उलूक टाइम्स: 2023

रविवार, 31 दिसंबर 2023

‘उलूक’ बदतमीज है गांधी गांधी करता है मौक़ा लगे उसे एक लात कभी मार कर आयें



घास ना भी खाएं कोई ऐसी बात नहीं है
बस जुगाली जरूर करते चले जाएं
दांत खट्टे कर भी दिए हों किसी ने
जरा सा भी ना घबराएं थोड़ी हवा चबाएं

दीमकों ने खोखली कर भी दी हो
चारों तरफ की सारी कुर्सियां
बस मुस्कुराएँ
पालथी मार कर बैठने की जमीन पर करें कोशिश
बस एक दरी घर से ले आयें

हो रहा है हो रहा है बहुत कुछ हो रहा है ही बस कहें
देखें सुने और केवल यही फैलाएं
बातें बनाना सीखने सिखाने के स्कूल कालेज खोलें
खुद भी इनाम लें मशहूर हो जाएँ

करें कुछ भी घर में अपने गली में बस शेर हो जाएँ
शेर के ऊपर भौंके उसे कुत्ता बनाएं
सर्वश्रेष्ठ होने का ढिंढोरा खुद भी पीटे
जेबें भर कर पिटे पिटवाये भी इस काम में लगाएं

ज़माना कम से कम कपड़ों का है रुमाल पहनें
पर घर घर एक हम्माम जरूर बनवाएं
शेर और शायरी करते रहें मुहावरे याद करें
और लोगों को बुला कर कहीं मंच से सुनाएँ

दूध से धुले लोग हैं सम्मानित हैं
इज्जत उतारें उतारने दें
परेशान ना होवें खिलखिलाएं
‘उलूक’ बदतमीज है
गांधी गांधी करता है
मौक़ा लगे उसे एक लात
कभी मार कर आयें |

चित्र साभार https://www.dreamstime.com/

शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

और कर भी क्या सकता है वो जो है हड्डी में कबाब

 

सुना है फिर जा रहा है
एक दो दिन में एक पुराना हो चुका एक नया साल
सोच में बैठा है  हो ना पाया आबाद

साल पैदा होते हैं यूं ही बूढ़े हो लेने के लिए
बस कुछ दो चार दिन में ही
या कहें कि हो लेते हैं खुद ही बरबाद

खबर ये भी है
कि आ भी रहा है इक नया साल
पुराने की जगह लेने के लिए
और है बहुत ही बेताब

आदमी है कि
आदमी होने की सोचता ही रह जाता है
और साल निकल लेता है किनारे से
बस यूं ही चुपचाप

कोई कह रहा है
कि और भी बहुत कुछ अच्छा होगा इस साल
हो चुके सारे अच्छे के बाद

इतना अच्छा हो चुका है इस साल  
शायद कुछ बचा भी हो
सोच में बैठा है पर लगा एक सुरखाब

सपने बोना कई
सींचना सपनों को और उगाना पेड़ सपनों का
फिर खाना तोड़ कर सपने बेहिसाब

सीख लेना अच्छा है
सिखा कर जा रहा है कम से कम
सपना हो लेने से बचने की पढ़ाकर
कोई अपनी किताब

कितना कुछ लपेटा है
लपेटने वाले ने साल भर जी भर के
सच में जादूगरी है कि कमाल है
अभी तो और बहुत कुछ देखना है जनाब

‘उलूक’ फिर से खिसियायेगा
फिर से नोचेगा खम्बे कई आने वाले साल में यूं ही
और कर भी क्या सकता है वो
जो है हड्डी में कबाब


चित्र साभार: 

गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए करना किसी को नहीं है कुछ कहीं

