उलूक टाइम्स: 250 वीं पोस्ट

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

250 वीं पोस्ट

बात बात
पर 
कूड़ा 
फैलाने की
फिर उसको
कहीं पर

ला कर
सजाने की

आदत

बचपन से थी


बचपन में
समझ में

जितना
आता था


उससे ज्यादा
का कूड़ा
 
इक्कट्ठा
हो जाता था


आसपास
परिवार
अपना
होता था


वही
रोज का रोज

उसे उठा
ले जाता था


दूसरे दिन
कूड़ा फैलाने

के लिये
फिर वही

मैदान
दे जाता था


कूड़ा
 था
कहाँ कभी

बच पाता था
जमा ही नहीं
कभी हो
पाता था


जवानी आई
कूड़े का

स्वरूप
बदल गया


सपनों के
तारों में

जाकर
टंकने लगा


एक तारा
उसे
आसमान

में ले कर
जाता था


एक तारा
टूटते हुऎ

फिर से उसे
जमीन पर

ले कर
आता था


सब उसी
तरह से

फिर से
बिखरा बिखरा

कूड़ा
हो जाता था


कितना भी
सवाँरने की

कोशिश करो

कहीं ना कहीं

कुछ ना कुछ
कूड़ा 
हो ही
जाता था


कूड़ा लेकिन
फिर भी

जमा नहीं
हो पाता था


अब याद भी
नहीं आता

कहाँ कहाँ
मैं जाता था


कहाँ का
कूड़ा लाता था

कहाँ जा कर उसे
फेंक कर आता था

बचपन से
शुरु होकर

अब जब
पचपन की

तरफ भागने लगा

हर चीज
जमा करने

का मोह
जागने लगा


कूड़ा
जमा होना
शुरू हो गया


रोज का रोज

अपने घर का 
उसके
आसपास का

बाजार का
अपने शहर का

सारे समाज का
कूड़ा देख देख
कर आने लगा

अपने अंदर
के कूडे़ को

उसमें
थोड़ा थोड़ा

दूध में पानी
की तरह

मिलाने लगा

गुलदस्ते
बना बना के

यहाँ पर
सजाने लगा


होते होते
बहुत हो गया


एक दो
करते करते

आज कूड़ा
दो सौ पार कर

दो सौ पचासवाँ
भी हो गया ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय जोशी जी!
    250वीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!

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  2. दो सौ पचासवी पोस्ट कर, मचा दिया धमाल
    बहुत-बहुत बधाइयां स्वीकारे,कर दिया कमाल,,,,,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  3. 1. यह तो आपकी विनम्रता है
    2. इंसान है तो कूड़ा भी होगा, समस्या कूड़े की नहीं उसके निस्तारण की ही है। पाठकों को भी परिवारजन ही मानिये
    3. बधाई और शुभकामनायें!

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  4. बहुत खूब! २५०वीं पोस्ट के लिये बधाई !

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (28-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
    चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
    टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
    मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
    शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।

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  6. 250वीं पोस्ट की बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ!

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  7. कूड़े से सज़ा गुलशन पहली बार देखा !:) काश! ऐसा कूड़ा बटोरना और उसे इकट्ठा कर के इस तरह सजाना...इतना आसान होता!
    २५०वीं पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें !
    सादर !!!

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  8. कूड़ा कहकर आप अपनी लेखनी के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं यह हुनर सबके पास नहीं होता ये तो एक दौलत है जिससे साहित्य का गुलशन महकता है

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