उलूक टाइम्स: 2013

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नये साल आना ही है तुझको मुझसे बुलाया नहीं जा रहा है

सोच कुछ और है
लिखा कुछ अलग
ही जा रहा है
हिम्मत ही नहीं
हो रही है कुछ भी
नहीं कहा जा रहा है
केजरीवाल बनने की
कोशिश करना
बहुत महंगा
पड़ता जा रहा है
आम आदमी की
टोपी वाला कोई
भी साथ देने
नहीं आ रहा है
ऐसा ही कुछ अंदाज
पता नहीं क्यों
आ रहा है
ऐसा नहीं है
मैं एक
चोर नहीं हूँ
कह देना
मान लेना
बस इतनी ही
हिम्मत जुटाना
नहीं हो
पा रहा है
कह दिया जाये
यहाँ क्या
हो रहा है
और क्या
बताया
जा रहा है
किसी को
क्या नजर
आ रहा है
कहाँ पता
चल पा रहा है
मुझे जो
दिख रहा है
उसे कैसे नजर
नहीं आ रहा है
बस यही
समझ में
नहीं आ
पा रहा है
कुत्ते की
फोटो दिखा
दिखा कर
शेर कह दिया
जा रहा है
कुत्ता ही है
जो जंगल को
चला रहा है
बस मुझे ही
दिख रहा है
किसी और को
नजर नहीं आ
पा रहा है
हो सकता है
मोतिया बिंद
मेरी आँख में
होने जा रहा है
सफेद पोश होने
का सुना है एक
परमिट अब
दिया जा रहा है
कुछ ले दे के
ले ले अभी भी
नहीं तो अंदर
कर दिया
जा रहा है
है बहुत कुछ
उबलता हुआ
सा कुछ
लिखना भी
चाह कर
नहीं लिखा
जा रहा है
नये साल में
नया एक
करिश्मा
दिखे कुछ
कहीं पर
सोचना चाह
कर भी
नहीं सोच
पा रहा है
साल के
अंतिम दिन
'उलूक'
लगता है
खुद शिव
बनना चाह
रहा है
थर्टी फर्स्ट
के दिन
बस दो पैग
पी कर ही
जो लुढ़क
जा रहा है ।

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

बस एक सलाम और तुझे ऐ साल जाते जाते

लाजमी है उनका
भड़क उठना
एक मरी हुई
लाश को देखते
ही कहीं भी
कुछ शाकाहारी
लोगों को
पसंद नहीं आता
किसी लाश का
यूँ ही मर जाना
उनकी सोच में
बोटियाँ नोच कर
खाने वालों के लिये
तिरस्कार और घृणा
भरी हुई बहुत
साफ नजर आती है
बहुत माहिर होते हैं
इस तरह के
कुछ लोग
और शातिर भी
जो कबूतरों को
सिखाते हैं
जिंदा गिद्धों के
माँस को नोच
नोच कर
इक्ट्ठा करना
उन्हें मालूम है
मौत का कष्ट
कहते हैं कुछ
क्षण का होता है
पर साथ में
उनको ये
वहम भी होता है
इस बात का
कहीं मौत बहुत
सुकून ना
दे देती हो
मारना चाहते हैं
वो इसीलिये
आत्मा को नोच
खसोट कर
एक बकरी
की गर्दन
एक ही झटके में
हलाल कर देना
किसी भी तरह की
बहादुरी नहीं होती
बात तो तब है
जब रोज सुबह
और शाम
एक तेज धार
के ब्लेड से
उनकी पीठ पर
बना लिया जाये
अपने आने वाले
दिन का कार्यक्रम
ताकि साल
पूरा होते होते
तैयार हो सके
जाने वाले साल
की एक सुंदर
सी डायरी
जिसे फ्रेम कर
टाँक दिया जाये
समय की दीवार
पर ही कहीं
मजा और बढ़ जाये
अगर हर दिन के
निशान की गिनती
घाव में नमक मिर्च
मल कर की जाये
जब मन आये
और इसके लिये
बकरी की माँ को
बाँध दिया जाये
बकरी के सामने
मत कहना कि
ये क्या लिख दिया
क्योंकि समय के
निशान बहुत ही
गहरे होते हैं
सर्फ ऐक्सल
काफी नहीं है
हर दाग के लिये
उतना ही अच्छा
सोचिये मत
बस मनाइये
इकतीस दिसम्बर
थ्री चियर्ज के साथ
साल तो अगले
साल का भी जायेगा
एक साल के बाद
इसी तरह
नये साल की
शुभकामनाओं
के साथ ।

