उलूक टाइम्स: बदल
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शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

मिर्च का धुआँ लगा जोर से छींक नाक कान आँख जरूरी है करना जमाने के हिसाब की अब ठीक

खीज मत
कुछ खींच
मुट्ठियाँ भींच

मूल्य पढ़ा
मौका पा
थोड़ा सा
बेच भी आ

ना कर
पाये व्यक्त
ना दे सके
अभिव्यक्ति

ऐसी निकाल
कुछ युक्ति

मूल्यों के
जाल बना

जालसाजी
मूल्यों का
मूल है पढ़ा
कर फंसा

झूठ पर
कपड़ा चढ़ा
चमकीला दिखा

गाँधी जैसों
की सोच पर
आग लगा

जमाने के
साथ चल
चाँद तारे
पा लेने
के लिये
मचल

औकात कुछ
नहीं होती

मिले तो
ताली पीट
ना मिले
बजा दे
ईंट से ईंट

आराम से
टेक लगा
चंदन टीका
लगा देख कर
नेक बता

आईने
घर के
सारे छिपा

ठेका ले
ईमानदारी की
प्रयोगशाला चला

प्रयोग मत कर
सीधे
परीक्षाफल बता

काला कौआ
देख कर आ

सफेद कबूतर
के आने की
खबर बना

शंका
करे कोई
नाम
बदल दिया
गया है का
सरकारी
आदेश दिखा

‘उलूक’
सब सीधा
चल रहे हैं
अपनी
आँखें
कर ही ले
अब ठीक

नहीं दिखे
अगर सीधे
सब कुछ

थोड़ी देर
उल्टा
लटक कर
कोशिश कर

सही
और सीधा
कभी तो
देख ढीट ।

चित्र साभार: http://shopforclipart.com

रविवार, 6 अक्तूबर 2013

मान लीजिये नया है दुबारा नहीं चिपकाया है

हर दिन का
लिखा हुआ
कुछ अलग
हो जाता है
दिन के ही
दूसरे पहर
में लिखे हुऐ
का तक मतलब
बदल जाता है
सुबह की कलम
जहां उठाती सी
लगती है सोच को
शाम होते होते
जैसे कलम के
साथ कागज
भी सो जाता है
लिखने पढ़ने और
बोलने चालने को
हर कोई एक सुंदर
चुनरी ओढ़ाता है
अंदर घुमड़
रहे होते हैं
घनघोर बादल
बाहर सूखा पड़ता
हुआ दिखाता है
झूठ के साथ
जीने की इतनी
आदत हो जाती है
सच की बात
करते ही खुद
सच ही
बिफर जाता है
कैसे कह देता है
कोई ऐसे में
बेबाक अपने आप
आज की लिखी
एक नई चिट्ठी
का मौजू उतारा
हुआ कहीं से
नजर आता है
जीवन के शीशे
में जब साफ
नजर आता है
एक पहर से
दूसरे पहर
तक पहुंचने
से पहले ही
आदमी का
आदमी ही
जब एक
आदमी तक
नहीं रह पाता है
हो सकता है
मान भी लिया
वही लिखा
गया हो दुबारा
लेकिन बदलते
मौसम के साथ
पढ़ने वाले के लिये
मतलब भी तो
बदल जाता है ।

रविवार, 18 अगस्त 2013

हर कोई जानता है वो क्यों जल रहा है

कहीं कुछ जल रहा है कहीं कुछ जल रहा है
कहीं लग चुकी है आग कहीं धुआँ निकल रहा है

तेरा दिल जल रहा है मेरा दिल जल रहा है
इसका दिल जल रहा है उसका दिल जल रहा है

कोई आग पी रहा है कोई धुआँ उगल रहा है
कहीं शहर जल रहा है कहीं गाँव जल रहा है

आग ही आग है सामने अपना घर जल रहा है
जैसा वहाँ जल रहा है वैसा यहाँ जल रहा है

हर कोई जानता है कितना क्या जल रहा है
क्यों जल रहा है और कहाँ जल रहा है

वो इससे जल रहा है ये उससे जल रहा है
उतनी आग दिख रही है जिसका जितना जल रहा है

अपनी आग लेकर आग से कोई कहाँ मिल रहा है
जिसको जहाँ मिल रहा है वो वहां जल रहा है

कितनी आग उसकी आग है पता कहाँ चल रहा है
हर कोई ले एक मशाल अपने साथ चल रहा है

इसके लिये जल रहा है उसके लिये जल रहा है
अपने भोजन के लिये बस उसका चूल्हा जल रहा है

