उलूक टाइम्स: चाँद
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बुधवार, 18 दिसंबर 2019

कि दाग अच्छे होते हैं



हमेशा
ढलती शाम
के
चाँद की
बात करना

और
खो जाना
चाँदनी में

गुनगुनाते हुऐ
लोरियाँ

सुनी हुयी
पुरानी कभी

दादी नानी
के
पोपले मुँह से

ऐसा
नहीं होता है

कि
सूरज
नहीं होता है

सवेरे का
कहीं

फिर भी
रात के
घुप्प अंधेरे में

रोशनी से
सरोबार हो कर

सब कुछ
साफ सफेद
का
कारोबार

करने वाले
ही
पूछे जाते हैं
हर जगह

जरूरी
भी हो जाता है

अनगिनत
टिमटिमाते
तारों की
चपड़ चूँ से
परेशान

चाँदनी
बेचने के
काम में
मंदी से हैरान

थके हुऐ से
भारी
बहीखातों
के
बोझ से
दबे

झुँझलाये
कुमह्लाये 

देव के
कोने कोने
स्थापित
देवदूतों में

काल
और
महाकाल

के
दर्शन
पा कर

तृप्त
हो लेने में
भलाई है

और
सही केवल

दिन के
चाँद को

और
रात के सूरज को
सोच लेना ही है

तारों की चिंता
चिता के समान
हो सकती है

करोड़ों
और
अरबों का
क्या है

कहीं भी
लटक लें
खुद ही

अपने
आसमान
ढूँढ कर

किसलिये
बाँधना है
अराजकता
को
नियमों से

अच्छा है
आत्मसात
कर लिया जाये

कल्पनाएं
समय के हिसाब से
जन्म ना ले पायें

उन्हें
कन्या मान कर

भ्रूण को
पैदा होने से
पहले ही
शहीद
कर दिया जाये

महिमा मण्डित
करने के लिये

परखनली
में
पैदा की गयी

कल्पनाएं

सोच में
रोपित की जायें

प्रकृति
के लिये भी
कुछ बंधन
बनाने की
ताकत है किसी में

वही
पूज्यनीय
हो जाये

अच्छा होगा
‘उलूक’
उसी तरह

जैसे
माना जाता है

कि
दाग
अच्छे होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.jing.fm/

सोमवार, 23 सितंबर 2019

चलो बस यूँ ही चाँद पर रोटी तोड़ने के लिये हो के आते हैं


कौन 
सोया 
हुआ है

कौन

जागा 
हुआ है

अब तो

ये भी 

पता 
नहीं चलता

वो 
कहते हैं

तुम

सो रहे हो

हमें

वो 
सोये
हुऐ से
नजर 
आते हैं

चलो

इस तरह
ही सही

उनकी 
रात हो
रही होती है

हम 
उठ कर
घूमने

चले
जाते हैं

भूख

और 
रोटी

एक

पुरानी 
सी बात 
लगती है

कुछ

नया 
करते हैं

चलो

चाँद पर

घूम कर

चले

आते हैं ।

----------------



(अपनी 

फेसबुक
दीवार से

मित्र के साथ

बातों बातोंं
 
मे एक बात)

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बुधवार, 21 अगस्त 2019

चाँद सूरज की मिट्टी की कहानी नहीं भी सही ‘उलूक’ किसी पत्थर को सिर फोड़ने की दवाई बता कर दे ही जायेगा