कोशिश करते रहिये
कहने की सच
बात अलग है
कहने भर से ही बस काम नहीं हो जाएगा
जो कहा गया है उसको
किसी हजूर के तराजू में तोला भी जाएगा
बांट लिखने वाले के होंगे भी नहीं
कोर्ट कचहरी की अंधी मूर्ती से भी
काम नहीं चल पायेगा
आप से बस
हमेशा जोर लगा कर पूछा जाएगा
आप क्या सोच रहे हो
आपकी सोच को
इस तरह
सार्वजनिक किया जाएगा
सब शामिल हैं
इस खेल में घर से लेकर मैदान तक
बल्ला आपको दिए बिना
आपसे क्रिकेट खेलने को कहा जाएगा
बातें करिए बातों मैं कहीं भी आपको
आयकर लगा नजर नहीं आयेगा
जो जितना लंबा फेंकेगा
सोने का मैडल उसी के हाथ नजर आयेगा
प्रतिस्पर्धा कहीं है ही नहीं
मुकाबला करने आने वाले की
मुट्ठी गरम कर उसे
गीता का ज्ञान दिया जाएगा
एक ही चेहरे के साथ जीने वाले को
नरक ज्ञान की आभासी दुनियाँ
से भटका कर स्वर्गलोक में
होने का आभास
बातों से ही दे दिया जाएगा
बातें करिए बातें बोइये बातें खेलिए
करना किसी को नहीं है कुछ कहीं
‘उलूक’ तू खुद सोच ले
अपने दिन का सपना
तेरा रात का बकबकाना ही कहीं
तेरा फांसी का फंदा
तेरे लिए तो नहीं एक बन जाएगा ?

चित्र साभार : https://navbharattimes.indiatimes.com/

सोमवार, 25 दिसंबर 2023

मतलब शे'र-ओ-सुख़न का बस यूँ ही कुछ भी नहीं है बरबाद हुए कारोबार की तरह

 



फिर एक और दिसम्बर
तैयार खडा है जाने के लिए इस बार हर बार की तरह
फिर घिसे पिटे पन्ने तुड़े मुड़े कई बेकार के
कूड़ेदान में पड़े हैं बीमार की तरह

किसे उठायें किसे पेश करें ज़रा बताइये तो हजूर
एक खरीददार की तरह
किसे आता है कह देना सटीक और बेबाक दिल खोल कर
दिलदार की तरह

उठती हैं लहरें
समुन्दर की सबके अन्दर
नदियाँ भी बहती हैं सरे बाजार की तरह
कोई समेट लेता है  रेत के टीले भी
कोई फैला देता है खबर एक अखबार की तरह

इतना आसान नहीं है हो लेना एक शायर सरे आम
किसी लबे बीमार की तरह
ईलाज है हर लाईलाज का
कोशिश जरूरी है दिल से एक पागल तीमारदार की तरह

फिर लौट के आना है दिसंबर को
गया है अभी अभी इमरोज एक जाँ-निसार की तरह
‘उलूक’ फितरत से किसे मतलब है
कौन समेट रहा है यहां कुछ एक जमादार की तरह


चित्र साभार: https://pixabay.com/photos/cleaning-sweeper-housework-2650469/


मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

जब भी करेगा ‘उलूक’ कुछ फालतू सी बकवास ही करेगा

कितना भी पोत लिया जाए
एक सफ़ेद पन्ने को कूंची से या कलम से
आंखे मानती नहीं है देखने वाले की यूं ही
कुछ भी कभी भी कसम से

काला लिखा हुआ होता है कुछ खूबसूरत सा सामने से
क्या फर्क पढ़ता है
पलकें खुली होती हैं मगर ढकी हुई आँखे होती हैं
किसी और की सोच से 
सपने कोई और गढ़ता है

उछालते रहिये सिक्के जिन्दगी पड़ीं है
एक तरफ हेड दूसरी और टेल ही रहेगा
सिक्का खडा करने की ताकत के साथ खडा है
सामने से कोई आज
तू क्या करेगा

सोचने और करने में बहुत साफ दिखाई देता है अंतर
किसी का सामने से
बातों में जलेबी बना के परोसने वालों का
कौन क्या कभी कुछ कर सकेगा

 पाप किये हैं पापी भी है साथ में बह रही गंगा भी है
मन आयेगी तो कभी नहा भी लेगा
‘उलूक’ तेरे सोचने और करने में फर्क ही नहीं है  
जो भी उखाडेगा तेरा ही कुछ उखाड़ लेगा |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

रविवार, 10 दिसंबर 2023

बेवकूफ है बस एक ‘उलूक’ होशियार सारा जहां है

 

