उलूक टाइम्स: पौंधे
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बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

आदमी सोचते रहने से आदमी नहीं हुआ जाता है ‘उलूक’

एकदम
अचानक
अनायास
परिपक्व
हो जाते हैं
कुछ मासूम
चेहरे अपने
आस पास के

फूलों के
पौंधों को
गुलाब के
पेड़ में
बदलता
देखना

कुछ देर
के लिये
अचम्भित
जरूर
करता है

जिंदगी
रोज ही
सिखाती
है कुछ
ना कुछ

इतना कुछ
जितना याद
रह ही नहीं
सकता है

फिर कहीं
किसी एक
मोड़ पर
चुभता है
एक और
काँटा

निकाल कर
दूर करना
ही पड़ता है

खून की
एक लाल
बून्द डराती
नहीं है

पीड़ा काँटा
चुभने की
नहीं होती है

आभास
होता है
लगातार
सीखना
जरूरी
होता है

भेदना
शरीर को
हौले हौले
आदत डाल
लेने के लिये

रूह में
कभी करे
कोई घाव
भीतर से
पता चले
कोई रूह
बन कर
बैठ जाये
अन्दर
दीमक
हो जाये

उथले पानी
के शीशों
की
मरीचिकायें
धोखा देती 

ही हैं

आदमी
आदमी
ही है
अपनी
औकात
समझना
जरूरी है
'उलूक'

कल फिर
ठहरेगा
कुछ देर
के लिये
पानी

तालाब में
मिट्टी
बैठ लेगी
दिखने
लगेगें
चाँद तारे
सूरज
सभी
बारिश
होने तक ।

चित्र साभार: Free Clip art

शनिवार, 18 जुलाई 2015

खिंचते नहीं भी हों इशारे खींचने के लिये खींचने जरूरी होते हैं

थोड़े कुछ
गिने चुने
रोज के वही
उसी तरह के
जैसे होते हैं
खाने पीने
के शौकीन
जैसे कहीं किसी
खाने पीने की
जगह ही होते हैं
यहाँ ना ढाबा
ना रोटियों पराठों
का ना दाल मखानी
ना मिली जुली सब्जी
कुछ कच्ची कुछ
पकी पकाई बातें
सोच की अपनी
अपनी किसी की
किताबें कापियाँ
कलम पेंसिल
दवात स्याही
काली हरी लाल
में से कुछ कुछ
थोड़े बहुत
मिलते जुलते
जरूर होते हैं
उम्र के हर पड़ाव
के रंग उनके
इंद्रधनुष में
सात ही नहीं
हमेशा किसी के
कम किसी के
ज्यादा भी होते हैं
दर्द सहते भी हैं
मीठे कभी कभी
नमकीन कभी तीखे
दवा लिखने वाले
सभी तो नहीं होते हैं
बहुत कुछ टपकता है
दिमाग से दिल से
छलकते भी हैं
सबके हिसाब से
सभी के शराब के
जाम हों जरूरी
नहीं होते हैं
कहना अलग
लिखना अलग
पढ़ना अलग
सब कुछ छोड़ कर
कुछ के लिये
किसी के कुछ
इशारे बहुत होते हैं
कुछ आदतन
खींचते हैं फिर
सींचते हैं बातों को
‘उलूक’ की तरह
बेबात के पता
होते हुऐ भी
बातों के पेड़ और
पौंधे नहीं होत हैं ।

