उलूक टाइम्स: चिकित्सक
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बुधवार, 30 सितंबर 2020

लिखने की बीमारी है इलाज नहीं है चल रही महामारी है है तो मुमकिन है है कहीं किसी लौज में है

 


किस बात का है रोना कहाँ है कोरोना 
सब हैं तो सही और भी मौज में हैं
डर है बस कहीं है खबर में है
खबर अखबार में है
वीर हैं बहुत सारे हैं सब फौज में हैं

दिख नहीं रहा है गिनती कर रहा है
छुपा है घर में और सब की खोज में है
गुलाब उसकी सोच में है
कांटे खुद की सोज में हैं
बात है जो है बस रोज (गुलाब) में है

समझ सब की अपनी है
बात बस खाली हवा में रखनी है
सच है कहीं है किसी हौज में है 

नाटक जरूरी है
तन्खवाह लेकिन
हर पहली तारीख को
खाते में आना बहुत जरूरी है 

हस्पताल है
पर्ची है
चिकित्सक है
बिना बिमारी मरी महामारी है
मुर्दे हैं सारे भोज में हैं

सब को पता है
हर आदमी
कहां है पूछता फिर रहा है
उसकी मजबूरी है
सोच है नोज (नाक) में है

लिखना
‘उलूक’ का
उसकी बीमारी है
इलाज है नहीं
चिकित्सक की कमजोरी है
सारे हैं
सैल्फी की पोज में हैं ।


चित्र साभार: https://www.aegonlif

रविवार, 12 अप्रैल 2015

जय हो जय हो कह कह कर कोई जय जय कार कर रहा था

पहले दिन की खबर
बकाया चित्र के साथ थी
पकड़ा गया था एक
सरकारी चिकित्सक
लेते हुऐ शुल्क मरीज से
मात्र साढ़े तीन सौ रुपिये
सतर्क सतर्कता विभाग के
सतर्क दल के द्वारा
सतर्कता अधिकारी था
मूँछों में ताव दे रहा था
पैसे कम थे पर खबर
एक बड़ी दे रहा था
दूसरे दिन वही
चिकित्सक था
लोगों की भी‌ड़ से
घिरा हुआ था
अखबार में चित्र
बदल चुका था
चिकित्सक था मगर
मालायें पहना हुआ था
न्यायधिकारी से
डाँठ खा कर
सतर्कता अधिकारी
खिसियानी हँसी कहीं
कोने में रो रहा था
ऐसा भी अखबार
ही कह रहा था
दो दिन की एक
ही खबर थी
लिखे लिखाये में
कुछ इधर का
उधर हो रहा था
कुछ उधर का
इधर हो रहा था
‘उलूक’ इस सब पर
अपनी कानी आँख से
रात के अंधेरे में
नजर रख रहा था
उसे गर्व हो रहा था
कौम में उसकी
जो भी जो कुछ
कर रहा था
बहुत सतर्क हो
कर कर रहा था
सतर्कता से
करने के कारण
साढ़े तीन सौ का
साढ़े तीन सौ गुना
इधर का उधर
कर रहा था
चित्र, अखबार,
उसके लोगों का
खबर के साथ
खबरची हमेशा
भर रहा था
सतर्क सतर्कता
विभाग के
सतर्क दल का
सतर्क अधिकारी
पढ़ाना लिखाना
सिखाने वालों के
पढ़ने पढ़ाने को
दुआ सलाम
कर रहा था
पढ़ने पढ़ाने के
कई फायदे में से
असली फायदे का
पता चल रहा था
कोई पाँव छू रहा था
कोई प्रणाम कर रहा था
ऊपर वाले का गुणगाँन
विदेश में जा जा कर
देश का प्रधान कर रहा था ।

