उलूक टाइम्स: जून 2021

बुधवार, 30 जून 2021

लिख ‘उलूक’ गंदगी किसे सूँघनी है किसे समझनी या देखनी है सबके जूतों को साफ रहना होता है

 



फर्जी कमाई बंद हो जाने का
खराब दिमाग पर भी बहुत बड़ा असर होता है
पुराने दुश्मन से गला मिलन कर बाप बना लेने का
यही सुनहरा अवसर होता है

शिकारी दिखा खुद को
बन्दूक ताना हुआ हमेशा किसी पर भी
एक शिकार होता है
जिस पर तानता रहा हो बन्दूक ताजिंदगी
उसकी बन्दूक खुद एक बना खड़ा होता है

कुछ होती हैं फर्जी तितलियाँ
बर्रोँ के चँगुल में फँसी
उन्हें कुछ हो लेने का शौक होता है
बन्दूकची साथ में रख लेता है अपने
गोलियाँ बन चुकी हैं बन्दूक की उन्हें भी पता होता है

ऊपर से कमायी जाने वाली रकम
हाथ से निकल जाने का सदमा बहुत गहरा होता है
एक चलाने वाला बनता है
एक बन्दूक हो जाता है साथ की
दो तितलियोँ को गोलियाँ हो लेने का आदेश देता है

किसी की समझ में नहीं आती हैं समाज के सफेदपोशों की हरकतें
अफसोस होता है
कंधे ढूँढ कर कुछ बन्दूक चलाने वाले ऐसे
और उनके लिये बन्दूक और गोलियों हो लेने वालों के लिये
अखबार मेँ एक पन्ना होता है

‘उलूक’ तुझे नोचनी है
अपनी गंजी खोपड़ी हमेशा की तरह
जैसा तू है और तेरे साथ होता है
कोई समझता है या नहीं समझता है
कोई लेता है संज्ञान नहीं लेता है से क्या होता है
लिखना जरूरी है
हो रहे अपने आस पास का कूड़ा हमेशा
वही कूड़ा
जो अपनी खबर छपवाने के लिये
किसी अखबार के दरवाजे पर खड़ा होता है ।


रविवार, 27 जून 2021

बकवास-ए-उलूक एक और मील के पत्थर के पार पचास लाख से ऊपर आकर देख गये पन्ना चिट्ठा-ए-उलूक सबका दिल से आभार

 


27 जून 2021 , पृष्ठ दृष्य:
=====================
 All Time= 5000020,
=====================
Today=1850,
 Yesterday=2543,
This Month=76339,
 Last Month=71214,
Alexa Rank =170,561,
🇮🇳 India Rank =17,090
=====================

लिखते लिखते
कहाँ से कहाँ पहुँचा गया
 बकवास-ए-उलूक

पढ़ने
कौन आया कौन नहीं
पता नहीं चला
देखने वाला
आ कर देख गया
घड़ी की सूईं
कुछ आगे को जरा सा खिसका गया

एक दो तीन से होते होते
पचास लाख के पार करा गया
पढ़ने लिखने की बात
कहीं है नहीं
इतना जरूर समझा गया

कुछ तो है
देखने के लायक
पर्दा उठा कर कई बार
उठे पर्दे को गिरा गया
किसी को अंधा सूर याद आया
कोई कबीर कबीर चिल्ला गया

उलट बाँसी की बात कर के कोई
बात अपनी उल्टी सीधी करवा गया
आते रहें जाते रहें बताते रहें समझाते रहें
लिखते लिखाते बकवास ही सही
‘उलूक’ थोड़ा बहुत पढ़ लिखा गया

आभार देखने वालो आपका दिल से
पन्ना चिट्ठा-ए-उलूक
एक और मील के पत्थर से
कुछ आगे
आज आपने जो पहुँचा दिया।
---
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

सोमवार, 21 जून 2021

माफ कर देना लिख दिया इतना बहुत खेद है

 


इसका लिखना
उसके लिखने से कुछ ज्यादा सफेद है
काला कौआ लिखता है
कबूतर लिखे
कह दे गलत लिख दिया खेद है

जो उतरता है आसमान से
उसे लिखने की हिम्मत करें
किसी की जमीन खोद कर
निकले हुऐ कुछ पत्थर लिखना फरेब है

वो बहुत खूबसूरत है सबको पता है
सब लगे हैं देखने में उसे लेकर चिराग हाथ में
भूल कर वो चाँद है पागल हुआ हर एक है

हर किसी के आस पास है चाँद ही है
नजर नजदीक की बहुत ही खराब है
सबको बता रहा है फर्जी समझाता हुआ नेक है

सीधी लकीर
किस लिये लिखनी किसके लिये लिखनी
कुछ टेढ़ा सा लिखना बहुत जरूरी है
उसका दिमाग है बहुत ही तेज है

कुत्ते गिन रहा है शहर के सारे
किस की हिम्मत है पूछ ले
गधे भी है घूमते हैं गली में बड़े बड़े हैँ
शोर जिनका देश है विदेश है