कुछ नहीं कह रहे हैं कुछ कहने की जरूरत ही कहां है
सब कुछ तो ठीक है किसी को बताने की फुर्सत ही कहां है

कुछ उसके आदमी हैं कुछ इसके आदमी है जो जहां है वो वहां है
अभी उधर वाला इधर वाले की खाल खीचे खाल है अभी और यहाँ है

जो उधर है वो सबसे होशियार है उसको भी पता है वो कहाँ है
वो इधर वाले के कपडे उतारे किस ने देखना है कौन है कहा है

कल इधर वाला उधर होगा तब देख लेंगे किसने क्या कहा है
सजा किस को हुई है या होने वाली है मौज में हैं जो हैं जहां हैं

गाली गांधी को दे दो गाली नेहरू को दे दो वो कौन सा यहां हैं
गाली देने में कौन से पैसे खर्च होते हैं गाली देने वाले शहंशाह हैं

जो कह रहा है बस वो ही सिर्फ एक बेवकूफ है सुनने वाला मेहरबां है
होशियार ‘उलूक’ तेरे अलावा बाकी बचा है जो सारा और सारा जहां है |

चित्र साभार: https://pixabay.com/



शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023

जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए



अच्छी होती हैं खुशफहमियां बनी भी रहनी चाहिए
घर के आईने में धूल हमेशा जमीं ही रहनी चाहिए

गलतफहमियां भी हों थोड़ी कुछ तो होनी ही चाहिए
शेर का चित्र ही सही घर में बिल्लियाँ भी होनी चाहिए

सूरत बस चमकती ही दिखे दिखाई देनी भी चाहिए
जूते फटे भी रहें तब भी कुछ पालिश तो होनी ही चाहिए

दुकाने खोली हुई किसी की भी हों खुली रहनी भी चाहिए
जमीर हो कहीं भी रखा हुआ किस्मत धुली होनी ही चाहिये

नोचने का जज्बा जरूरी है उंगलियाँ खडी होनी भी चाहिए
नाखून हों से मतलब नहीं खबर जहरीली होनी ही चाहिए

तमन्नाऐ दिखाई दें बातों में बस तहरीर होनी भी चाहिए
कौन लिख गया किस के लिए क्या तकदीर होनी ही चाहिए

दबे होंठों में मुस्कराहट हो कुछ खिसियाहट भी होनी चाहिए
‘उलूक’ तमीज हमेशा नहीं कभी बदतमीजी सी होनी चाहिए

चित्र साभार: https://www.hiclipart.com/


गुरुवार, 30 नवंबर 2023

रास्ते सब अपनी जगह हैं लोग बस कहीं नहीं जाते हैं


रोज के सफ़ेद पन्ने पुराने कुछ कुरेदने के दिन कभी याद आते हैं
बारिश अब नहीं होती है उस तरह से बादल मगर रोज ही आते हैं

फिसलने लगती है कलम हाथ से शब्द भागना जब शुरू हो जाते हैं
पकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं

भीड़ हर तरफ होती है रेले आते हैं कई कई आ कर चले जाते हैं
समुन्दर में गिरती चली जाती हैं नदियां बूंदों के हिसाब गड़बड़ाते हैं

फितरत तेरी अपनी है खूबसूरत है किसी की बस कौऐ उड़ाती  हैं
समझदारी संभाल कर रख चालाकी में  धागे चहरे के उधड़ जाते हैं

अपनी कुछ भी  नहीं कहते हैं दूसरे की पतंगें बना कर के उड़ाते हैं
बाजीगर पकडे तो नहीं जाते हैं पर उतरे चेहरे लिखे पर फ़ैल जाते हैं

कबूतर हों या कौऐ हों हवा अपनी ही उड़ाते हैं  
चूहे बड़े शहर के भी हों खोहें अपनी बनाते हैं
‘उलूक’ कोटर से थोड़ा सा झाकने से ही बस तेरे
नजदीकी तेरे अपने कुछ सनकते हैं कुछ कसमसाते हैं |

 

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

रविवार, 8 अक्तूबर 2023

मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा कुछ और हो नहीं रहा हूँ

 

