उलूक टाइम्स

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

दंगे

नटखट
चूहे की
खटखट से
चौंक कर

लटपट
करते उठी

तुरंत फेंक
रजाई

चटपट गिरा
जमीन पर
दौड़ पड़ी
रसोई
की ओर

हुवी भी
नहीं थी भोर

अल्साये
अंधेरे में
मलते
हुवे आंख

भूल गयी
समय
की ओर
देखना भी

रोज
की तरह
चूल्हे पर
चाय की
केतली चढ़ा

जोर से
बड़बड़ाई

माचिस
की डिब्बी
को ढूंढते
खिड़की के
दरवाजे से
टकराई

हमेशा
की तरह
बाहर आयी

फिर
अचानक
बैठ गयी
दरवाजे पर

याद
आ गया
उसे फिर

कि

बेटा तो
दंगे की भेंट
चढ़ गया

किसी
और के
बेटे को
बचाते बचाते

और
सुबह की
चाय का पानी

खौलता रहा
केतली में ।