कुछ भी लिख देने का फैशन है
लिख रहे हैं कुछ गधे
कुछ शेर कुछ बकरियाँ
मगर खबर मेंं कुत्तों पर आजकल
नजर विशेष है

उलूक कुछ तो किया कर शरम
कुछ लिहाज 
लिखते समय लिखने लिखाने वालों का

ये क्या हुआ
कुछ ऐसा लिख दिया कुछ ना निकले मतलब
एक लम्बे लिखे वाक्य का

अंत में कह दिया हो जिसमें
माफ कर देना लिख दिया इतना बहुत खेद है

चित्र साभार:
https://myinnerowl.com/

सोमवार, 7 जून 2021

किसी को कुछ पता ना चले और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले उसकी मौत हो जाये

 

लिखने की इच्छा है लिखो किसने रोका है 

थोड़ा सा लिखो कुछ छोटा सा लिखो
समझ ले कोई भी कुछ ऐसा लिखो

उस लिखे पर कोई भी कुछ भी लिख ले जाये
भटक ना जाये बहक ना जाये
फिर से दुबारा ढूँढता हुआ आये कुछ ऐसा लिखो

पर कैसे लिखो बिना सोचे समझे

कुछ लिखो या कुछ समझे हुऐ पर कुछ समझाकर लिखो
मुद्दे पर लिखो या कुछ तकिये रजाई और गद्दे पर लिखो

अपने अन्दर के जमा किये हुऐ कूढ़े को थोड़ा सा सरका कर
दिमाग के किसी कोने पर
पड़ोसन के नये खरीदे हुऐ नये ब्राँडेड पर्दे पर लिखो

लेकिन कुछ तो लिखो

क्या पता लिखते लिखते लिखने को समझ आ जाये
खुद ही अपने आप सही सपाट और सीधा सच्चा सा
लिखने लिखाने लायक
 निकल कर दौड़ ले पन्ने पर सफेद
बनाते हुऐ ओल वैदर रोड टाईप की सरकार की
महत्वाकाँक्षी सड़क जैसा कुछ

लिखते ही
बादल हटें कोहरा किनारे से निकलता
शर्माता हुआ खुद ही भाप हो जाये

सजीव लिखते हैं सभी लिखते हैं
जीव लिखते हैं निर्जीव लिखते हैं

लिखने लिखाने की दुनियाँ में
कब कौन कहाँ से कैसे लिखते हैं
किसने सोचना है जमीन हो जाये
 
लिखना जरूरी है
किसी के लिये लिखना मजबूरी है

किसी के लिये
शौक से लिखिये शौक लिखिये मौज हो जाये

कोई नहीं लिखता है
वो सब अपने अंदर का ‘उलूक’
जो वो करता है
बताता नहीं है किसी को

लिखने लिखाने से उसके किसी को पता नहीं चलना है

वो वही लिखता है
जिसके लिखने से किसी को कुछ पता ना चले
और लिखे लिखाये के पैदा होने से पहले
उसकी मौत हो जाये।

चित्र साभार: https://promotionalproductsblog.net/

शुक्रवार, 4 जून 2021

कुछ अहसास होना मजबूरी है कविता खूबसूरत शब्द है बकवास जरूरी है जी भर कर भौंकना चाहता हूँ

 


लिख लिया जाये कहीं किसी कागज में
एक खयाल
बस थोड़ी देर के लिये उसे रोकना चाहता हूँ

ना कागज होता है कहीं
ना कलम होती है हाथ में
यूँ ही सब भूल जाने के लिये
भूलना चाहता हूँ

ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ

तरतीब से लगाने में ख्वाहिशों को
पूरी हो गयी जिंदगी
उधड़े हुऐ में से
गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ

सच और सच्चाई
बहुत पढ़ लिया छपा छपाया
कुछ अधलिखी किताबों को अब ढूँढना चाहता हूँ

झूठ के पैर ही पैर देखे हैं
एक नहीं हैं कई हैं इफरात से हैं
अब बस उन्हीं में लोटना चाहता हूँ

उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में
जी भर कर भीगना चाहता हूँ

खोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
मतलब मरा मिलता है जिनका
शब्दकोश में देखना चाहता हूँ
लगे हैं कत्ल करने में
शब्द दर शब्द हर तरफ शब्दों का बेरहमी से
रुक भी लें 
मैं घुटने टेकना चाहता हूँ

लिखने वाले कुछ अलग पढ़ने वाले कुछ अलग
लिखने पढ‌ने वाले कुछ अलग से लगें
किताबें बेचना चाहता हूँ
कुछ तो लगाम लगा
अपनी चाहतों पर ‘उलूक’
सम्भव नहीं है सोच लेना
सब तो हो लिया
अब खुदा हो लेना चाहता हूँ

चित्र साभार: https://friendlystock.com/product/german-shepherd-dog-barking/