रविवार, 29 दिसंबर 2013

पिछला साल गया थैला भर गया मुट्ठी भर यहाँ कह दिया

पता नहीं 
कितना अपनापन है 
इस खाली जगह पर 

फिर भी जब तक 
महसूस नहीं होता परायापन 
तब तक ऐसा ही सही 

दफन करने से पहले 
एक नजर देख ही लिया जाये 
जाते हुऐ साल को 

यूँ ही कुछ इस तरह 
हिसाब की किताब ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌पर 
ऊपर ही ऊपर से 
एक नजर डालते हुऐ 

वाकई हर नये साल के पूरा हो जाने का 
कुछ अलग अंदाज होता है 

इस साल भी हुआ 
पहली बार दिखे 
शतरंज के मोहरे 
सफेद और काले 
डाले हाथों में हाथ 
बिसात के बाहर देखते हुऐ ऐसे 
जैसे कह रहे हो

बेवकूफ 'उलूक'
खुद खेल खुद चल 
ढाई या टेढ़ा 
अब यही सब होने वाला है आगे भी 
बस बोलते चलना ‘ऑल इज वैल’ 

पाँच और सात को जोड़कर 
दो लिख देना 
आगे ले जाना सात को 
किसी ने नहीं देखना है 
इस हिसाब किताब को 

सब जोड़ने घटाने में लगे होंगे 
इस समय 
क्या खोया क्या पाया 
और वो सामने तौलिया लपेटे हुऐ 
जो दिख रहा है 
उसके देखने के अंदाज से 
परेशान मत होना 

उसे आदत है 
किसी के उधड़े 
पायजामें के अंदर झाँक कर 
उसी तरह से खुश होने की 

जिस तरह एक मरी हुई 
भैंस को पाकर 
किसी गिद्ध की बाँछे खिल जाती है 

संतुष्ट होने के आनन्द को 
महसूस करना भी सीख ही लेना चाहिये 

वैसे भी अब सिर्फ धन ही नहीं 
जिंदगी के मूल्य भी 
उस लिये गये अग्रिम की तरह हो गये हैं 
जिसके समायोजन में 
पाप पुण्य उधार नकद 
सब जोड़े घटाये जा सकते हैं 

जितना बचे 
किसी मंदिर में जाकर 
फूलों के साथ चढ़ाये जा सकते हैं 
ऊपर वाले के यहाँ भी मॉल खुल चुके हैं 

एक पाप करने पर दो पुण्य फ्री 

कुछ नहीं कर पाये इस वर्ष घालमेल 
तो चिंता करने की कोई जरूरत भी नहीं 

नये साल में नये जोश से उतार लेना 
कहीं भी किसी के भी कपड़े 
जो हो गया सो हो गया 
वो सब मत लिख देना 
जो झेल लिया है 
उसे दफना कर देखना 
जब सड़ेगा 
क्या पता 
सुरा ही बन जाये 
कुछ नशा हो पाये 

इस तरह का 
जिस से तुम में भी 
कुछ हिम्मत पैदा हो सके 
और तुम भी उधाड़ कर देख सको 

सामने वालों के घाव और 
छिड़क सको कुछ नमक 
और कुछ मिर्च 

महसूस कर सको 
उस परम आनंद को 

जो आजकल 
बहुत से चेहरों से टपकता हुआ 
नजर आने लगा है 

सुर्ख लाल रक्त की तरह 
और कह सको 
मुस्कुराहट छिपा कर 
नया वर्ष शुभ हो और मंगलमय हो । 