चित्र साभार: all-free-download.com

मंगलवार, 24 जून 2014

रोज एक नई बात दिखती है पुराने रोज हो रहे कुछ कुछ में

ये पता होते
हुऐ भी कि
बीज हरे भरे
पेड़ पौँधे के
नहीं है जो
बो रहे हैं
उनसे बस
उगनी हैं
मिट्टी से
रेत हो चुकी
सोच में कुछ
कंटीली झाड़ियाँ
जिनको काटने
के लिये कभी
पीछे मुड़ के
भी किसी ने
नहीं देखना है
उलझते रहे
पीछे से आ रही
भीड़ की सोच
के झीने दुपट्टे
और होते रहे
बहुत कुछ
तार तार
समय के
आर पार
देखना शुरु
कर लेना
सीख लेने
से भी कुछ
नहीं होता
अपने से शुरु
कर अपने में
ही समाहित
कर लेने में
माहिर हो कर
कृष्ण हो चुके
लोगों को अब
द्रोपदी के चीर
के इन्ही सोच
की झड़ियों में
फंस कर उधड़ना
देख कर शंखनाद
करना कोई नई
बात नहीं है
तुझी को आदत
डालनी पड़ेगी
बहरे होने की
नहीं हो सकता
तो चीखना सीख
एक तेज आवाज
के साथ जो
आज के कृष्ण
के शंख का
मुकाबला कर सके
तू नहीं तो
कृष्ण ही सही
थोड़ा सा
खुश रह सके ।

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

पानी से अच्छा होता अगर दारू पर कुछ लिखवाता


हर कोई तो पानी 
पर लिख रहा है

अभी अभी का 
लिखा हुआ पानी पर
अभी का अभी
उसी 
समय जब मिट रहा है

तुझे ही पड़ी है 
ना जाने क्यों
कहता जा रहा है पानी सिमट रहा है

जमीन के नीचे 
बहुत नीचे को चला जा रहा है

पानी की बूंदे 
तक शरमा रही हैं
अभी दिख रही हैं अभी विलुप्त हो जा रही हैं
उनको पता है 
किसी को ना मतलब है ना ही शरम आनी है

सुबह सुबह की 
ओस की फोटो
तू भी कहीं लगा होगा खींचने में
मुझे नहीं लगता है 
किसी और को पानी की कहीं भी याद कोई आनी है

इधर आदमी लगा है 
ईजाद करने में
कुछ ऐसी पाईप लाइने
जो घर घर में जा कर
पैसा ही पैसा बहाने को बस रह जानी हैं

तू भी देख ना कहीं 
पैसे की ही धार को
हर जगह आजकल 
वही बात काम में बस किसी के आनी है

पानी को भी कहाँ 
पड़ी है
पानी की 
अब कोई जरूरत
आँखे भी आँखो में पानी लाने से
आँखो को ही परहेज करने को
जब कहके 
यहाँ अब जानी हैं

नल में आता तो है 
कभी कभी पानी
घर पर नहीं आता है तो कौन सा गजब ही हो जाना है
बस लाईनमैन की जेब को गरम ही तो करवाना है
तुरंत पानी ने दौड़ कर आ जाना है

मत लिया कर इतनी 
गम्भीरता से किसी भी चीज को
आज की दुनियाँ में 
हर बात नई सी जब हो जा रही है

हवा पानी आग 
जमीन पेड़ पौंधे
जैसी बातें सोचने वाले लोगों के कारण ही
आज की पीढ़ी
अपनी अलग पहचान नहीं बना पा रही है

पानी मिल रहा है पी 
कुछ मिलाना है मिला
खुश रह
बेकार की बातें मत सोच कुछ कमा धमा

होगा कभी 
युद्ध भी अगर
पानी को 
लेकर कहीं
वही मरेगा सबसे पहले
जो पैसे का नल नहीं लगा पायेगा
पैसा होगा तो वैसे भी प्यास नहीं लगेगी

पानी नहीं भी 
होगा कहीं तब भी
कुछ अजब 
गजब नहीं हो जायेगा
ज्यादा से ज्यादा 
शरम से जमीन के थोड़ा और नीचे की ओर चला जायेगा

और फिर
एक बेशरम 
चीर हरण करेगा
किसी को भी कुछ नहीं होगा
बस
पानी ही खुद में पानी पानी हो जायेगा ।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

बुजुर्गों के लिये दिन चलो एक दिन ही सही !