सितम्बर २०२३ तक  "उलूक टाइम्स" के साठ लाख पृष्ठ दृश्य के लिए पाठकों का आभार
चूहों की दौड़ के बीच में कहीं है
वो ही एक चूहा नहीं है
बस मैं ही कुछ हो नहीं रहा हूँ

नकाब चूहे का है मान लिया है उसने
किसी को छूआ नहीं है
मैं ही बस कुछ उनींदा हूँ सो नहीं रहा हूँ

सबकी दुआओं में रहता है
अहसास कभी हुआ नहीं है
बस एक  मैं ही हूँ जो खो नहीं रहा हूँ

घेर कर रखना चाह रहे हैं बंधुआ नहीं है
मैं ही हूँ बस बाहर हूँ और रो नहीं रहा हूँ

सही गलत कुछ भी लिखना जुआ नहीं है
बस एक मैं ही
ताश के पत्तों का जोकर हो नहीं रहा हूँ

नहीं भी है तब भी
ना लिखिए कहीं भी एक कुंआ नहीं है
बौछार लिख दीजिये
मैं ही बस बादल हो नहीं  रहा हूँ
 
सब जिम्मेदार हैं सब ईमानदार है
बस पूछिए वही जो हुआ नहीं है
मैं अभी हूँ यहीं कहीं हूँ
खो नहीं रहा हूँ

सब इज्जतदार हैं डरिये नहीं
मामा है कहीं बुआ नहीं
 है कहीं
ताऊ बन गया है यहीं
मैं ही बस इंसान हो नहीं रहा हूँ

खोज रहा हूँ
शायद कोई जाग रहा हो
 
मैं एक ही हूँ बस जो ढो नहीं रहा हूँ

किताब में
दो और दो चार बताया गया है
  
बस मैं ही नहीं और भी हैं
जो कहें
आठ होने की बाट जोह नहीं रहा हूँ

खबर अखबार में है एक मैं ही  सो रहा हूँ
सारे सोये हुओं ने दस्तखत किये हैं
मैं ही बस कह रहा हूँ रो नहीं रहा हूँ

अखबार छापता है खबर
जो दुधारू खबरी उसे देता है
खबरी ने सबूत दिए हैं
बस एक मैं ही कोई खबर बो नहीं रहा हूँ

ईमानदार शब्दकोष का  एक शब्द है
 सारे चोर
 ईमानदार है मुझे भी होना है कुछ
बस मैं ही यूं ही हो नहीं रहा हूँ

सभी
  कौए
पंख फैला कर मोर हो गए हैं
नाचना मुझे भी है आँगन टेढ़े हैं
मैं ही बस बिजूरवा रहूँगा
कुछ और हो नहीं रहा हूँ

हर कोई
लटका कर घूम रहा है 
गले में ताबीज किस्मत का अपनी
किसी एक रंग का
मैं ही बस काला रहूँ
अच्छा है खुश
 हो नहीं रहा हूँ

गेरुआ है सफ़ेद है हरा है तिरंगे में
खून का रंग लाल है सींचना है बागवां
  है
‘उलूक’ बकबकी कहे
अभी तो चुप हो नहीं रहा हूँ


चित्र साभार:  https://www.freepik.com/

शनिवार, 2 सितंबर 2023

समय बताएगा समय ही बताता है आंखे बंद को सब कुछ साफ़ नजर आता है

 

इसी सफ़ेद कागज़ में लिखा हुआ
एक कबूतर
किसी दिन किसी को नजर ही नहीं आता है

किसी दिन यही कबूतर
उसी के लिए वो एक कौआ हो जाता है
किसी दिन
मूड बहुत अच्छा होता है
कोयल की कुहू कुहू भी उसी के साथ लिखा जैसा
उसी से पढ़ लिया जाता है

समय ने
तब भी बताया था समय अब भी बता रहा है
और
समय ही है जो आघे भी बताएगा

सब की समझ में आता है
देखने सुनने और समझने में हमेशा फर्क रहता है
आगे भी रहना चाहिए
सब को अपने अपने हिसाब से
अपना अपने मतलब का समझ में आ ही जाता है
कौन किसे ये बात खुद अपने आप दूसरे को बताता है?