चित्र साभार: https://www.graphicsfactory.com/

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

ऐसा भी तो होता है या नहीं होता है


जाने
अंजाने में 

खुद
या
सामूहिक 
रूप से

किये गये 
अपराधों के 
दंश को 

मन के
किसी 
कोने में दबा कर 

उसके ऊपर 

रंगबिरंगी 
फूल पत्तियाँ 

कुछ
बनाकर 
ढक देने से 

अपराधबोध
छिप 
कहाँ पाता है 

सहमति
के
साथ 
तोड़ मरोड़कर 

काँटों के जाल
का 
एक फूल
बना 
देने से

ना तो 
उसमें खुश्बू 
आ पाती है 

ना ही
ऐसा कोई 
सुन्दर
सा रंग

जो 
भ्रमित कर सके 
किसी को
भी 
कुछ देर
के 
लिये ही सही 

सदियां
हो गई 
इस तरह की
प्रक्रिया
को 
चलते आते हुऐ 

पता नहीं
कब से 

आगे भी
चलनी हैं 

बस
तरीके बदले हैं 
समय के साथ 

जुड़ते
चले जा रहे हैं 
इस तरह एक साथ 
अपराध दर अपराध 

जिसकी
ना किसी 
अदालत में सुनवाई 
ही होनी है

ना ही 
कोई फैसला
किसी 
को ले लेना है
सजा के लिये 

बस
शूल की तरह 
उठती हुई चुभन को 

दैनिक जीवन
का 
एक नित्यकर्म 
मानकर

सहते 
चले जाना है 
और
मौका मिलते ही 
संलग्न
हो जाना है 
कहीं
खुद

या कहीं 
किसी
समूह के साथ 
उसके दबाव
में 

करने
के लिये एक 
मान्यता प्राप्त
अपराध।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

उसके जैसा ही क्यों नहीं सोचता शायद बहुत कुछ बचता

हर आदमी
सोच नहीं रहा
अगर तेरी तरह
तो सोचता
क्यों नहीं
जरुर ही कहीं
खोट होगा
तेरी ही सोच में
सोचने की
कोशिश तो
करके देख
जरा सा
सुना है
कोशिश
करने से
भगवान
भी मिले हैं
किसी किसी
को तो
सोच मिलना
तो बहुत
ही छोटी
सी बात है
कभी कहीं
लिखा हुआ
देखा था
किसी ने
सुनाया था
या पढ़ाया था
याद नहीं है
 पर होता
होगा पक्का
क्योंकी हकीम
लुकमान की
सोचने की दवा
बनाने की विधि
में भी कुछ
ऐसा ही लिखा
हुआ साफ
नजर आता है
विश्वास नहीं होता है
तो थोड़ी देर के लिये
पुस्तकालय में जाकर
पढ़ देख कर क्यों
नहीं आ जाता है
बैठा रहता है
फालतू में
जब देखो कहीं भी
कभी भी किसी
बात पर भी
कुछ भी लिख
देने के लिये
कभी तो कुछ
सोच ही लिया कर
जैसा लोग सोचते हैं
देख तो जरा
किसी और की
तरह सोच कर
फिर पता
चलेगा तुझे भी
सोच और सोच
का फरक
क्या पता इसी
सोच की सोच
को अपना
कर कुछ
तू भी कुछ
सुधर जाये
तेरी सोच को कुछ
उनकी सोच
का जैसा ही
कुछ हो जाये
बहुत कुछ बचेगा
जब हर कोई
एक जैसा
ही सोचेगा
उसी सोच
को लेकर
हर कोई कुछ
कुछ करेगा
अच्छा नहीं
होगा क्या
एक के सोचने
के बाद किसी
और को कुछ
भी नहीं
सोचना पड़ेगा
क्योंकि लिख दिया
जायेगा कहीं पर
कि ये सोचा
जा चुका है
कृपया इस पर
सोचने की अब
कोशिश ना करें
कुछ और सोचने से
पहले भी पता करलें
और पूछ लें
कुछ सोचना
है कि नहीं ।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

