक नहीं कई बार हैं

कई जगह जा कर बहुत से कागज 
बहुत से लोगों को दिखाते भी आये हैं

कोई नयी बात नहीं है 
पर आज अचानक हिंदी में सोच बैठा

पता चला
अर्थ नहीं हमेशा अनर्थ ही करते चले आये हैं
व्यक्तिवृत या जीवनवृतांत होता हो जिनका मतलब
उसके अंदर बहुत कुछ
ऊल जलूल बस बताते चले आये हैं

डेटा तक सब कुछ ठीक ठाक नजर आता है
बहुत से लोगों के पास
बहुत ज्यादा ज्यादा भी पाया जाता है

कुछ खुद ही बना लिया जाता है
कुछ
सौ पचास बार जनता से कहलवा कर
जुड़वा दिया जाता है

पर वृतांत कहते ही
डेटा खुद ही पल्टी मार ले जाता है

अपने बारे में सभी कुछ
सच सच बता देने का इशारा
करना शुरु हो जाता है

और
जैसे ही बात शुरु होती है
कुछ सोचने की वृतांत की

उसके बारे में फिर
कहाँ कुछ भी किसी से भी कहा जाता है

अपने अंदर की सच्चाई से लड़ता भिड़ता ही कोई
अपने बारे में कुछ सोच पाता है

रखता है जिस जगह पर अपने आप को
उस जगह को पहले से ही किसी और से
घिरा हुआ पाता है

आसान ही नहीं बहुत मुश्किल होता है
जहां अपने सारे सचों को
बिना किसी झूठ का सहारा लिये
किसी के सामने से रख देना

वहीं बायोडेटा किसी का 
किसी को
कहाँ से कहाँ रख के आ जाता है

इस सब के बीच
बेचारा जीवनवृतांत
कब खुद से ही उलझ जाता है
पता ही नहीं चल पाता है ।

चित्र साभार:
https://interview-coach.co.uk/5-smart-ways-social-media-can-boost-your-career-success/

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी दिवस तो हो गया

हिंदी दिवस ही तो था
हो गया
कुछ को पता था
कुछ और को भी चलो
आज इसी बहाने से
और पता हो गया

हिंदी के अखबार में
छोटा सा समाचार 
हिंदी दिवस पर
दिखा कहीं कोने पर एक
वो भी पढ़ते पढ़ते पता ही नहीं चला
कंहा गया और कहां खो गया

अब किसी सँत वैलेंटाईन का
आदेश तो था नहीं
जो कह ले जाते
मनाना बहुत ही जरूरी हो गया

चकाचौंध कभी थी नहीं
वैसे भी हिंदी भाषा में
सीधी सादी एक हीरोईन को
छोटे 
कपड़ों में आना लगता है अब
बहुत ही जरूरी सा कुछ हो गया

सबसे सुन्दर और अलंकृत
मातृभाषा की सुन्दरता को
उसके अपनो को ही
दिखाने के लिये
एक नजदीक का चश्मा
पहनाना
लगता है अब
बहुत ही जरूरी हो गया

ज्यादा
क्या लिखना
हिंदी जैसे विषय पर
घर की मुर्गी का स्वाद
एक बार फिर से
जब 
मूंग की दाल के बराबर
हो गया ।

चित्र साभार: 
https://www.vecteezy.com/

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

यशोदा मैया है मेरी हिंंदी


मैया यशोदा
इंटेलिजेंट है
उसे मालूम
है ये बात
कि कन्हैया
गॉड का ही
एक ऐजेंट है
उस को
सब पता है
कैसे कन्हैया
को हैंडल
करना है
कहती कुछ
नहीं है बस
एक इशारा भर
कर जाती है
नॉटी बॉय को
रास्ते पर
ले आती है
कन्हैया एक
नहीं हजार
होते हैं
मैया यशोदा
के लिये
कोई प्रॉब्लम
नहीं होते हैं
जन्म नहीं
भी उसकी
कोख से
लेते हैं
तब भी
इतना उस
पर डिपेंडेंट
होते हैं
जैसे एक
बॉस और
एक सरवेंट
होते हैं
हिंदी दिवस
पर ये बात
समझ में
बहुत अच्छी
तरह आ
जाती है
किस तरह
हिंदी हमारी
मैया यशोदा
हो जाती है
दुनियाँ की
सारी भाषाओं
के शब्दों को
आत्मसात
कर ले
जाती है
कोई भी
भाषा इतनी
मैया यशोदा
कहां हो
पाती है
जितना मेरी
हिंदी अपने
को बना
ले जाती है
किसी को
नहीं बता
सकता ये
बात मैं भी
मुझसे भी तो
मैया यशोदा
इसी तरह से
कविता एक
लिखवाती हैं
और
हिंदी दिवस
मनाती हैं ।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

हुई कुछ हलचल मेरे शहर में

भारत में जन्मा
एक गोरा अंग्रेज
आज मेरे शहर
में आकर हमें
फिर आईना
दिखा गया
कुछ चटपटी
कुछ अटपटी
सी हिन्दी लेकिन
बस वो हिन्दी में ही
बोलता चला गया
इशारों इशारों में
उजागर किया
उसने कई बार
अपने देशप्रेम को
अंग्रेजों की दी
वसीयत से अब तो
मोह भंग कर जाओ
भारत और
भारतीयता
की उँचाइयाँ
कितनी हैं
गहरी अब तो
कुछ समझ में
अपनी ले आओ
भारतीय संस्कृति
में ही है ऎसा कुछ
जिससे ऎसा
वैसा रास्ता
उससे ना ही
कभी चुना गया
चीन देखो सामने
सामने कत्लोआम पर
गुजर कर तरक्की
कितनी पा गया
सरकार न्यायपालिका
नौकरशाह अगर
कर भी रहे हैं
दखलंदाजी एक
दूसरे के काम में
ऎ आदमी भारत के
तेरा ही तो
इस सब में
सब कुछ तूने
खुद ही तो
हमेशा से
है बहा दिया
उठ खडे़ हो
गौर कर सोच कुछ
मौके बहुत हैं
मुकाम पर देश
देखना ये गया
और वो गया
गाँधी और उसकी
गीता कौन
अब है देखता
वो फिर एक बार
उसकी याद हमको
अपनी बातों में
दिला गया
बहुत कुछ दिखा
उस शख्स में
अच्छा हुआ
ना जाते जाते मैं
उसको सुनने के
लिये चला गया
‘मार्क टली’
दिल से आभारी
हूँ तेरा आज मैं
मेरे सोते हुऎ
शहर को आज
तू कुछ थोड़ा सा
जो हिला गया ।