उलूक टाइम्स: कुत्ते की पूँछ
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गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

अंगरेजी में अनुवाद कर समझ में आ जायें फितूर ‘उलूक’ के ऐसा भी नहीं होता है

महसूस
करना
मौसम की
नजाकत
और
समय
के साथ
बदलती
उसकी
नफासत
सबके लिये
एक ही
सिक्के
का एक
पहलू हो
जरूरी
नहीं है

मिजाज
की तासीर
गर्म
और ठंडी
जगह की
गहराई
और
ऊँचाई
से भी
नहीं नापी
जाती है

आदमी की
फितरत
कभी भी
अकेली
नहीं होती है
बहुत कुछ
होता है
सामंजस्य
बिठाने
के लिये

खाँचे सोच
में लिये
हुऐ लोग
बदलना
जानते है
लम्बाई
चौड़ाई
और
गोलाई
सोच की

लचीलापन
एक गुण
होता है जिसे
सकारात्मक
माना जाता है

एक
सकारात्मक
भीड़ के लिये
जरूरत भी
यही होती है
और
पैमाना भी

भीड़ हमेशा
खाँचों में
ढली होती है

खाँचे सोच
में होते हैं
सोच का
कोई खाँचा
नहीं होता है

‘उलूक’
नाकारा सा
लगा रहता है
सोच की
पूँछ पर
प्लास्टर
लगाने
और
उखाड़ने में

हर बार
खाँचा
कुत्ते की
पूँछ सा
मुड़ा हुआ
ही
होता है

दीवारों पर
कोयले से
खींची गई
लकीरों का
अंगरेजी में
अनुवाद भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: Shutterstock

सोमवार, 3 नवंबर 2014

आज आपके पढ़ने के लिये नहीं लिखा है कुछ भी नहीं है पहले ही बता दिया है

एक छोटी सी बात
छोटी सी कहानी
छोटी सी कविता
छोटी सी गजल

या और कुछ
बहुत छोटा सा

बहुत से लोगों को
लिखना सुनाना
बताना या फिर
दिखाना ही
कह दिया जाये
बहुत ही अच्छी
तरह से आता है

उस छोटे से में ही
पता नहीं कैसे
बहुत कुछ
बहुत ज्यादा घुसाना
बहुत ज्यादा घुमाना
भी साथ साथ
हो पाता है

पर तेरी बीमारी
लाईलाज हो जाती है
जब तू इधर उधर का
यही सब पढ़ने
के लिये चला जाता है

खुद ही देखा कर
खुद ही सोचा कर
खुद ही समझा कर

जब जब तू
खुद लिखता है
और खुद का लिखा
खुद पढ़ता है
तब तक कुछ
नहीं होता है

सब कुछ तुझे
बिना किसी
से कुछ पूछे

बहुत अच्छी तरह

खुद ही समझ में
आ जाता है

और जब भी
किसी दिन तू
किसी दूसरे का
लिखा पढ़ने के लिये
दूसरी जगह
चला जाता है

भटक जाता है
तेरा लिखना
इधर उधर
हो जाता है

तू क्या लिख देता है
तेरी समझ में
खुद नहीं आता है

तो सीखता क्यों नहीं
‘उलूक’

चुपचाप बैठ के
लिख देना कुछ
खुद ही खुद के लिये

और देना नहीं
खबर किसी को भी
लिख देने की
कुछ कहीं भी

और खुद ही
समझ लेना अपने
लिखे को

और फिर
कुछ और लिख देना
बिना भटके बिना सोचे

छोटा लिखने वाले
कितना छोटा भी
लिखते रहें

तुझे खींचते रहना है
जहाँ तक खींच सके
कुत्ते की पूँछ को

तुझे पता ही है
उसे कभी भी
सीधा नहीं होना है

उसके सीधे होने से
तुझे करना भी क्या है
तुझे तो अपना लिखा
अपने आप पढ़ कर
अपने आप
समझ लेना है