अभी तो
बस

शुरु सा
ही
किया है
लिखना

किसे
पता है
कहाँ तक
जा कर

सारा सब
लिख
लिया जायेगा

क्या
लिख रहे हैं
और
किसके लिये

किसलिये सोचना
अभी से

कौन सा
पढ़ लेने
वालों को
भी
समझ में

सारा
सब कुछ
इतनी जल्दी
ही
आ जायेगा

वो
लिखते हैं ये

हम
समझते हैं वो

इस उस
से
उलझते हुऐ

बहुत कुछ
गुजर जायेगा

उसका
वो
लपेटेगा उसको
उधर ही

इधर
के
लपेटे में
इधर का ही
तो
लपेटने समेटने
के
लिये आयेगा

छोटी छोटी
कहानी
कुछ पहेली
कुछ झमेले

सब के
अपने अपने
घर गली
मोहल्ले शहर के

किस लिये
सुनाने बताने समझाने

किसी
दूर बैठे
उबासी भरे
मगज के विद्वान को

कौन सा
देश बनना है
मिल मिला कर

घर घर
की
समस्याओं को

घर में
आपस में
मिलबाँट
कर

इधर से उधर
खिसका
दिया जायेगा

वो
चाँद से
सूरज तक
लिखे
बहुत अच्छा है

रात
का निसाचर
‘उलूक’
भी

तारे
नहीं भी सही
नजदीक के

किसी
उल्कापिंड तक
पहुँचा कर
पाठकों को

कुछ
कम ही मगर

उलझा
तो
ले ही जायेगा।

चित्र साभार: https://paintingvalley.com



सोमवार, 12 अगस्त 2019

तेरे जैसे कई हैं ‘उलूक’ बिना धागे के बनियान लिखते हैं


तारे
कुछ 
रोशनी के 
सामान 
लिखते हैं 

चाँद 
लिखते हैं 
आसमान 
लिखते हैं 

मिट्टी
पत्थर 
कुछ 
बेजुबान 
जमीन के 

सोच 
बैठते हैं 
वही
एक हैं 

जो 
जुबान 
लिखते हैं 

सिलवटें 
लिखते हैं 

सरेआम 
लिखते हैं 

कुछ 
लकीरें 
सोच कर 

तीर
कमान 
लिखते हैं 

कितना 
लिखते हैं
कुछ 

कई 
पन्नों में
बस 

हौले से 
मुस्कुराता
हुआ 
उनवान
लिखते हैं 

कुछ 
घर का 
लिखते हैं 

कुछ 
शहर का 
लिखते हैं 

थोड़े 
से
कुछ 

बस
मकान 
लिखते हैं 

अन्दर 
तक 

घुस के 
चीर 
देता है 

किसी 
का लिखना 

थोड़े से 
कुछ
बेशरम 

नुवान
लिखते हैं 

दाद देना 
बस में 
नहीं है 

दिखाते 
जरूर
हैं 

हिंदुस्तान 
लिखते हैं 

क्यों 
नहीं
लिखता 
कुछ नया 

लिखने जैसा 

तेरे जैसे 
कई हैं 
 ‘उलूक’ 

बिना 
धागे के 

बनियान 
लिखते हैं ।

 चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

रविवार, 28 जुलाई 2019

जरूरी है अस्तित्व बचाने या बनाने के लिये खड़े होना किसी ना किसी एक भीड़ के सहारे भेड़ के रेवड़ ही सही


जरूरी है
मनाना
जश्न 

कुत्तों के द्वारा
घेर कर
ले जायी जा रही
भेड़ों के  रेवड़ से
बाहर रहकर
जिन्दा बच गयी
भेड़ के लिये