क्या लिखते हैं
कभी भी समझ नहीं पाते हैं लोग
कहते हैं हमेशा कौन शरमाता है?
हम भी समझते हैं कुछ कुछ
कुछ लोगों को अलग बात है
बस बताने में कुछ संकोच सा हो जाता है

फिर भी कोशिश करते हैं लिखते चले जाते हैं
पता होता है
बस यहाँ ही कागजी तलवार चला ले जाना
सब को ही आता है

लिखे पर
लिखा आपका बता जाता है
आप पढ़े लिखे हो समझ में आपके सब कुछ आ जाता है
और यही लिखा लेखक को आपके बारे में
सब कुछ साफ़ साफ़ बता जाता है

लिखे को पढ़कर
उस पर कुछ लिखने वाले की तस्वीर
सामने से आ जाती है
  लिखने वाले के कबूतर को
पढ़ने वाला
कौवा एक देख जब जाता है

समय जरूर बताएगा
समय सबको सब कुछ सही सही बता जाता है

गलतफहमी बनी रहनी भी जरूरी है
भाग्य से ही सही
बन्दर हनुमान जैसा नजर आता है

‘उलूक’ अपनी आँखों से देखना बहुत अच्छा है
बन्दर को हनुमान
बन्दर को बन्दर देखने वाले को
 समय बतायेगा कहना जुलम हो जाता है |

चित्र साभार : https://www.istockphoto.com/

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

बिना पत्थर खुद को उछालता हुआ सामने से पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था

 

सब ही तो उछाल रहे हैं बड़ी तबीयत से उछाल रहें है
एक नहीं कई पत्थर आसमान की और बिना किसी शोर
और आसमान है
कि होने ही नहीं देता है एक भी छेद कितना भी लगाले कोई जोर

आसमान भी जानता है आसमान भी पहचानता है
पत्थर को भी और उसे उछालने वाले को भी बहुत अच्छी तरह से
वो नहीं रहा कभी भी किसी की ओर

आसमान की परेशानी आज कुछ और है
जिस पर उस का नहीं चल रहा कोई जोर है
वो वो है
जिसके पास ना कोई पत्थर रहा कभी
ना उसे किसी पत्थर से मतलब रहा
उसके मन में ही चोर है

कल जब करोड़ों पत्थर आसमान की तरफ जा रहे थे
हर किसी के ख़्वाब में होते हुए छेद महसूस किये जा रहे थे
कोई छेद की ओट में बैठा धुआं बना रहा था
किसी एक पत्थर पर छपा ले जाए खुद का नाम योजना बना रहा था
आसमान मुस्कुरा रहा था
नजर रहती है क्योंकि उसकी चारों ओर

हुआ छेद जैसे ही आसमान में
तालियों से आसमान गडगडा रहा था
एक पत्थर ने नहीं किया छेद करोड़ों छेदों से हुआ है आसमान पटा
दूरदर्शन बताना चाह रहा था
बिना पत्थर खुद को उछालता हुआ सामने से
पत्थर की तस्वीर हाथ में लिए खुद को ही कोई लहरा रहा था

देश समझ रहा था पहचान रहा था
अचानक दूरदर्शन में देखने वालों की संख्या में बहुत बडी गिरावट
आने वाले समय को अच्छी तरह समझा रहा था

चलो चंद्रयान के बहाने ही सही
 ‘उलूक’ एक पत्थर तबीयत से तो उछालो यारो का मतलब
सारे देश को आज फिर से
बहुत अच्छी तरह से समझ में आ रहा था |

सोमवार, 21 अगस्त 2023

कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

 


सांप और उसके जहर को क्या लिखना
महसूस कर और सिहर
तेंदुआ शहर में घूम रहा है
दिखा कल अखबार में है एक खबर
बहुत कुछ हो रहा है हमारे आस पास
कुछ तो सुन संजीदा ऐ डफर

अवकाश में चला गया है
पेंशन भी आ गयी है पहली खाते में इधर
काम पर लेकिन अब लगा है बना रहा है बम
साथ में है सुना है जफ़र
उड़ाने का इरादा है उसका सब कुछ
जिससे मिला उसे हमेशा ही सिफर

