उलूक टाइम्स: मई 2019

शनिवार, 25 मई 2019

खुजली कान के पीछे की और पंजा ‘उलूक’ की बेरोजगारी का


पहाड़ी
झबरीले 

कुछ काले
कुछ सफेद

कुछ
काले सफेद

कुछ मोटे कुछ भारी
कुछ लम्बे कुछ छोटे
कुत्तों के द्वारा
घेर कर ले जायी जा रही

कतारबद्ध
अनुशाशित
पालतू भेड़ों
का रेवड़

गरड़िये
की हाँक
के साथ

पथरीले
ऊबड़ खाबड़

ऊँचे नीचे
उतरते चढ़ते
छिटकते
फिर
वापस लौटते

मिमियाते
मेंमनों को
दूर से देखता

एक
आवारा जानवर

कोशिश
करता हुआ

समझने की

गुलामी
और आजादी
के बीच के अन्तर को

कोशिश करता हुआ 
समझने की

खुशी और गम
के बीच के
जश्न और
मातम को

घास के मैदानों के
फैलाव के
साथ सिमटते
पहाड़ों की
ऊँचाइयों के साथ

छोटी होती
सोच की लोच की
सीमा खत्म होते ही
ढलते सूरज के साथ

याद आते
शहर की गली के
आवारा साथियों
का झुँड

मुँह उठाये
दौड़ते
दिशाहीन
आवाजों में
मिलाते हुऐ
अपनी अपनी
आवाज

रात के
राज को
ललकारते हुऐ

और

इस
सब के बीच

जम्हाई लेता
पेड़ की ठूँठ पर
बैठा
‘उलूक’

सूँघता
महसूस
करता हुआ

तापमान

मौसम के
बदलते
मिजाज का

पंजे से
खुजलाता हुआ

यूँ ही
कान के पीछे के
अपने ही
किसी हिस्से को

बस कुछ
बेरोजगारी

दूर
कर लेने की
खातिर
जैसे।

चित्र साभार: www.kissanesheepfarm.com

मंगलवार, 21 मई 2019

लगती है आग धीमे धीमे तभी उठता है धुआँ भी खत्म कर क्यों नहीं देता एक बार में जला ही क्यों नहीं दे रहा है