गरड़िया
गिनता है भेड़ 

रेवड़ से बाहर
जंगल में
शेर की
शिकार
हो गयी भेड़ेंं

घटाना
जरुरी नहीं होता है

भीड़
भीड़ होती है
भीड़ का
चेहरा नहीं होता है

जरूरी भी
नहीं 
होता है कोई आधार कार्ड
भीड़ के लिये 

गरड़िये को
चालाक
होना ही पड़ता है

भेड़ें बचाने
के लिये नहीं

झुंड
जिन्दा रखने के लिये

भेड़ें बचनी
बहुत जरूरी होती हैंं
संख्या नहीं

लोकतंत्र
और भीड़तंत्र
के अलावा
भेड़तंत्र का भी
एक तंत्र होता है 

होशियार
लम्बे समय
तक जीते हैं

मूर्ख
मर जाते हैं
जल्दी 
ही
अपने
कर्मों के कारण 

जन्म भोज
से लेकर
मृत्यू भोज तक
कई भोज होते हैं

बात
आनन्द
ले सकने
की होती है

उसके
लिये भी
किस्मत होनी
जरूरी होती है 

इक्यावन
एक सौ एक
से लेकर करोड़
यूँ ही फेंके जाते हैं

किसी
एक भंडारे में
कई लोग
पंक्ति में बैठ कर
भोजन करते हुऐ
सैल्फी खिंचाते हैं

भेड़ेंं
मिमियाने में ही
खुश रहती होंगी
शायद

उछलती कूदती
भेड़ों
को देखकर
महसूस होता है

‘उलूक’
भेड़ें बकरियाँ
कुत्ते बन्दर गायें
बहुत कुछ सिखाती हैं

किस्मत
फूटे हुऐ लोग
आदमी
गिनते रह जाते हैं

आदमी
गिनने से
तरक्की नहीं होती है

जानवरों की
बात करते करते
बिना कुछ गिने

कहाँ से कहाँ
छ्लाँग
लगायी जाती है

स्टंट
करने वाले
बस
फिल्मीं दुनियाँ
में ही
नहीं पाये जाते हैं

बिना डोर की
पतंग
उड़ाने की
महारत
हासिल कर गये लोग

चाँद में
पतंग रख कर
वापस भी आ जाते हैं

वैज्ञानिक
हजार करोड़
से उड़ाये गये
राकेट के
धुऐं के चित्र
देख देख कर

अपने कॉलर
खड़े करते हैं
कुछ
ताली बजाते हैं
कुछ
मुस्कुराते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartlogo.com

गुरुवार, 7 मार्च 2019

करना कुछ नहीं है होता रहता है होता रहेगा सूरज की ओर देख कर बस छींक देना है



एक 
जूता
मार रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

एक 
जूता
खा रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

दूर दर्शन 
दिखा रहा है 

दिखा
रहा होगा 

बस
 देख लेना है 

अखबार में 
छप गया है 

छपा
दिया गया होगा 

बस
सोच लेना है 

उसके साथ
खड़े रहना है 

मजबूती से 

मजबूरी है 

जमीर 
होता ही है 

परेशान
करे 
तो बेच देना है 

घर की 
बातें हैं 

जनता
के बीच 
जा जा कर 
क्यों कहना है 

दिल्ली 
दूर
नहीं होती है 

दूरबीन लगाये 
बस उधर देखना है 

अकेले 
रहना भी 
कोई रहना है 

गिरोह में 
शामिल
नहीं होना
हिम्मत 
का काम 
हो सकता है 

पर
आत्मघाती 
हो जाता है 

सोच लेना है 

कविता करना 
कहानी कहना 
शाबाशी लेना 
शाबाशी देना 

गजब बात है 

सच की
थोड़ी सी
वकालत करना

बकवास 
करना 
हो जाता है 

ये भी
देख लेना है 

‘उलूक’ 

अपने 
आस पास के 
जूते जुराबों को 
छुपा देना है 

बस 
चाँद के
पाँव धो लेने है 

और
 सोच सोच कर 
बेखुदी में
कुछ पी लेना है 


कुछ भी 
हो जाये 

लेकिन 

बस 
धरती पर 
उतारा गया 

गफलत का 

वही चाँद 
देख लेना है 

वही चाँद 
खोद लेना है ।

चित्र साभार: https://openclipart.org

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

गुरु की पूर्णिमा को सुना है आज ग्रहण लगने जा रहा है चाँद भी पीले से लाल होना चाह रहा है

गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है

कह कुछ
नहीं रही है

बस
छोटी छोटी
बातों के बीच

मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है

गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं

कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका

कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है

चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है

ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है

‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है

गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा

उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है

कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु

उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है

इतिहास का
पहला वाकया है

चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध

कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है

थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध

सुनकर

गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।

चित्र साभार: www.istockphoto.com

शनिवार, 31 मार्च 2018

घर में तमाशे हो रहे हों रोज कुछ दिनों चाँद की ओर निकल लेने में कुछ नहीं जाता है

खोला तो
रोज ही
जाता है

लिखना भी
शुरु किया
जाता है

कुछ नया
है या नहीं है
सोचने तक

खुले खुले
पन्ना ही
गहरी नींद में
चला जाता है

नींद किसी
की भी हो
जगाना
अच्छा नहीं
माना जाता है

हर कलम
गीत नहीं
लिखती है

बेहोश
हुऐ को
लोरी सुनाने
में मजा भी
नहीं आता है

किस लिये
लिख दी
गयी होती हैं
रात भर
जागकर नींदें
उनींदे
कागजों पर

सोई हुवी
किताबों के
पन्नों को जब
फड़फड़ाना
नहीं आता है

लिखने
बैठते हैं
जो
सोच कर
कुछ
गम लिखेंगे
कुछ
दर्द भी

लिखना
शुरु होते ही
उनको अपना
पूरा शहर
याद
आ जाता है

सच लिखने की
हसरतों के बीच

कब किसी झूठ
से उलझता है
पाँव कलम का

अन्दाज ही
नहीं आता है

उलझता
चला जाता है

बहुत आसान
होता है
क्योंकि
लिख देना
एक झूठ ‘उलूक’

जिस पर
जब चाहे
लिखना
शुरु करो
बहुत कुछ
और
बहुत सारा
लिखा जाता है

घर
और तमाशे
से शुरु कर
एक बात को
चाँद
पर लाकर
इसी तरह से
छोड़ दिया
जाता है ।

चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

सूरज चाँद तारों को भी तोड़ देते हैं सब की सुबह और शाम को लगता है अब साथ होना नहीं है