कभी इधर की थाली का रहा बैगन
लुडकता इधर से उधर
आज उधर दिख रहा है यही बैगन
लुडकता उधर से इधर

इधर था
तो इधर की खोद देता था जड़ें सारी होकर बेफिकर
उधर भी
खोद ही रहा होगा जड़ें किसी की अभी नहीं आई है कोई खबर

बरबाद कर दूंगा
तो बस एक मुहिम है सोच है
दिखाना तो है २०२४ का एक शहर
हर शय पर है हर घर में है हर जगह है
बर्बाद कर दूंगा का नुमाइंदा दिखाने को कहर

बस ‘उलूक’ को पता है
उसका राम है उसका अल्लाह है उसका जीजस है
और सब एक है बाकी सांप है और है जहर
सांप है तो जहर भी है काटता भी है तो मरता भी है
सुबह से लेकर शाम तक जिंदगी और मौत है
लेकिन कड़क धूप है तो है दोपहर

चित्र साभार : https://www.clipartmax.com/

शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है


होती है खुजली कोई अनोखी बात नहीं होती है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है

सामने से दिखे आता हुआ कोई  
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं

बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है

कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है

खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा  सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है

‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है

 


आजादी दिखने दिखाने तक ही ठीक नहीं है
आजादी है कितनी है उसे लिखना भी उतना ही जरूरी है

जब मिली थी आजादी सुना है एक कच्ची कली थी 
आज के दिन पूरा खिल गयी है फूल बन गयी है
स्वीकार कर लेना है
आज की मजबूरी है

बात देश की करते हैं नौजवान आजकल के 
झंडा फहराते हैं एक संगठन का
समझाते है राष्ट्र तिरंगे के फहराने के समय
अपनी अपनी श्रद्धा है अपनी अपनी जी हजूरी है 

ना सैंतालीस मैं पैदा हुऐ ना गांधी से रूबरू कभी
धोती लाठी नंगा बदन तीन बंदरों की टोली
समझने की कोशिश भर रही
गांधी वांगमय समझ में आया या ना आया
सच को समझने की कोशिश भर रही
कह ले कोई कितना फितूरी है

समय दिख रहा है दिखा रहा है सारा सब कुछ
ठहरे स्वच्छ जल में बन रही तस्वीर की तरह
लाल किले पर बोले गए शब्द कितने आवरण ओढे
तैरते सच की उपरी परत पर
देख सुन रही है एक सौ चालीस करोड जनता
दो हजार चौबीस के चुनाव के परीक्षाफल
चुनाव होना ही क्यों है उसके बाद
किसने कह दिया जरूरी है

‘उलूक’ चश्मा सिलवाता क्यों नहीं अपने लिये
पता नहीं क्यों उनके जैसा
टी वी अखबार वालों के पास होता है जैसा
पता नहीं क्या देखता है क्या सुनता है

आँख से अंधा कान से बहरा
पैदा इसी जमीन से हुआ
कुछ अजीब सा हो गया
इस में कहीं ना कहीं कोई तो गड़बड़ है
कागज़ कागज़ भर रहा है लेकिन
कलम कुछ बिना स्याही है
और सफ़ेद है कोरी है | 

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

रविवार, 6 अगस्त 2023

फटी सोच से फटी किताब में लिखे गए कुछ फटे शेर 'उलूक' ले कर के आता है

 


 कितना कुछ कुलबुलाता है
भटक कर अँगुलियों के पोरों तक आ जाता है
कलम की नोक तक सुरसुराता हुआ
सामने पड़े सफ़ेद पर बस फ़ैल जाता है

खून लाल होता है कहा जाता है
सफ़ेद होकर कब पानी में बदल जाता है
कहीं जिक्र नहीं करता है कोई
इंसान होने में अब किसे फक्र हो पाता है

कूंची लिए हाथ में कसमसाता है
रंगों से इन्द्रधनुष बनाना चाहता है
एक रंग काफी होता है
पागल बादशाह  जब जाल अपना फैलाता है