नोट: किसी शायर के शेर नहीं हैं ‘उलूक’ के लकड़बग्घे हैं पेशे खिदमत

शराफत
ओढ़ कर
झाँकें

आईने में
अपने ही घर के

और देखें

कहीं
किनारे से

कुछ
दिखाई तो
नहीं दे रहा है
----------------------------

पता
मुझको है
सब कुछ

अपने बारे में

कहीं
से कुछ
खुला हुआ थोड़ा सा

किसी
और को

बता ही
तो
नहीं दे रहा है
-----------------------------


खुद को
मान लें खुदा

और
गलियाँयें
गली में ले जाकर

किसी को भी घेर कर

कौन सा
कोई
थाना कचहरी

ले जा ही
जो क्या ले रहा है
---------------------------------


बदल रही है
आबो हवा
हर मोहल्ले शहर 

छोटे बड़े की

किस लिये अढ़ा है

मुखौटा
नये फैशन का

खुद के
लिये भी

सिलवा ही
क्यों नहीं ले रहा है
-------------------------------


बहुत अच्छा
कोई है

बहुत दूर है

चर्चा बड़ी है
बड़ा जोर है

श्रृँ
खला की
उसकी सोच का
अन्तिम छोर
पास का

दिखा रहा है
कितना मोर है

जँगल
में उसके
नाचने का
अंदाज अच्छे का

समझ में
आ रहा है

समझा ही
क्यों नहीं दे रहा है
-----------------------


पेट
भरना भी
जरूरी है पन्नों का

कुछ भी
खिलाना
गलत है
या सही है

सोचना बेकार है

भूख मीठी
होती है भोजन से

रोज
कुछ ना कुछ

खिला ही
क्यों नहीं दे रहा है
-----------------------------


शेर
हर तरफ से
लिखे जा रहे हैं
शेरों के लिये

बहुत हैं
शायर यहाँ

कुछ नयी चीज लिख

“लकड़बग्घे” ही सही

लिख कर
दिखा 
ही
क्यों नहीं दे रहा है
----------------------


‘उलूक’
आँख के अंधे

रख
क्यों नहीं लेता
नाम अपना
नया कुछ नयन सुख जैसा

बस
दो ही दिन
के बाद में
मत कह बैठना

कुछ भी कहीं
अपने
मतलब का

सुनाई
क्यों नहीं दे रहा है
-------------------------------

चित्र साभार: https://pngtree.com

रविवार, 19 मई 2019

बेवकूफ है ‘उलूक’ लूट जायज है देश और देशभक्ति करना किसने कहा है मना है

भटकता
क्यों है

लिख
तो रहा है

पगडंडियाँ
ही सही

इसमें
बुरा क्या है

रास्ते चौड़े
बन भी रहे हैं
भीड़ के
लिये माना

अकेले
चलने का भी
तो कुछ अपना
अलग मजा है

जरूरी
नहीं है
भाषा के
हिसाब से

कठिन
शब्दों में
रास्ते लिखना

रास्ते में ही
जरूरी है चलना

किस ने कहा है

सरल
शब्दों में
कठिन
लिख देना

समझ
में नहीं
आये
किसी के

ये
उसकी
अपनी
आफत है

अपनी बला है

शेर है
पता है
शेर को भी

किसलिये
फिर बताना

किसी
और को भी

जब
जर्रे जर्रे
पर शेर

लिख
दिया गया है

खुदा से
मिलने गया
है इन्सान

या
इन्सान से
मिलने को

खुदा
खुद रुका है

पहली
बार दिखा है

मन्दिर के
दरवाजे तक

गलीचा
बिछाया गया है

कितना
कुछ है
लिखने के लिये

हर तरफ
हर किसी के

अलग बात है

अब
सब कुछ
साफ साफ
लिखना मना है

एक
पैदा हो चुकी
गन्दगी के लिये

स्वच्छता
अभियान

छेड़ा
तो गया है

मगर
खुद शहीद
हो लेना

गजब
की बात है

इतनी
ऊँची उड़ान
से उतरना

फिर से
जन्म लेना है

कमल होना
खिलना कीचड़ में

ब्रह्मा जी
का आसन
बहुत सरल है

ऐसा कुछ सुना है

 बेवकूफ है ‘उलूक’

लूट जायज है

देश और
देशभक्ति करना

किसने कहा है

मना है ।

चित्र साभार: https://insta-stalker.com

मंगलवार, 14 मई 2019

ना शेर है ना समझ है समझने की शेर को बस खुराफाती ‘उलूक’ की एक खुराफात है दिखाने की कोशिश उतार कर मुखौटा बेशरम हो चुके एक नबाब का