दो दिन
निकल लिये

कौन से
कैलेण्डर
के निकले
पता नहीं है

सोमवार
मंगलवार
की चीर फाड़

कब
शुरु होगी
कौन करेगा
अभी तो
किसी ने कुछ
कहा नहीं है

दो दिन पहले
घर पर लटके
कैलेण्डर में
चढ़ी तारीख
उछल रही थी
देखा था
सपने में

सपने
देखने पर
अभी तक तो
कोई पैसा
लगा नहीं है

पूना में हुई है
मारपीट
सुना है
अभी अभी
समाचार में

कौन मरा है
किसने मारा है
कितने मरे हैं
क्यों मारे हैं

इस सब से
किस
कैलेण्डर
को कहाँ
लटकना
है से
कुछ भी तो
लेना देना
नहीं है

दो दिन पहले
महसूस हुआ था

शुभकामनाएं ले लो
किसी से कहा था

जवाब मिला था

मेरा तो आज
नहीं होता है
मना किया
गया है मुझे
आज कुछ भी
किसी से
लेना नहीं है

इन्तजार होना
शुरु हो गया है
‘उलूक’ को
देखने का

हाथों को अलग
पैरों को अलग
आँखों को अलग
कानो को अलग

नाचते हुऐ
अलग अलग
अपने अपने
घरों में अलग

वैसे भी
आदमी को पूरा
एक साथ खुद में
आदमी रह कर
अब होना भी
कोई होना नहीं है ।

चित्र साभार: https://drawception.com

रविवार, 5 जून 2016

विश्व पर्यावरण दिवस चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है

कल रात चाँद
सपने में आया
बहुत साफ दिखा
जैसे कोई दूल्हा
बारात चलने
से पहले रगड़
कर हो नहाया
लगा जैसे
किसी ने कहा
आओ चलें
 चाँद पर जाकर
लगा कर आयें
कुछ चित्र
कुछ पोस्टर
कुछ साफ पानी के
कुछ स्वच्छ हवा के
कुछ हरे पेड़ों के
शोर ना करें
हल्ला ना मचायें
बस फुसफुसा
कर आ जायें
कुछ गीत
कुछ कवितायें
फोड़ कर आयें
हौले से हल्के
फुल्के कुछ भाषण
जरूरी भी है
जमाना भी यहाँ का
बहुत संभल
कर चल रहा है
अकेले अब कुछ
नहीं किया जाता है
हर समझदार
किसी ना किसी
गिरोह के साथ
मिल बांट कर
जमाने की हवा
को बदल रहा है
घर से निकलता है
जो भी अंधेरे में
काला एक चश्मा
लगा कर
निकल रहा है
सूक्ष्मदर्शियों की
दुकाने बंद
हो गई हैंं
उनके धंधों
का दिवाला
निकल रहा है
दूरदर्शियों की
जयजयकार
हो रही है
लंका में सोना
दिख गया है
की खबर रेडियो
में सुना देने भर से
शेयर बाजार में
उछालम उछाला
चल रहा है
यहाँ धरती पर
हो चुका बहुत कुछ
से लेकर सब कुछ
कुछ दिनों में ही इधर
चल चलते हैं ‘उलूक’
मनाने पर्यावरण दिवस
चाँद पर जाकर
इस बार से
यहाँ भी तो
बहुत दूर के
सुहाने ढोल नगाड़े
बेवकूफों को
दिखाने और
समझाने का
बबाला चल रहा है ।

चित्र साभार: islamicevents.sg

शनिवार, 3 जनवरी 2015

नया साल नई दुल्हन चाँद और सूरज अपनी जगह पर वही पुराने

जुम्मा जुम्मा
ले दे के
खीँच खाँच के
हो गये
तीन दिन
नई दुल्हन के
नये नये
नखरे
जैसे मेंहदी
लगे पाँव
दूध से
धुले हुऐ
अब तेज भी
कैसे चलें
पीछे से
पुराने दिन
खींचते हुऐ
अपनी तरफ
जैसे कर रहे हों
चाल को
और भी धीमा
कोई क्या करे
जहाँ रास्ते को
चलना होता है
चलने वाले को
तो बस खड़े
होना होता है
वहम खुद के
चलने का
पालते हुऐ
तीन के तीस
होते होते
मेंहदी उतर
जाती है
कोई पीछे
खींचने वाला
नहीं होता है
चाल
अपने आप
ढीली
हो जाती है
तीन सौ पैंसठ
होते होते
आ गया
नया साल
जैसे नई दुल्हन
एक आने
को तैयार
हो जाती है
चलने वाले को
लगने लगता है
पहुँच गया
मंजिल पर
और
आँखे कुछ
खोजते हुऐ
आगे कहीं
दूर जा कर
ठहर जाती हैं
कम नहीं
लगता अपना
ही देखना
किसी चील
या
गिद्ध के
देखने से
वो बात
अलग है
धागा सूईं
में डालने
के लिये
पहनना
पड़ता हो
माँग कर
पड़ोसी से
आँख का चश्मा
कुछ भी हो
दुनियाँ चलती
रहनी है
पूर्वाग्रहों
से ग्रसित
‘उलूक’
तेरा कुछ
नहीं हो सकता
तेरे को शायद
सपने में भी
नहीं दिखे
कभी
कुछ अच्छा
दिनों की
बात रहने दे
सोचना छोड़
क्यों नहीं देता
अच्छा होता है
कभी चलते
रास्तों से
अलग होकर
ठहर
कर देखना
चलता हुआ
सब कुछ
साल गुजरते
चले जाते हैं
नये सालों
के बाद
एक नये
साल से
गुजरते
गुजरते ।

