उलूक टाइम्स: भौंकना
भौंकना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
भौंकना लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

खा गालियाँ गिन नाले बनते बड़े छोटी होती नालियों से क्या उलझना

 

१९४७ और उससे पहले का देखा नहीं कुछ भी कही
बस कुछ पढ़ा कुछ सुना
किससे सुना ये ही मत पूछ बैठना
दिखा बना बैठा कुछ तुनतुना कुछ भुनभुना

नहीं देखा ना सुना जैसा है आसपास अभी अपने
तू गीत तरन्नुम में गा गुनगुना
लिखे में तेरे दिख रहा है साफ़ साफ़
कहीं तो बटा है और इफरात में झुनझुना

शब्द आते हैं जुबां तक बहुत ही सड़े गले
सारे रोक ले कुछ भी मत सुना
निगल ले गरल बन शिव कर तांडव घर के अन्दर
बस बाहर ना निकलना

कुत्ते को सिखा योग और आसन
खुद सीख ले कुछ काटना कुछ भौंकना
भगवान में ढूंढ थोड़ा सा आदमी और सीख ले
आदमी में भगवान को चेपना

‘उलूक’ हो जो भी दिखा कुछ और ही
सबसे बड़ा है आज का लपेटना
खा गालियाँ गिन नाले बनते बड़े
छोटी होती नालियों से क्या उलझना

चित्र साभार: https://www.alamy.com/

शुक्रवार, 4 जून 2021

कुछ अहसास होना मजबूरी है कविता खूबसूरत शब्द है बकवास जरूरी है जी भर कर भौंकना चाहता हूँ

 


लिख लिया जाये कहीं किसी कागज में
एक खयाल
बस थोड़ी देर के लिये उसे रोकना चाहता हूँ

ना कागज होता है कहीं
ना कलम होती है हाथ में
यूँ ही सब भूल जाने के लिये
भूलना चाहता हूँ

ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ

तरतीब से लगाने में ख्वाहिशों को
पूरी हो गयी जिंदगी
उधड़े हुऐ में से
गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ

सच और सच्चाई
बहुत पढ़ लिया छपा छपाया
कुछ अधलिखी किताबों को अब ढूँढना चाहता हूँ

झूठ के पैर ही पैर देखे हैं
एक नहीं हैं कई हैं इफरात से हैं
अब बस उन्हीं में लोटना चाहता हूँ

उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में
जी भर कर भीगना चाहता हूँ

खोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
मतलब मरा मिलता है जिनका
शब्दकोश में देखना चाहता हूँ
लगे हैं कत्ल करने में
शब्द दर शब्द हर तरफ शब्दों का बेरहमी से
रुक भी लें 
मैं घुटने टेकना चाहता हूँ

लिखने वाले कुछ अलग पढ़ने वाले कुछ अलग
लिखने पढ‌ने वाले कुछ अलग से लगें
किताबें बेचना चाहता हूँ
कुछ तो लगाम लगा
अपनी चाहतों पर ‘उलूक’
सम्भव नहीं है सोच लेना
सब तो हो लिया
अब खुदा हो लेना चाहता हूँ

चित्र साभार: https://friendlystock.com/product/german-shepherd-dog-barking/

मंगलवार, 19 मार्च 2019

इस होली पर दिखा देता हजार रंग गिरगिट क्या करे मगर चुनाव उसके सामने से आ जाता है

होली

खेल
तो सही

थोड़ी सी

हिम्मत की
जरूरत है

सात रंग
तेरे
बस में नहीं

तेरी
सबसे बड़ी
मजबूरी है

बातों
में तेरे
इंद्र भी
दिखता है

धनुष भी

तू
किसी तरह
भाषण में
ले आता है

इन्द्र धनुष
लेकिन
कहीं भी

तेरे
आस पास
दूर दूर तक
नजर
नहीं आता है

रंग ओढ़ना

कोई
तुझसे सीखे

इसमें कोई
शक नहीं है

होने भी
नहीं देगा
तू

तेरे
शातिर
होने का

असर
और पता

मेरे
घर में

मेरे
अपनों की

हरकत से
चल जाता है

कुत्तों
की बात

इन्सानों
के बीच में

कहीं पर
होने लगे

अजीब
सी बात
हो जाती है

आठवाँ
आश्चर्य
होता है

जब
आदमी भी

किसी
के लिये

कुत्ते
की तरह
भौंकना

शुरु
हो जाता है

सारे रंग
लेकर
चले कोई
उड़ाने
भी लगे

किसे
परेशानी है

घर का
मुखिया
ही बस

एक लाल
रंग के लिये

वो भी
पर्दा
डाल कर

पीछे
पड़ जाता है

तो
रोना आता है

मुबारक
हो होली

सभी
चिट्ठाकारों को

टिप्पणी
करने
वालों

और
नहीं करने
वालों को भी

टिप्पणी
के साथ
मुफ्त
टिप्पणी
के ऑफर
के साथ

इन्सान
ही होता है

गलती
से चिट्ठा भी
लिखने लगता है

चिट्ठाकारों
में शामिल
भी हो जाता है

‘उलूक’
को तो
वैसे भी

नहीं
खेलनी है
होली

इस होली में

बिरादरी में
किसी का
मर जाना

त्यौहार ही
उठा
ले जाता है ।

चित्र साभार:
https://www.theatlantic.com/

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

क से कुत्ता डी से डोग भौँकना दोनों का एक सा ‘उलूक’ रात की नींद में सुबह का अन्दाज लगाये कैसे