अच्छा
है
सबसे

खुद
से
बात कर

खुद
को
समझाना

मतलब
कही गयी
अपनी ही
बात का

सारे
अबदुल्ला

नाच रहे हों जहाँ

दीवाने
हो कर

बेगानी शादियों में

मौका होता है

बैण्ड के
शोर के बीच

खुद से
खुद की
मुलाकात का

कभी
नंगे किये जायें

सारे शब्द
ऐसे ही
किसी शोर में

उधाड़ कर
खोल
उनके भी

उतार कर

निचोड़ कर
रखते हुऐ

धूप में
सुखाने के लिये

मुखौटे
बारी बारी

एक
एक शरीफ
किरदार का

लहसुन
और
प्याज मानकर

खोलते
चले जायें परतें

समय
के साथ बढ़ते
पनपते सड़ते
मतलब शब्दों के

देखकर
सामने से खेल
हजूरे आला

और
खिदमतदारों
से
बजबजाये
दरबार का

‘उलूक’
लिखना
ना लिखना

रोज
लिखना
कभी कभी
लिखना

नहीं
बदलना है
सोच का

संडास में
बह रही

गंगा जमुनी
तहजीब के

साफ सफाई
के बहाने से

घर घर
की बातों के

छुपे छुपाये
हबी 

सुनहरे
लूटने
लुटाने के

हिंदुस्तानी
हिंदू मुसलमाँ
होते हिसाब का ।

 चित्र साभार: https://in.pinterest.com/pin/32299322314263872/?lp=true

गुरुवार, 9 मई 2019

लिखना जरूरी है होना उनकी मजबूरी है कभी लिखने की दुकान के नहीं बिके सामान पर भी लिख


ये

लिखना भी

कोई
लिखना है

उल्लू ?

कभी

आँख
बन्द कर के

एक
आदमी में

उग आये

भगवान
पर
भी लिख

लिखना
सातवें
आसमान
पहुँच जायेगा

लल्लू

कभी

अवतरित
हो चुके

हजारों
लाखों

एक साथ में

उसके

हनुमान
पर भी
लिख

सतयुग
त्रेता द्वापर

कहानियाँ हैं

पढ़ते
पढ़ते
सो गया

कल्लू ?

कभी
पतीलों में

इतिहास
उबालते

कलियुग
के शूरवीर

विद्वान
पर
भी लिख

शहीदों
के जनाजे
के आगे

बहुत
फाड़
लिये कपड़े

बिल्लू

कभी
घर के
सामान

इधर उधर
सटकाने में
मदद करते

बलवान
पर
भी लिख

विष
उगलते हों

और

साँप
भी
नहीं हों

ऐसा
सुने और
देखे हों

कहीं
और भी

तो
चित्र खींच

चलचित्र
बना
फटाफट

यहाँ
भी डाल

निठल्लू

पागल होते

एक
देश के
बने राजा के

पगलाये

जुबानी
तीर कमान

पर
भी लिख

बे‌ईमानों
को
मना नहीं है

गाना
बाथरूम में

गा
लिया कर
नहाते समय

वंदे मातरम

‘उलूक’

मैं
निकल लूँ

अखबारों
में
रोज की
खबर में

शहर के
दिख रहे

नंगों
और
शरीफों के

शरीफ
और नंगे
होने के

अनुमान

पर
भी लिख ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com



रविवार, 5 मई 2019

यार यस यस को समझ और यस यस करने की आदत डाल कुछ बनना है अगर तो बाकी सब पर मिट्टी डाल