सीधे तू चोर है कभी भी नहीं कहना चाहिए
 ना ही किसी से सीधे कहा जाता है
अलीबाबा के समय चालीस रहे होंगे
अब तो पांच सौ चालीस से देश चल पाता है

सीवर जरूरी नहीं सब बहा कर ले जाए
बहुत कुछ सब के हिस्से का बचा रह जाता है
सफाई और गन्दगी के बीच की लाइन खींचना ठीक नहीं
अब माना जाता है
सब कुछ हम्माम हो चला  है देख रहे हैं खुद को नहाते हुए इसी में
कौन हडबड़ाता है
गांधी को सोचना और उसकी बात करने वाला
अब एक निहायती गंवार माना जाता है

खोदना जरूरी है सारी खूबसूरत इमारतों को एक बार
और ये उसे करना है
तू किसलिए लरबराता है
ईट बहुत  है औकात बताने  के लिए
क्यों पगलाता है
चर्च मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारा अगर भरभराता  है

बहुत सारी गन्दगी है बहुत बदबूदार है
फेंकना भी होता है हर कोई फेंकना भी चाहता है
‘उलूक’ आसान नहीं होता है शब्द नहीं होते हैं पास में
एक वाक्य तक नहीं बनाया जाता है |
 

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/


सोमवार, 31 जुलाई 2023

टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत कहीं ना कहीं तो लिखा होता है


 
माना कि कोई
कितना भी सांप हो लेता है
एक लम्बे समय तक कुण्डली मार लेने के बाद  
सीधे हो कर लौटना आसान नहीं होता है

सांप होना काटने की आदत होना
अलग अलग बातें होती हैं
और हर सांप जहरीला हो
ये भी जरूरी नहीं होता है

सावन का महीना 
शिव के लिए होता है
सांप बस गले में लपटने के लिए भी होता है
भस्म मलने के लिए होती है
भस्मासुर हर पहर का
उसी पहर में भस्म नहीं होता है
जिसमे उसे मलने के लिए शिव खडा होता है

अजीब सी बातें हैं अजीब सी आदतें हैं
अजीब सा समा है अजीब से मेहमा है
क्या होता है अगर तजुर्बा नहीं होता है

शब्द हुंकार के डमरू में सुनाई देते हैं
उसके लिए कान खड़े हों
ये भी कहीं लिखा नहीं होता है

एक लंबा समय लगता है पूँछ को टेडे होने में
सीधे कर लेने के सपने देख लेने  का
कोई समय नहीं होता है

रेत पर बने महल कई सालों तक यूं ही खड़े रह सकते हैं
किसने कह दिया
इस बार की आंधी ने पहले से अगर आगाह कर भी दिया होता है

हजारों कश्तियां होती हैं समुन्दर में कही ना कहीं
जहां और जब डूबना होता है
वो समाचार अखबार में कभी भी
बहुत पहले से नहीं होता है

‘उलूक’ इंतज़ार कर 
खुश हो कर सोच ले
इस बार नहीं तो अगले किसी बार

टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत
कहीं ना कहीं तो लिखा होता है|


चित्र साभार:
https://www.deviantart.com/


रविवार, 18 जून 2023

समझ में आना बंद हो गया



बकबकाना बंद हो गया
इधर से छोड़ उधर से आना जाना बंद हो गया
किताब अपनी खुद की दिखती नहीं हाथ में
कलम कान के पीछे लगाना बंद हो गया

बड़बड़ाना बंद हो गया
माथे में सलवटें बनती नहीं हैं
हवा में यूं ही हाथ हिलाना बंद हो गया

कहना सुनाना बंद हो गया
लिखना लिखाना बंद हो गया
जोर लगा कर हैइशा कोई फ़ायदा नहीं
कुछ भी सोच में आना बंद हो गया

हड़बड़ाना बंद हो गया सकपकाना बंद हो गया
सुकून शब्दकोष में सो गया
नीद बेहोशी सी हो गयी
सपनों का आना बंद हो गया

फड़फड़ाना बंद हो गया
हवा हवा हो गयी पानी पानी हो गया
आईने में चेहरा नजर आना बंद हो गया