चित्र साभार: galleryhip.com

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

कहीं कोई किसी को नहीं रोकता है चाँद भी क्या पता कुछ ऐसा ही सोचता है

भाई अब चाँद
तेरे कहने से
अपना रास्ता
तो बदलेगा नहीं
वहीं से निकलेगा
जहाँ से निकलता है
वहीं जा कर डूबेगा
जहाँ रोज जा
कर डूबता है
और वैसे भी
तू इस तरह से
सोचता भी क्यों है
जैसा कहीं भी
नहीं होता है
रोज देखता है
आसमान के
तारों को
उसी तरह
टिमटिमातें हैं
फिर भी तुझे
चैन नहीं
दूसरी रात
फिर आ जाता है
छत पर ये सोच कर
कि तारे आज
आसमान के
किनारे पर कहीं होंगे
कहीं किनारे किनारे
और पूरा आसमान
खाली हो गया होगा
साफ साफ दिख
रहा होगा जैसे
तैयार किया गया हो
एक मैदान कबड्डी
के खेल के लिये
फिर भी सोचना
अपने हिसाब से
बुरा नहीं होता है
ऐसा कुछ
होने की सोच लेना
जिसका होना
बहुत मुश्किल भी
अगर होता है
सोचा कर
क्या पता किसी दिन
हो जाये ऐसा ही कुछ
चाँद आसमान का
उतर आये जमीन पर
तारों के साथ
और मिलाये कहीं
भीड़ के बीच से
तुझे ढूँढ कर
तुझसे हाथ
और मजाक मजाक
में कह ले जाये
चल आज से तू
चाँद बन जा
जा आसमान में
तारों के साथ
कहीं दूर जा
कर निकल जा
आज से उजाला
जमीन का जमीन
के लिये काम आयेगा
आसमान का मूड
भी कुछ बदला
हुआ देख कर
हलका हो जायेगा ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

जब उधार देने में रोया करते हो तो किसलिये मित्र बनाया करते हो

मित्र बनते हो

सबसे कहते
फिरते हो

दिखाते हो
बहुत कुछ
सीना खोल
कर फिरते हो

सामने से कुछ
पीछे से कुछ
और और 

करते हो

जान तक देने
की बात सुनी
गई है कई बार
तुम्हारे मुँह से

चाँद तारे तोड़
कर लाने की
बात करते हो

कितने बेशरम
हो तुम यार

थोड़ा सा पैसा ही
तो मांगा उधार
देने से मुकरते हो

साल में
एक बार नहीं
चार पाँच बार
एक सी
बात करते हो

एक
माँगने पर
आधा दिया
करते हो

कहाँ
बेच कर
आते हो
मानवता को

एक साल
होता नहीं है
वापस माँगना
शुरु करते हो

सच में

बहुत ही
बेशरम हो यार

उधार देने में
बहुत ज्यादा
पंगा करते हो

कमजोर
दिल के
मालिक हो
और
मर्द होने का
दावा करते हो

दो चार बार
मांग लिया
क्या उधार

पाँचवी बार
से गायब
हो जाना
शुरु करते हो

मित्र
होने का
दम भरते हो

सच में

बहुत ही
बेशरम हो यार

यारों के यार
होने का दम

इतना
सब होने
के बाद भी
भरते हो ।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

हर खाली कुर्सी में बैठा नहीं जाता है

आँख में बहुत मोटा
चश्मा लगाता है
ज्यादा दूर तक
देख नहीं पाता है
लोगों से ही
सुनाई देता है
चाँद देखने के लिये
ही आता जाता है
वैसे किसी ने नहीं
बताया कभी आसमान
की तरफ ताकता हुआ
भी कहीं पाया जाता है
कोई क्यों परेशान
फिर हुआ जाता है
अपने आने जाने
की बात अपनी
घरवाली से कभी
नहीं छुपाता है
अपने अपने ढंग से
हर कोई
जीना चाहता है
कहाँ लिखा है
किसी किताब में
काम करने
की जगह पर
इबादत करने को
मना किया जाता है
छोटी छोटी बातों के
मजे लेना सीख
क्यों जान बूझ कर
मिर्ची लगा सू सू करने
की आदत बनाता है
क्या हुआ अगर कोई
अपनी कुर्सी लेकर ही
कहीं को चला जाता है
अपनी अपनी किस्मत है
जिस जगह बैठता है
वही हो जाता है
तुझे ना तो किसी
चाँद को देखना है
ना चाँद तेरे जैसे को
कभी देखना चाहता है
रात को बैठ लिया कर
घर की छत में
आसमान वाला चाँद
देखने के लिये कोई
कहीं टिकट
नहीं लगाता है
धूनी रमा लिया कर
कुर्सी में बैठना
सबके बस की
बात नहीं होती है
और फिर हर
किसी को कुर्सी पर
बैठने का तमीज
भी कहाँ आ पाता है ।

रविवार, 11 अगस्त 2013

पता नहीं चलता है तो क्यों मचलता है !