भौंकने
की
आवाजें

कुछ
एक तरह की

कुछ
अलग तरह की

अलग अलग
तरह की पूँछें

अलग अलग
तरह का
उनका
लहराना

कुछ पूँछे
झबरीली

कुछ
पतली पलती

कुछ
काट दी
गयी पूँछे

कुछ
कुत्तों का

कुछ
जानी पहचानी
गलियों में
नजर आना

कुत्ते
काटने वाले

कुत्ते
खाली
भौंकने वाले

कुत्ते
खाली कुत्ते

कुत्ते 

बेकार के कुत्ते

कुत्ते
के लिये
जान दे
देने वाले

कुछ 

निर्भीक कुत्ते

 कुत्ते
की खाली

कुछ 

बात करने
वाले कुत्ते

 कुछ
अजीब से कुत्ते

कुछ
सजीव से कुत्ते

कुछ
नींद में कुत्ते

कुछ
उनीँदे से कुत्ते

सारे
के सारे
बहुत सारे
एक साथ
एक भीड़
वफादार
से कुत्ते

कुछ
सड़क छाप से

कुछ
सरकार के कुत्ते 

कुछ 

दूध पीते
शरमसार से 
कुत्ते
कुछ कुत्ते
खून पीते

कुछ कुत्ते
कुछ
मूँछ चाटते

कुछ
असरदार कुत्ते

कुछ
शराब पीते
शराबियों के
एक प्रकार के कुत्ते

कुछ
नहीं खाते
कुछ भी

कुछ 

बाबाओं के लिये
जाँनिसार कुछ कुत्ते

पढ़े लिखे
के घर के
पढ़े पढ़ाये
उमरदराज
कुछ कुत्ते

अनपढ़ के
घर के
आसपास के
अनपढ़
सूखे सुखाये
गली के
कुछ कुत्ते

किसलिये
तुझे
और क्यों
याद आये
कुछ कुत्ते
आज और
 बस
आज ही
‘उलूक’

जब
कुत्तों के चिट्ठे
कुत्तों की
अभिव्यक्ति के

कुत्तों ने
एक भी
अभी
तक भी

कहीं भी
बनाये
ही नहीं
‘उलूक’

चित्र साभार: https://friendlystock.com

शनिवार, 21 नवंबर 2015

कौन कहता है कुत्ता सोचना और कुत्ता हो जाने में कुछ अजीब होता है हर कुत्ते का अपना नसीब होता है


भौंकना सीखना चाहता हूँ
इसलिये कुत्तों के बीच रहता हूँ
कुत्ता नहीं हूँ कुत्तों से कभी नहीं कहता हूँ

कुत्ते भी कहाँ मुझे एक कुत्ता मानते हैं
भौंकता हूँ तो भी आदमी की तरह बस आँखें तानते हैं

कुत्ता कुत्ते पर कभी भी नहीं भौंकना चाहता है
कुत्तों को पता होता है कुत्ता कौन कौन है हर कुत्ता जानता है

अब इतना कुत्ता हो जाना भी अच्छा कहाँ होता है
कुत्तों के नियम कानून हर कुत्ता अच्छी तरह जानता है

कुत्तों में से कुछ कुत्ते कुत्तेपने के लिये ही जाने जाते हैं
हर गली कूँचे के कुत्तों में पहचाने जाते हैं

कुत्ता हो जाना इतना बुरा भी नहीं होता है
कुत्तों के लिये कुत्ता तो एक कुत्ता ही होता है

‘उलूक’ कुत्ता होने और दिखाने में बहुत बड़ा फर्क होता है
किसलिये करते हो कलाबाजी कुत्तों के बीच में रहकर
कुत्तों के लिये भौंकना कुत्तों का एक जरायम पेशा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

रविवार, 23 नवंबर 2014

कुछ नहीं किया जा सकता है उस बेवकूफ के लिये जो आधी सदी गुजार कर भी कुछ नहीं सीख पाता है