यार

यस यस
को समझ

और

यस यस
करने की
आदत डाल

कुछ
बनना है
अगर

तो बाकी
सब पर
मिट्टी डाल

बुद्धिजीवी
होने का
प्रमाणपत्र है

है तो
निकाल

नहीं
भी है
अगर

तो भी
कोई
नहीं है
बबाल

समझ
ले बस

यार

यस यस
करने की
आदत डाल

यारों
का यार
होता है

नंगा
सबसे
बेमिसाल
होता है

चाहिये
होता है

तो बस

एक
मिट्टी रंगा
एक
रुमाल होता है

चल निकाल

यार

यस यस
करना

बड़े
कमाल
का कमाल
होता है

सब कुछ देख
सब कुछ समझ

कुछ मत बोल

कुछ
छंद लिख
कुछ
बंद लिख

कुछ
कविता कर
कुछ
गीत लिख

कुछ
टिप्पणी कर
कुछ
टिप्पणी पर
कुछ निकाल

कुछ
गिनना होता है
कुछ
बीनना होता है

यार

यस यस
युग है

कुत्ता भी
बनना पड़े

तो बनना होता है

भौंकना
खुद का
किसी के लिये

इससे बड़ा
कौन सा
भौंकना
होता है

यार

यस यस युग है

ये सारे
बुद्धिजीवी

यस यस
कर रहे हैं

‘उलूक’
की बुद्धि

भ्रष्ट
हो चुकी है

यार

यस यस
नहीं
कर रहा है

तुझे
कुछ बनना है

यार

यस यस
करना सीख

समझा कर

कलियुग नहीं है

यार

यस यस युग है

जरूरत
नहीं है
मत माँग
कोई भीख

बस यार

यस यस
करना सीख

यार

यस यस
को समझ

और

यस यस
करने की
आदत डाल

कुछ
बनना है
अगर

तो
बाकी
सब पर
मिट्टी डाल ।

ग्रह पूर्वा और इससे लगे ग्रहण को पूर्वाग्रह ग्रसित बताने का ठेकेदार नजर में आ गया

कुछ
दिनों से

लगातार
हो रही

खुजली
के इलाज
के बावत

किसी
चिकित्सक
के पास
जाने का

मन
बनाते बनाते

‘उलूक’

एक
“चिट्ठा ज्योतिष”
के चिट्ठे से


टकरा गया

नौ
ग्रहों का
छोड़कर
अगला


एक 
दसवें ग्रह
का बहीखाता

 साथ
में लेकर
आ गया

ग्रह
पूर्वा
के नाम से
जाना
जाने वाला

कुछ
लोगों को
लोगों के
पीछे लगाना

अगर
आप को
आ गया

तो
समझ लीजिये

जमाना
आपकी
मुट्ठी में
आ गया

ग्रह
पूर्वा का
ग्रहण
लगाने वाले

किसी
ना किसी
मदारी के
बन्दर होते हैं

वो
बताते हैं

 और
समझाते भी हैं

उनकी
लाईन से
अलग चलने वाले

पूर्वा ग्रह
से ग्रसित
बना
दिये जायेंगे

डंका

बजा बजा
कर शोर
मचा गया

उनको
बेशरम होकर

 किसी भी
हमाम में
नाच लेने
का तरीका

बहुत अच्छी
तरह से आता है

कुछ तो
तुम भी डरो

कह कर

डरा गया

उनके
नाचने के
तरीके
और
हिसाब से

उनको
कहीं

किसी
अच्छी
जगह पर
बैठा कर

ईनाम
दिया जाता है

बता गया
दिखा गया

सरकार
के आते ही

ऐसे ही
सारे लोगों को

कहीं ना कहीं
बैठा
दिया जाता है

उदाहरण
बता गया

एक
उदाहरण

जैसे
मास्टर
कोई है

कुलपति
बना दिया
जाता है

किसे
पता होता है

ऐसे
मास्टर
साहब का

कहीं ना कहीं

 किसी
संगठन
में जाकर

पैसे देने
और
सर झुकाने

का खाता है

इसी ग्रह
पूर्वा के
बारे में
बात करने

और
इस ग्रह से

लोगों को
ग्रसित
करने वाले
कुछ लोग

कुछ
सम्मानित लोगों

और
उनके किसी
फ्रंट में

जगह
बना लेते हैं

फिर
वहीं से
गुर्राते हैं

लोगों में
ग्रहण
लगाते हैं

कुछ
ना कह

और
कर
सकने
वाले लोग

पूर्वा
ग्रह
ग्रसित
हो जाते हैं

हमारी सुनो

हमारे
कहे से कहो

सोच
अपनी होना
ठीक नहीं

समझा गया

‘उलूक’
देखता हैं

उलूक
समझता है

ऐसे
सभी शरीफ
लोगों को

अपने 

आस पास के

पता
नहीं चला
बहुत दूर का

ऐसा ही
एक शरीफ

शरीफों
का रिश्तेदार


‘उलूक’
से
आकर

कब 

टकरा गया ।


चित्र साभार: https://www.aesc.org