आज कुत्ते का ही दिन है समझ में आ रहा था

सियार को
खेत से
निकलता
हुआ देखते ही

घरेलू कुत्ता
होश खो बैठा

जैसे
थोड़ा नहीं
पूरा ही
पागल हो गया

भौंकना शुरु
हुआ और
भौंकता ही
चला गया

बहुत देर तक
इंतजार किया
कहीं कुछ
नहीं हुआ

इधर बाहर
से किसी
ने आवाज
लगाई

सुनकर
श्रीमती जी
रसोई से ही
चिल्लाई

देख भी दो
बाहर कोई
बुला रहा है

कितनी देर से
बाबू जी बाबू जी
चिल्ला रहा है

उधर बंदरों
की टोली
ने लड़ना
शुरु किया
एक के
बाद दूसरे ने
खौं खौं
चीं चीं पीं पीं
करना शुरु किया

छत से पेड़ पर
पेड़ से छत पर
एक दूसरे
के पीछे
लड़ते मरते
कूदते फाँदते
भागना शुरु किया

उसी समय
बिजली ने
बाय बाय
कर अंधेरा
करते हुऐ
एक और
झटका दे दिया

इंवर्टर
चला कर
वापस
लौटा ही था
फोन तुरंत
घनघना उठा

बगल के
घर से ही
कोई बोल
रहा था
दो कदम
चलने से भी
परहेज कर
रहा था

टेलीफोन
डायरेक्टरी
देख किसी
का नम्बर
बताने को
बोल रहा था

झुंझुलाहट
शुरु हो
चुकी थी
मन ही मन
खीजना
मुँह के अंदर
बड़बड़ाने को
उकसा चुका था

बीस मिनट
दिमाग खपाने
के बाद भी
माँगे गये
नंबर का
अता पता
नहीं था

फोन पर
माफी मांग
थोड़ा चैन से
बैठा ही था

इंवर्टर ने
लाल बत्ती
जला कर
बैटरी डिसचार्ज
होने का
ऐलार्म बजाना
शुरु कर दिया था

कुत्ता अभी भी
पूरे जोश से
गला फाड़ कर
भौंके जा रहा था

श्रीमती जी
का
सुन्दर काण्ड
पढ़ना शुरु
हो चुका था

घंटी
बीच बीच में
कोई बजा
ले रहा था

लिखना शुरु
करते ही
जैसे पूरा
हो जा रहा था

आज इतने
में ही
सब कुछ
जैसे कह दिया
जा रहा था

बाकी सोचने
के लिये
कौन सा
कल फिर
नहीं आ
रहा था

कुत्ता
अभी भी
बिल्कुल
नहीं थका था

उसी अंदाज
में भौंकता
ही चला
जा रहा था ।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