तो लगा रह खींचने में
कोई बुराई नहीं है
खींचता रह पूँछ को
और छोड़ना
भी मत कभी

फिर घूम कर
गोल हो जायेगी
तो सीधी नहीं
हो पायेगी ।

चित्र साभार: barkbusterssouthflorida.blogspot.in

शनिवार, 17 अगस्त 2013

डाक्टर के पास जा पर सब कुछ मत बता

तेरे को भी पता 
नहीं क्या क्या
बिमारियां
लग जाती है
जो तेरे डाक्टर
तक को समझ
में नहीं आ पाती हैं
अब जब मर्ज ही
वो नहीं समझ
पायेगा तो इलाज
खाक बता पायेगा
बीमारी समझ में
आ भी जाती पर
तेरी भी तो
मजबूरी है हो जाती
कुछ बातें साफ साफ
नहीं हैं बताई जाती
पेट के अंदर उबल
भी रही हों अगर
तब भी थोड़ा ठंडा
करके ही सामने
है लाई जाती
सीधे सीधे कहने
से तो बबाल
बहुत हो जायेगा
अब हर किसी के
पास होता ही
है कामन सेंस
थोड़ा सा बताने पर
पूरा तो किसी भी
बेवकूफ तक के
समझ में आ जायेगा
इसलिये ऎसे ही
कुछ ना कुछ
बताते अगर
तू चला जायेगा
पेट भी ठीक रहेगा
पब्लिक में कहीं
नहीं गुड़गुडा़ऎगा
रहने दे कोई
जरूरत नहीं है
डाक्टर को
ये बताने की
आजकल तेरे
दिमाग में
घूम रही है
कुत्ते की पूँछ
को सीधा करने की
किसी तरकीब पर
शोध परियोजना
भारत सरकार के
पास भिजवाने की
वैसे भी डाक्टर को
अगर ये बात तू
बताने भी लग जायेगा
डाक्टर तुरंत तुझे
कुत्ते के काटने पर
लगने वाले इंजेक्शन
ही लगवायेगा
तू भी बेकार में
छ : सात हफ्ते तक
हस्पताल के
चक्कर लगायेगा
समझदारी इसी में है
कि तू डाक्टर को
कुछ नहीं बतायेगा
कुत्ते की पूँछ पर
तेरे जो भी मन में आये
कहीं जा के लिख आयेगा 
उसे भी कौन सा
सीधा होना है कभी
बस इतने से ही
तेरा काम बन जायेगा
तेरी शोध परियोजना
का समय भी
बढ़ता चला जायेगा
तुझे देखते ही
तेरा कुत्ता अपनी
टेढी़ पूँछ रोज की
तरह हिलायेगा
समझ गया ना
सब कुछ अब तो
डाक्टर को ये सब
तू जा के नहीं बतायेगा
कुछ बीमारियां
छिपी रहनी चाहिये
कम से कम इतना
तो तू समझ
ही अब जायेगा ।

मंगलवार, 29 मई 2012

कुत्ते की पूँछ

कुत्ते सारे
मोहल्ले के

आज सुबह
देखा हमने
जा रहे थे

सब अपनी
अपनी पूँछ
सीधी करके

पूछने पर
पता चला
नाराज हैं

हड़ताल
पर जा
रहे हैं

आज
रात से
गलियों में
भौंकने के
लिये भी
नहीं आ
रहे हैं

क्या दोष
है इसमें
माना सीधी
नहीं हो पाती है
पूँछ हमारी
अगर पाईप के
अन्दर भी रख
दी जाती है

छ: महीने का
प्लास्टर भी
अगर लगाओ
फिर से वैसी
ही टेढ़ी पाओ
जब प्लास्टर
खुलवाओ

सभी लोगों का
अपना अपना
कुछ सलीका
होता है

हर आदमी का
अपने काम को
अपनी तरह
करने का 

एक अलग
तरीका 
होता है

अब अगर
किसी को
किसी का
काम पसंद
नहीं आता है

तो इसके बीच
में कोई कुत्ते
और
उसकी पूँछ
को क्यों
ले आता है

बस बहुत
हो गया

आदमी की
बीमारियों
को अब
उसके अपने
नामों से ही
पंजीकृत
करवाओ

लोकतंत्र है
कुत्तों के
अधिकारों
पर चूना
मत लगाओ

कोई सोच
खुद की
अपनी भी
तो बनाओ।