महकना महकाना बंद हो गया
रेत फ़ैलाने लगा शहर दर शहर
रेगिस्तान का ठिकाना बंद हो गया

चहचहाना बंद हो गया
उल्लुओं का रेला बढ़ता चला गया
कौन किस से मिले कारवाँ कैसे बने
मिलना मिलाना बंद हो गया

दिमाग बंद कर खुद का
पकाने लगा खुद खुदा और उसकी भीड़ का सिपाही
‘उलूक’ का पकाना बंद हो गया |

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मंगलवार, 2 मई 2023

बस यूँ ही



रोज खुलती हैं खिड़कियाँ
कुछ हवा होती है कुछ धूल होती है
झिर्रियों से झांकती है जिंदगी
सांस होती है फिजूल होती है

लिखना भूल जाने का मतलब
लिखना नहीं आना नहीं होता है
कुछ
अहसास लिख जाते है
कुछ को लिख दिये का अहसास होता है

अजीब मौसम हैं अजीब बारिशें है
बादल कहीं नहीं होता है
इतना बरसता है आदमी 
पानी पानी हो शर्मसार होता है

उसको इसका सब पता होता है
इसको उसका सब पता होता है
अपने पते पर लापता लोगों को
बस अपना कुछ पता 
नहीं होता है

इधर मुक्ति पालो उधर बंधुआ हो लेती है सोच
सबको पता होता है
खुले दिमाग मरीचिका होते हैं
कोई कहता नहीं 
है मगर गुलाम होता है

सनद रहेगी वक्त पर काम भी आयेगी
बस लिखना जरुरी होता है
रेत है हर तरफ
आंधी में लिखा सब कुछ सामने से ही उड़ा होता है

वो रेतते हैं गले गले भरे शब्दों के
शराफत का यही कायदा होता है
खून से लिखते हैं आजादी
जर्रे जर्रे में जिसने सब हलाल किया होता है

खौलता है तो क्या होता है खौलने दे
  कुछ नहीं 
कहीं होता है
देख और देखता चल 'उलूक' सब देख रहे हैं
बस कुछ देखना ही होता है |  

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शनिवार, 29 अप्रैल 2023

भीड़ से निकल बस्ती नहीं शहर लिख दे



एक लहर उठती है उठे
कहर लिख दे
एक लहर बैठती है बैठे
ठहर 
लिख दे

भीड़ से निकल
बस्ती नहीं शहर लिख दे
कोशिश कर
कुछ मीठा सा जहर लिख दे

नशे में रह
मत निकल बाहर
बहर लिख दे
रेत के टीले कहीं मैदान कहीं
लहर लिख दे

मांग कुछ
थोड़ा सा कोशिश कर
महर लिख दे
सूखे खेत के बीच
जा बड़ी सी एक 
नहर लिख दे

कुछ तो लिख
रोज नहीं कभी
एक 
पहर लिख दे
किस को पड़ी है
‘उलूक’ गर
गहर लिख दे |

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महर = वह धनराशि है जो विवाह के समय वर या वर का पिता, कन्या को देता है।

कहर= गुस्सा, क्रोध।

बहर= आकाश, आस्मान।

गहर= पृथ्वी-तल में पाया जानेवाला कोई ऐसा गहरा गड्ढा, जो प्राकृतिक कारणों से बना हो

शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं

कुछ रूह होती हैं
सहला देती हैं रूह को बस यूँ ही
कुछ बदल देती हैं समां
यूँ ही आस पास का
लगता है कहीं होती हैं

गोश्त और गोश्त में
कहां कोई फर्क नजर आता है
गोश्त कुछ रूह से महकी हुई
मगर जरुर होती हैं

शुक्रिया कहने की जरुरत
कहां कब रह जाती है
आसपास एक नहीं
जब चाहने वाली कई रूह होती हैं

अब रूह कहें आत्मा कहें
राम और रहीम की भी होती हैं
बहस कुछ गोश्त पर छपी
हमेशा होती हैं और जरुर होती हैं

हजार रूह के बीच
बस एक दो कुछ अजीब होती हैं
गोश्त और रूह से अलहदा
कुछ थोड़ा सा भूत होती हैं

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |

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