फिर याद आया
बनाया हुआ
आदमी के खुद
का एक दिन
खुद के लिये ही
जब शुरु होता है
उसका भूलना
सब कुछ
यहाँ तक
खुद को भी
उम्र का
चौथा पड़ाव
और उसके
अनुभव
कुछ के
लिये कड़वे
कुछ के लिये
खट्टे और मीठे
बचपन से ही
शुरु हो जाती है
एक पाठशाला
घर के अंदर ही
तैयार करते हुऐ
दिखाई दे जाते हैं
कई किसान
कई तरह के
खेतों को
बोते हुऐ
किस्म किस्म
के पौंधे
पता नहीं
चल पाता है
कौन आम का है
कौन बबूल का
और जब तक
इस सब को
समझने लायक
होने लगता है
एक आदमी
उसके सामने
भी होते हैं
कई तरह खेत
बुवाई के
लिये तैयार
उसकी खुद की
अगली पीढ़ी के
उसको दिये
अनुभव यहीं
पर काम आना
शुरु हो जाते हैं
किसी को फल वाले
पेड़ पसंद आते हैं
किसी की सोच में
कांटे उलझना
शुरु हो जाते हैं
घर से लेकर
ओल्ड ऐज होम्स
तक एक मोमबत्ती
दिखाने को ही सही
प्यार से फिर भी
आज के दिन अब
सब जलाना चाहते हैं
खुशकिस्मत होते हैं
कुछ लोग जो
चौथी पीड़ी के साथ
एक लम्बे समय
तक रह पाते हैं
भाग्यहीन लोग
खुद ही अपने लिये
एक ऐसे रास्ते
को बनाते हैं
जिस रास्ते
चौथी पीढ़ी को
छोड़ कर आते हैं
उसी रास्ते से
जाने को मजबूर
किये जाते हैं
एक परंपरा को
भूल कर हमेशा
हम क्यों साल
का एक दिन
उसके लिये
निर्धारित
करना
चाहते हैं
अंतर्राष्ट्रीय
बुजुर्ग दिवस
पर आज बस
इतना ही तो
समझना
चाहते हैं ।

सोमवार, 9 जुलाई 2012

सुझाव

पहले खुद ही
पेड़ और पौंधे
घर के आसपास
अपने लगाता है
फिर बंदर आ गये
बंदर आ गये
भी चिल्लाता है
किसने कहा था
इतनी मेहनत कर
अपने लिये खुद
एक गड्ढा तैयार कर
कटवा क्यों नहीं देता
सब को एक साथ
पैसा आ जायेगा बहुत
तेरे दोनो हाथ
जमीन भी खाली
सब हो जायेगी
ये अलग बात
वो अलग से तुझको
नामा दिलवायेगी
फिर सुबह पीना
शाम को पीना
मौज में सारी
जिंदगी तू जीना
पढ़ा लिखा है बहुत
सुना है ऎसा
बताया भी जाता है
फिर क्यों पर्यावरण
वालों के सिखाये
में तू आता है
थोड़ा सा अपनी
बुद्धी क्यों नहीं
कभी लगाता है
बंदर भी औकात में
अपनी आ जायेंगे
जब पेड़ ही
नहीं रहेंगे कहीं
तो क्या खाक
हवा में उड़कर
इधर उधर जायेंगे
कुछ समझा कर
बेवकूफी इतनी
तो ना कर
अभी भी सुधर जा
हमारी जैसी सोच
अपनी भी बना
बहुमत के साथ
अगर आयेगा
तो जीना भी
सीख जायेगा
कम से कम
बंदरों का
मुकाबला कर
ले जायेगा
मौका मिल
गया कभी तो
देश चलाने
वालों में शायद
कहीं से
घुस जायेगा
किस्मत फूट
गयी खुदा
ना खास्ता
कभी तेरी
तो क्या पता
भारत रत्न
ही तू कहीं से
झपट लायेगा।