चित्र साभार: www.clipartheaven.com

शनिवार, 1 फ़रवरी 2014

अच्छा होता है जब समझने वाली बात नहीं लिखी जाती है

बहुत सी बातें
कई बार किसी
खास मौके पर ही
समझ में आती हैं

कोई हादसा नहीं
हो पाया हो तो
समझने की जरूरत
भी नहीं रह जाती है

एक चिकित्सक के
दिये पर्चे पर जब
नजर जाती है
गोले बने हुऐ से

गोलियाँ
खाने की
संंख्या और
बारम्बारता

एक गधे के लिये
भी समझ लेने वाली
आसान सी एक
बात हो जाती है

बाकी दवाईयों को
समझने की जरूरत
ही कहाँ हो पाती है

दुकान से दवाईयों
के ऊपर भी गोले
बना के समझा 
ही दी जाती हैं

बहुत बार लगता है
समझ में कुछ
तो आना चाहिये

चिकित्सक महोदय
से पूछने पर बता
भी दी जाती हैं

क्यों होता होगा ऐसा

दिमाग में
जोर डालने की
बात हो जाती है

जब एक ही तरह
के शब्दों से बनी
माला दूसरे के
द्वारा उल्टा कर के
बना दी जाती है

किसने बनाई
किसके लिये बनाई
दोनो कैसे एक
जैसी हो जाती हैं

सही करता है
एक चिकित्सक
इस बात से
बात समझ
में आती है

एक के द्वारा
लिख दी गई दवाई
दूसरे को पता भी
नहीं चल पाती है

बहुत अच्छा
करते हैं
कुछ लोग
कुछ ऐसा
ही लिखकर

जिसे देख कर
उसे दुबारा
छाप लेने की सोच

कहींं और भी
पैदा नहीं
हो पाती है ।

रविवार, 3 नवंबर 2013

एक बच्चे ने कहा ताऊ मोबाइल पर नहीं कुछ लिखा



अपने पास
है
नहीं 

भाई

ऐसी चीज
पर 


लिखने
को 
कह जाता है 

अभी तक
पता नहीं 


हाथ 
ही में
क्यों है 

दिमाग
के
अंदर ही

क्यों
नहीं फिट
कर 
दिया जाता है 

मर जायेगा 
अगर
नहीं पायेगा 

हर कोई ऐसा जैसा 
ही
दिखाता है 

छात्र छात्राओं
की 
कापी पैन

और 
किताब
हो जाता है 

पंडित मंत्र 
पढ़ते पढ़ते 

स्वाहा करना
ही 
भूल जाता है 

पढ़ाना
शुरु बाद 
में
होता है

शिक्षक 
कक्षा के बाहर 
पहले 
चला जाता है 

लौट कर
आने 
तक 
समय ही
समाप्त हो जाता है 

मरीज की सांस 
गले में
अटकाता है 

चिकित्सक
आपरेशन
के 
बीच में

बोलना
जब 
शुरु हो जाता है 

बड़ी बड़ी
मीटिंग होती है 

कौन
कितना बड़ा
आदमी है 

घंटी की आवाज
से ही 
पता चल जाता है 

टैक्सी ड्राइवर
मोड़ों पर 
दिल जोर से
धड़काता है 

आफिस
के
मातहत को 

साहब का नंबर
साफ 
बिना चश्में के
दिख जाता है ‌‌

जवाब नहीं
देना चाहता है 

जेब में होता है
पर 

घर
छोड़ के आया है 
कह कर
चला जाता है 

कामवाली
बाई से 
बिना बात किये 
नहीं
रहा जाता है 

बर्तनो
में
बचा साबुन 
खाने को जैसे 
मुंह के अंदर ही 
धोना चाहता है 

सड़क पर चलता 
आदमी
एक सिनेमाघर 
अपना
खुद हो जाता है 

सब की
बन रही होती है 
अपनी ही
फिल्म 

दूसरे की
कोई नहीं
देखना चाहता है 

बहुत
काम की चीज है 

सब की एक 
राय बनाता है 

होना
अलग बात है 

नहीं होना 
ज्यादा फायदेमंद 

बस
एक गधे को 
ही
नजर आता है

धोबी
के पास होने 
पर भी
वो बहुत 
खिसियाता है 

गधा
खुश हो कर 
बहुत मुस्कुराता है 

धोबी
ढूँढ रहा था 
बहुत ही बेकरारी से 

जब कोई
आकर 
उसे बताता है 

इससे
भी लम्बी 
कहानी हो सकती है 

अगर कोई 
मोबाइल पर 
कुछ और भी 
लिखना
चाहता है ।

चित्र साभार:
https://www.gograph.com/

सोमवार, 5 अगस्त 2013

आज एक शख्सियत

डा0 पाँडे देवेन्द्र कुमार

पेशे से चिकित्सक कम 
एक समाज सेवक अधिक हो जाते है 

दवाई कम खरीदवाते हैं 
शुल्क महंगाई के हिसाब से 
बहुत कम बताते हैं 

लगता है अगर उनको गरीब है मरीज उनका
मुफ्त में ही ईलाज कर ले जाते हैं 

बहुत ही कम होती है दवाईयां 
और लोग ठीक भी हो जाते हैं 
पछत्तर की उम्र में 
खुश रहते हैंं और मुस्कुराते हैंं 