कौन अपनी आग से कहीं कुछ बदल रहा है
किसको पड़ी है इस बात की कि देश जल रहा है

कहीं कुछ जल रहा है कहीं कुछ जल रहा है
कहीं लग चुकी है आग कहीं धुआँ निकल रहा है ।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

चेहरे पर भी लिखा होता है

चेहरे
पर भी तो
कुछ कुछ
लिखा होता है

ना कहे
कुछ भी
अगर कोई
तब भी
थोड़ा थोड़ा सा
तो पता होता है

अपना चेहरा
सुबह सुबह ही
धुला होता है

साफ होता है
कुछ भी कहीं
नहीं कहता है

चेहरा चेहरे
के लिये एक
आईना होता है

अपना चेहरा
देखकर कुछ
कहाँ होता है

बहुत कम
जगहों पर ही 
एक आईना
लगा होता है

अंदर बहुत
कुछ चल
रहा होता है

चेहरा कुछ
और ही तब
उगल रहा
होता है

दूसरे चेहरे
के आते ही
चेहरा रंग
अपना बदल
रहा होता है

चेहरे पर
कुछ लिखा
होता है
ऎसा बस
ऎसे समय
में ही तो
पता चल
रहा होता है ।

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

मत परेशां हुआ कर

मत परेशां हुआ कर
क्या कुछ हुआ है कहीं
कुछ भी तो नहीं
कहीं भी तो नहीं
देख क्या ये परेशां है
देख क्या वो परेशां है
जब नहीं कोई परेशां है
तो तू क्यों परेशां है
सबके चेहरे खिले जाते हैं
तेरे माथे पे क्यों
रेशे नजर आते हैं
तेरी इस आदत से
तो सब परेशां है
वाकई परेशां है
तुझे देख कर ही तो
सबके चेहरे इसी
लिये उतर जाते हैं
कुछ कहीं कहाँ होता है
जो होता है सब की
सहमति से होता है
सही होता होगा
इसी लिये होता है
एक तू परेशां है
क्यों परेशां है
अपनी आदत को बदल
जैसे सब चलते हैं
तू भी कभी तो चल
कविता देखना तेरी
तब जायेगी कुछ बदल
सब फूल देखते हैं
सुंदरता के गीत
गाते हैं सुनाते हैं
तेरी तरह हर बात पर
रोते हैं ना रुलाते हैं
उम्रदराज भी हों अगर
लड़कियों की
तरफ देख कर
कुछ तो मुस्कुराते हैं
मत परेशां हुआ कर
परेशां होने वाले
कभी भी लोगों
में नहीं गिने जाते हैं
जो परेशांनियों
को अन्देखा कर
काम कर ले जाते हैं
कामयाब कहलाते हैं
परेशानी को अन्देखा कर
जो हो रहा है
होने दिया कर
देख कर आता है
कविता मत लिखा कर
ना तू परेशां होगा
ना वो परेशां होगा
होने दिया कर
जो कर रहे हैं कुछ
करने दिया कर
मत परेशां हुआ कर ।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बदल जमाने के साथ चल

जमाने के 
साथ आ
जमाना अपना मत बना
ईमानदारी कर मत बस खाली दिखा

अन्ना की तरफदारी भी कर ले
कोई तेरे को कहीं भी नहीं रोक रहा
सफेद टोपी भी लगा 

शाम को मशाल जलूस अगर कोई निकाले
अपने सारे गिरोह कोउसमें शामिल करा लेजा

"सत्य अहिंसा भाईचारा कुछ नये प्रयोग" पर
सेमिनार करा 
संगोष्ठी करा वर्कशोप करा

इन सब कामों में हम से कुछ भी काम तू करवा

हमें चाहे एक धेला भी ना दे जा
पर हमारे लिये परेशानी मत बनजा 

कल उसने कुत्ते को देख कर बकरी कहा
कोई कुछ कर पाया
हमने कुत्ते को कागज पर 
"एक बकरी दिखी थी"
का स्टेटमेंट जब लिखवाया 

अब भी संभल जा उन नब्बे लोगों में आ
जिन्होने कुत्ते को बकरी कहने पर 
कुछ भी नहीं कहा
बस आसमान की तरफ देख कर 
बारिश हो सकती है कहा
बचे दस पागलों का गिरोह मत बना 
जिनको कुत्ता कुत्ता ही दिखा

गाड़ी मिट्टी के तेल से घिसट ही रही हो
पहुंच तो रही है कहीं
पैट्रोल से चलाने का सुझाव मत दे जा

'उलूक' जाके कहीं भी आग लगा
और हमारी तरह 
सुबह के अखबार मे अपनी फोटो पा
बधाई ले लडडू बंटवा। 

चित्र सभार: https://www.deviantart.com/kimjam/art/you-look-like-a-dog-798957425