उलूक टाइम्स: दिसंबर 2020

रविवार, 13 दिसंबर 2020

चैन लिखना बेचैनी होते हुऐ किसलिये सोचना क्या रखी है और कहाँ रखी है

सारे बेचैनो ने
लिख दिये हैं चैन
दरो दीवार छोड़िये सड़क मैदानों तक में 

लिखे को पढ़िये पन्ने दर पन्ने
किसलिये  ढूंढनी है 
कलम किस की है और कहाँ रखी है 

कुछ कहां हो रहा है
किसलिये बैचेन है
चैन ढूंढ और जमा कर पैमाने तक में 

लिखते चले जा
खाली गिलास खाली बोतल
किसने देखनी है किसकी है और कहाँ रखी है 

चैन और बेचैनी
रिश्ता बहुत पुराना है
खोज ना जा कर घर से लेकर मैखाने तक में 

मिलेगा जरूर
कुछ राख कुछ धुआँ
कुछ टुकड़े बचे बीड़ी के भी
कौन लिखता है हिसाब बही कहाँ रखी है 

बेचैनी  लिखने में भी दिख जाता है चैन
चैन से नहीं लिखा कर बैचनी यूँ ही खदानों तक में 

खोदना तुम को आता है
किसे मालूम है जरूरी है कुदालें भी किसे पता है कहाँ रखी हैं 

‘उलूक’ जानता है
चैन है ही नहीं कहीं सारे 
बेचैन हैं बताते नहीं हैं 

लिखा करना जरूरी है चैन
अपने लिये ना सही
बेचैन के लिये सही बेचैनी है पता है कहाँ रखी है।

चित्र साभार: https://webstockreview.net/

गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

पता नहीं कैसे कम बोला इस साल बमबोला बदजुबान

मेहरबान कद्रदान
बनी रहे
आन बान और शान

खुदा
मुआफ करे
किसी तरह छूटे
छूटे तो सही
गधे सी हो चुकी
ये लम्बी जुबान

काम की ना काज की
दुश्मन कलम दवात की

किसलिये
फिर फिर खोल बैठती है
पाँच दस दिन छोड़ कर
बन्द होती होती नजर आ रही
कबाड़ से भर चुकी
एक दशक पुरानी
फटे हाल बिन किताब की
पुस्तकालय का घूँघट ओढ़ी हुई
ये दुकान

राम नाम सत्य है
मुर्दा मगर मस्त है
जैसी बन चुकी हो जिसकी
शहर दर शहर श्मशान दर श्मशान
भूत प्रेतों के बीच
एक जबरदस्त पहचान

देखते हुऐ

जाते हुऐ
साल दो हजार बीस के
बनाये गये मुर्गों का
भूलना बाँग देना
और
दिखाई देना उनका
सपनों में भी
टाँग के नीचे से चोंच डालकर
कहते चले जाना
खींचो जरा जोर से खींचो
दो गज की दूरी बनाकर
अपने ना सही
पड़ोसी के ही कान

समझ में
आ ही गयी
ढोल पीटती अपनी बड़बड़ाहट
खींचती हुई नाक को
समझ कर झंडा देश का

मान कर फुसफुसाती हवा
कान में डालती जैसे मंत्र

अब तो बोल ‘उलूक’
जोर लगा कर
जय जवान जय किसान

अर्ध शतक पूरा हुआ
घबड़ाहट का ही मान लो
हड़बड़ाहट के साथ
बड़ी मुश्किल से

पता नहीं
कैसे
कम बोला इस साल
बमबोला बदजुबान ।

चित्र साभार: https://memegenerator.net/

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

तेरा लिखा जरा सा भी समझ में नहीं आता है कह लेने में क्या जाता है?

 

शिकायत है कि समझ में नहीं आता है

‘उलूक’ पता नहीं क्या लिखता है क्या फैलाता है 

प्रश्न है
किसलिये पढ़ा जाता है वो सब कुछ
जो समझ में नहीं आता है 

समझ में नहीं आने तक
भी ठीक है
नहीं आता है नहीं आता है
पता नहीं फिर
कोई इतना कोई क्यों गाता है 

पढ़ने की आदत अच्छी है
कुछ अच्छा पढ़ने के लिये
किसलिये नहीं जाता है
समझ में अच्छा लिखा
बहुत ही जल्दी चला जाता है 

घर से
मतलब रखता है
गली में हो रहे शोर से ध्यान हटाता है
शहर में बहुत कुछ होता है
अखबार में उसमें से थोड़ा तो आता है 

अखबार दो रुपिये का
अब कौन खरीदता है
बात बस
खबर और समाचार के बीच की
समझाता है बताता है 
समस्या और समाधान
बेकार की बातें हैं
व्यवधान
इसी से होता चला जाता है 

पैसा बहुत जरूरी है

हर महीने की
पहली तारीख को
आ गयी है
का
एस एम एस चला आता है 

किसलिये देखना
क्या होता है अपने आसपास
अपनी ही गली में पास की ही सही
रात में भी बहुत सारे
भौंकते चले जाते हैं कुत्ते गली के
कौन अपनी नींद
खराब करना चाहता है

‘उलूक’ तेरी तरह के बेवकूफ
नहीं हैं हर जगह
कूड़े कचरे पर लिखना
कौन सा गजब हो जाता है 

हम ना देखेंगे
ना देखने देंगे किसी को
अपनी आँख से कुछ भी आसपास अपने

तेरा लिखा
जरा सा भी समझ में नहीं आता है
कह लेने में
क्या जाता है?

चित्र साभार:
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