सोच को सकारात्मक रखने के 
कुछ उपाय भी जरूर बताते हैं 

इतना कुछ है बताने को 
पर पन्ने कम हो जाते हैं 

काम के घंटों में 
मरीजों में बस मशगूल हो जाते हैं 

बहुत से होते हैं प्रश्न उनके पास
जो मरीज से 
उसके रोग और उसके बारे में पूछे जाते हैंं

संतुष्ट होने के बाद ही 
पर्चे पर कलम अपनी चलाते हैं 

बस जरूरत भर की दवाई ही 
थोड़ी बहुत लिख ले जाते हैं 

कितने लोग होते हैं उनके जैसे
जो अपने पेशे से इतनी ईमानदारी के साथ पेश आते हैं 
“हिप्पौक्रेटिक ओथ” का जीता जागता उदाहरण हो जाते हैं 

काम के घंटो के बाद भी उर्जा से भरे पाये जाते हैं 

बहुत से विषय होते हैं उनके पास 
किसी एक को बहस में ले आते हैं 

आज कह बैठे 
"ब्रेन तैयार जरूर कर रहे हैं आप
क्योंकि आप लोग पढ़ाते हैं 
ब्रेन के साथ साथ क्या दिल की पढ़ाई भी कुछ करवाते हैं ?"

दिल की पढ़ाई क्या होती है?
पूछने पर समझाते हैं 

दिमाग सभी का एक सा हम पाते हैं 
उन्नति के पथ पर उससे हम चले जाते हैं 
समाज के बीच में देख कर व्यवहार 
दिल की पढ़ाई की है या नहीं का अंदाज हम लगाते हैं 

जवाब इस बात का पढ़ाने वाले लोग कहाँ दे पाते हैं 

शिक्षा व्यवस्था आज की दिमाग से नीचे कहाँ आ पाती है
दिल की पढ़ाई कहीं नहीं हो रही है
बच्चों के सामाजिक व्यवहार से ये कलई खुल जाती है 

यही बात तो डाक्टर साहब बातों बातों में 
हम पढ़ाने वालों को समझाना चाहते हैं।

सोमवार, 21 मई 2012

चोरवा विवाह और मास्टर

आमीरखान का
धारावाहिक
सत्यमेव जयते
हम नहीं भी देखते
दूर दर्शन का डब्बा
घर पर कपड़े से ढक
कर जरूर हैं रखते
साथियों के बीच हो
रही चर्चा से पर क्या
कह कर बचते
कल के साप्ताहिक
अंक का एक पहलू
रहा चोरवा विवाह
जिसको सुन सुन कर लोग
भर रहे थे आह पर आह
अजब गजब का किस्सा
बताया जा रहा था कि
देश के कुछ इलाकों में
होनहार बुद्धिमान वरों को
बंदूक की नोक पर उठवा
लिया जाता है
उसके बाद किसी एक कन्या
से उसका जबरदस्ती विवाह
भी करा दिया जाता है
प्रशाशक अभियंता चिकित्सक
प्राथमिकता से उठवाये जाते है
उसके बाद धमकी के देकर
वधू के साथ उसके घर
छोड़ दिये जाते हैं
वैसे तो होता क्या है
विवाह तो विवाह होता है
ऎसे होता है या वैसे होता है
किसी को भी इस किस्से में
मजा नहीं आ रहा था
तभी किसी ने एक नयी
बात वहां पर बताई
जिसको सुन कर सारे
चर्चाकारों के चेहरे पर
अच्छी सी मुस्कान आई
अब तो कभी कभी
मास्टरों को भी उठवा
लिया जाता है
उनका भी चोरवा विवाह
करवा दिया जाता है
इस बात से पता चला
मास्टर भी अब तरक्की
के रास्ते पर आ रहा है
कुछ लोकप्रियता इस तरह
से वो भी पा जा रहा है
सम्मानित लोगों के साथ
उसको भी कभी कभी
उठा लिया जा रहा है
चलो शादी के बाजार में
बड़े लोगों के बीच
कुछ कीमत कोई तो
उसकी भी लगा रहा है।