खाली दिमाग 
शैतान के
घर में
बदलता है
दिमाग कुछ
ना कुछ
रख कर
तभी तो
चलता है
जब तक
कुछ नहीं
कहता है
कुछ भी
पता नहीं
चलता है
खुलती है
जब जुबाँ
तब  घर
का पता
चलता है
उस घर
के कोने
में अंधेरा
रखना कभी
भी नहीं
खलता  है
उजाले तक
को देखिये
जिसका
पता नहीं
चलता है
चेहरे को
देख कर
ही बस
दिल का
पता नहीं
चलता है
जब दिल
बिना धुऎं
के ही
हमेशा से
जलता है
सूरज अगर
रात को
और चांद
दिन में
निकलता है
तब आने
का पता
जाने को
भी नहीं
चलता है
बहुतों की
फितरत में
इस तरह
का जब
आजकल
देखने को
मिलता है
तू अपने
खुद के
रास्तों में
अपनी ही
लालटेन
लेकर क्यों
नहीं हमेशा
निकलता है ।

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

यहाँ होता है जैसा वहाँ होता है

होने को 
माना
बहुत कुछ 
होता है

कौन सा 
कोई 
सब कुछ 
कह देता है

अपनी 
फितरत से 
चुना जाता है 
मौजू

कोई 
कहता है 
और
कहते कहते 
सब कुछ 
कह लेता है 

जो 
नहीं चाहता 
कहना
देखा सुना 
फिर से 

वो 
चाँद की 
कह लेता है 

तारों की 
कह लेता है

आत्मा की 
कह लेता है

परमात्मा की 
कह लेता है 

सुनने वाला 
भी 
कोई ना कोई 

चाहिये 
ही होता है 

कहने वाले को 
ये भी
अच्छी तरह 
पता होता है 

लिखने वाले 
का भी 
एक भाव होता है

सुनने वाला 
लिखने वाले से 
शायद 
ज्यादा 
महंगा होता है 

सुन्दर लेखनी 
के साथ
सुन्दर चित्र हो

ज्यादा नहीं 
थोड़ी सी भी 
अक्ल हो 
सोने में 
सुहागा होता है 

हर कोई 
उस भीड़ में
कहीं ना कहीं 
सुनने के लिये 
दिख रहा होता है 

बाकी बचे 
बेअक्ल
उनका अपना 
खुद का 
सलीका होता है

जहाँ 
कोई नहीं जाता
वहां जरूर 
कहीं ना कहीं उनका 
डेरा होता है

कभी किसी जमाने में
चला आया था 
मैं यहाँ
ये सोच के 

शायद 
यहां कुछ 
और ही
होता है

आ गया समझ में 
कुछ देर ही से सही
कि 
आदमी
जो 
मेरे वहाँ का होता है 

वैसा ही 
कुछ कुछ 
यहाँ का होता है 

अंतर होता है 
इतना 
कि 
यहाँ तक आते आते

वो
ऎ-आदमी
से 
ई-आदमी 
हो लेता है ।

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

फिर आया घोडे़ गिराने का मौसम



किसने बताया कहाँ सुन के आया

कि
लिखने वाले 
ने जो लिखा होता है
उसमें उसकी तस्वीर और उसका पता होता है

किसने बताया कहाँ सुन के आया

कि
बोलने वाले ने 
जो बोला होता है
उससे उसकी सोच और उसके कर्मो का लेखा जोखा होता है