रोज की बात है
रोज चौंकता है
अखबार पर
छपी खबर
पढ़ कर के
फिर यहाँ आ आ
कर भौंकता है
बिना आवाज के
कुत्ते की तरह
ऐसा चौंकना
भी क्या और
ऐसा भौंकना
भी क्या
अरे क्या हुआ
अगर एक चोर
कहीं सम्मानित
किया जाता है
ये भी तो देखा कर
एक चोर ही
उसके गले में
माला पहनाता है
अब चोर चोर के
बीच की बात में
तू काहे अपनी
गोबर भरे
दिमाग की
बुद्धी लगाता है
क्या होता है
अगर किसी
बंदरिया को
अदरख़ बेचने
खरीदने का
ठेका दे भी
दिया जाता है
और क्या होता है
अगर किसी
जुगाड़ी का जुगाड़
किसी की भी
हो सरकार
सबसे बड़ा जुगाड़
माना जाता है
बहुत हो चुका
तेरा भौंकना
तेरा गला भी
लगता है
कुछ विशेष है
खराब भी
नहीं होता है
थोड़ा बहुत
कुछ भी
कहीं भी
होता है
खरखराना
शुरु हो
जाता है
समय के
साथ साथ
बदलना
क्यों नहीं
सीखना
चाहता है
खुद का समय
तो निकल गया
के भ्रम से भ्रमित
हो भी चुका है
तो भी अपनी
अगली पीढ़ी को
ये कलाबाजियाँ
क्यों नहीं
सिखाता है
जी नहीं पायेगी
मर जायेगी
तेरी ही आत्मा
गालियाँ खायेगी
तेरी समझ में
इतना भी
नहीं आता है
कौन कह रहा है
करने के लिये
सिखाना है
समझा कर
समझने के लिये
ही उकसाना है
समझने के लिये
ही बताना है
चोरी चकारी
बे‌ईमानी भ्रष्टाचारी
किसी जमाने में
गलत मानी
जाती होंगी
अब तो बस
ये सब नहीं
सीख पाया तो
गंवारों में
गिना जाता है
वैसे सच तो ये है
कि करने वालों
का ही कुछ
नहीं जाता है
नहीं करने वाला
कहीं ना कहीं
कभी ना कभी
स्टिंग आपरेशन
के कैमरे में
फंसा दिया जाता है
इसी लिये ही तो
कह रहा है ‘उलूक’
गाँठ बाँध ले
बच्चों को अपने ही
मूल्यों में ये सब
बताना जरूरी
हो जाता है
करना सीख
लेता है जो
वो तो वैसे भी
बच जाता है
नहीं सीख पाता है
लेकिन जानता है
कम से कम
अपने आप को
बचाने का रास्ता तो
खोज ही ले जाता है ।

चित्र साभार: poetsareangels.com

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र


कल
दूरभाष
पर 

हो रही
बात पर 
पुत्र
पूछ बैठा 

पिताजी
आपकी 
लम्बी लम्बी
बातें तो 
बहुत हो जा रही हैं 

मुझे
समझ में ही 
नहीं आ रहा है 
ये क्या सोच कर 
लिखी जा रही हैं 

मैं
हिसाब 
लगा रहा हूँ 
ऐसा ही अगर 
चलता चला जायेगा 

तो
किसी दिन 
कुछ साल के बाद 

ये
इतना हो जायेगा 
ना
आगे का दिखेगा 
ना
पीछे का छोर
ही 
कहीं नजर आयेगा 

इतना
सब लिखकर 
वैसे भी
आपका 
क्या
कर ले जाने 
का इरादा है

या 
ऐसा ही
लिखते रहने 
का
आप किसी
से 
कर चुके
कोई वादा हैंं 

सच पूछिये

तो 
मेरी समझ में 

आपकी लिखी 
कोई बात 
कभी भी 
नहीं आती है 

उस
समय 
जो लोग 
आपके लिखे 
की
तारीफ
कर रहे होते हैं 

उनकी
 पढ़ाई लिखाई 
मेरी
पढ़ाई लिखाई
से 
बहुत ही ज्यादा 
आगे
नजर आती है 

ये सब
को
सुन कर 

पुत्र को
बताना 
जरूरी हो गया 

लिखने विखने
का 
मतलब समझाना 
मजबूरी
हो गया 

मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 

फिर भी
चौकन्ना 
करने की कोशिश 
उसकी
अभी भी जारी है 

रात रात
जाग जाग
कर 
भौंकना नहीं लगता 
उसे
कभी भी भारी है 

मै

और
मेरे जैसे
दो चार 
कुछ
और

इसी तरह 
भौंकते
जा रहे हैं 

कोई
सुने ना सुने 
इस बात
को

हम भी 
कहाँ
सोच पा रहे हैं 

क्या पता
किसी दिन 
सियारों
की 
टोली की तरह 

हमारी
संख्या 
भी
बढ़ जायेगी 

फिर
सारी टोली 
एक साथ
मिलकर 
हुआ हुआ
की 
आवाज लगायेगी 

बदलेगा
कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं
कभी तो 

और
यही आशा 
बहुत कुछ 
बहुत दिनों
तक 
लिखवाती
ही 
चली जायेगी 

शायद
अब मेरी बात 
कुछ कुछ
तेरी भी 
समझ में
आ जायेगी ।
चित्र साभार: 
https://www.fotosearch.com/