बहुत बडे़ बडे़ लोगों 
के
आसपास मडराने 
वालों के
भरमाने 
पर मत आया कर

थोड़ा गणित ना 
सही
सामाजिक 
साँख्यिकी को ध्यान में ले आया कर

इस जमाने में
चाँद में पहुँचने की तमन्ना रखने वाले लोग ही
सबको घोडे़ दिलवाते हैं
जल्दी पहुँच जायेगा मंजिल किस तरह से
ये भी साथ में समझाते हैं

घोडे़ के आगे 
निकलते ही
घोडे़ की पूँछ में पलीता लगाते हैं
चाँद में पहुँचाने वाले दलाल को
ये सब घोडे़ की दौड़ है कह कर भटकाते हैं
घोडे़ ऎसे पता नहीं कितने
एक के बाद एक गिरते चले जाते हैं

समय मिटा देता है
जल्दी ही लोगों की यादाश्त को
घोडे़ गिराने वाले फिर कहीं और
लोगों को घोड़ों में बिठाते हुऎ नजर फिर से आते है

बैठने वाले ये भी 
नहीं समझ पाते हैं
बैठाने वाले खुद कभी भी कहीं भी
घोडे़ पर बैठे हुऎ नजर क्यों नहीं आते हैं ?

चित्र साभार: https://www.freepik.com/

रविवार, 29 जुलाई 2012

एक चाँद बिना दाग

एक चाँद
बिना दाग का

कब से मेरी
सोच में यूँ ही
पता नहीं क्यों
चला आता है

मुझ से
किसी से
इसके बारे में
कुछ भी नहीं
कहा जाता है

चाँद का बिना
किसी दाग के
होना
क्या एक
अजूबा सा नहीं
हो जाता है

वैसे भी
अगर 
चाँद की बातें
हो रही हों
तो दाग की
बात करना
किसको
पसंद 
आता है

हर कोई
देखने
आता है
तो 
बस
चाँद को
देखने
आता है

आज तक
किसी 
ने भी
कहा क्या

वो एक दाग को
देखने के लिये
किसी चाँद को
देखने आता है

आईने के
सामने 
खड़ा
होकर देखने
की कोशिश
कर 
भी लो
तब भी

हर किसी को
कोई एक दाग
कहीं ना कहीं
नजर आता है

अब ये
किस्मत की
बात ही होती है

कोई चाँद की
आड़ लेकर
दाग 
छुपा
ले जाता  है

किस्मत
का मारा
हो कोई
बेचारा चाँद

अपने दाग
को 
छुपाने
में ही 
मारा
जाता है

उस समय
मेरी 
समझ
में कुछ 
नहीं
आता है

जब
एक चाँद
बिना दाग का
मेरी सोच में
यूँ ही चला
आता है ।

गुरुवार, 28 जून 2012

दीवाने/बेगाने

चाँद
सोचना

चाँदनी
खोदना

तारों की
सवारी

फूलों पर
लोटना


तितलियों
को देख

खुश
हो जाना

मोरनियाँ
पास आयें

मोर
हो जाना

पंख फैलाना
नाच दिखाना

आँखे कहीं
दिख जायें

बिना देखे
कूद जाना

तैरना
आता हो

तब भी
डूब जाना


किसी और
को पिलाना

बहक खुद
ही जाना

जमाना
तो है ऎसे 

ही दीवानो
का दीवाना


लकड़ी की
सोचना

मकड़ियों
को देखना

सीधा कोई
मिल जाये

टेढ़ा हो जाना

मिट्टी तेल
की ढिबरी

से चाँद
तारे बनाना

जब तक
पडे़ नहीं

बैचेनी
दिखाना

पड़ी में
दो लात

ऊपर
से खाना

गधे की
सोचना

शुतुरमुर्ग
हो जाना


किसी के
भी फटे में

जाकर के
टांग अढ़ाना

किसकी
समझ में

आता है
ऎसों
का गाना

टूटे फूटे इन
बेगानों को

किसने है
मुँह लगाना।