आओ मित्र आह्वान करें तुम हम और सब ईसा का आज ध्यान करें

तुम्हारी शुद्ध आत्मा
से निकली भावनाओं
से मैं भी इत्तेफाक
रखता हूँ इसी कारण
तरह तरह के इत्र भी
अपने आस पास रखता हूँ
अच्छा है अगर चल गया
उद्गार किसी झूठ
को छिपाने के लिये
नहीं तो क्या बुरा है
कुछ इत्र छिड़क कर
चारों तरफ फैलाने में
वाकई आज का दिन
बहुत बड़ा दिन है
अवतरण होना है
ईसा को फिर से
एक बार यहां
आज ही के दिन
इस खबर की खबर
भी एक बड़ी खबर है
बड़ा दिन बड़ी आत्माऐं
बड़ी दीवार बड़ा चित्र
और कुछ बड़ी ही नहीं
बहुत बड़ी बातों को
सुनहरे फ्रेम में
मढ़ देने का दिन है
आप सर्व समावेशी
उदगारों की आवश्यकता
की बात करते हो
आज के जैसे दिनो
में ही तो उदगारों को
महिमा मण्डित कर
लेने का दिन है
साल भर के अंदर
कुछ कुछ दिनों के
अंतर में बहुत से
बड़े बड़े दिन
आते ही रहते हैं
मौके होते हैं यही
कुछ पल के ही सही
आत्ममंथन खुद का
करवाते ही रहते हैं
बहुत छोटी यादाश्त
हो चली हो जहाँ
दूसरे दिन से कहीं
आग लगाने को
माचिस खोजने को भी
हम जाते ही रहते हैं
फिर भी चलो
और कोई नहीं
तुम और मैं ही सही
उद्गारों को आत्मकेंद्रित
करें आज के दिन बस
उदगारों का व्यापार करें
सर्वज्ञ सर्वव्यापी सर्वशक्तिमान
से प्रार्थना करें
अवतरित होकर
वो आज
सारी मानवजाति
का कल्याँण करें
फिर कल से कुछ
भूलें कुछ याद करें
शुरु हो जायें हम तुम
और सब फिर से
किसी दूसरे बड़े दिन के
आने का इंतजार करें ।

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

पानी से अच्छा होता अगर दारू पर कुछ लिखवाता


हर कोई तो पानी 
पर लिख रहा है

अभी अभी का 
लिखा हुआ पानी पर
अभी का अभी
उसी 
समय जब मिट रहा है

तुझे ही पड़ी है 
ना जाने क्यों
कहता जा रहा है पानी सिमट रहा है

जमीन के नीचे 
बहुत नीचे को चला जा रहा है

पानी की बूंदे 
तक शरमा रही हैं
अभी दिख रही हैं अभी विलुप्त हो जा रही हैं
उनको पता है 
किसी को ना मतलब है ना ही शरम आनी है

सुबह सुबह की 
ओस की फोटो
तू भी कहीं लगा होगा खींचने में
मुझे नहीं लगता है 
किसी और को पानी की कहीं भी याद कोई आनी है

इधर आदमी लगा है 
ईजाद करने में
कुछ ऐसी पाईप लाइने
जो घर घर में जा कर
पैसा ही पैसा बहाने को बस रह जानी हैं

तू भी देख ना कहीं 
पैसे की ही धार को
हर जगह आजकल 
वही बात काम में बस किसी के आनी है

पानी को भी कहाँ 
पड़ी है
पानी की 
अब कोई जरूरत
आँखे भी आँखो में पानी लाने से
आँखो को ही परहेज करने को
जब कहके 
यहाँ अब जानी हैं

नल में आता तो है 
कभी कभी पानी
घर पर नहीं आता है तो कौन सा गजब ही हो जाना है
बस लाईनमैन की जेब को गरम ही तो करवाना है
तुरंत पानी ने दौड़ कर आ जाना है

मत लिया कर इतनी 
गम्भीरता से किसी भी चीज को
आज की दुनियाँ में 
हर बात नई सी जब हो जा रही है

हवा पानी आग 
जमीन पेड़ पौंधे
जैसी बातें सोचने वाले लोगों के कारण ही
आज की पीढ़ी
अपनी अलग पहचान नहीं बना पा रही है

पानी मिल रहा है पी 
कुछ मिलाना है मिला
खुश रह
बेकार की बातें मत सोच कुछ कमा धमा

होगा कभी 
युद्ध भी अगर
पानी को 
लेकर कहीं
वही मरेगा सबसे पहले
जो पैसे का नल नहीं लगा पायेगा
पैसा होगा तो वैसे भी प्यास नहीं लगेगी

पानी नहीं भी 
होगा कहीं तब भी
कुछ अजब 
गजब नहीं हो जायेगा
ज्यादा से ज्यादा 
शरम से जमीन के थोड़ा और नीचे की ओर चला जायेगा

और फिर
एक बेशरम 
चीर हरण करेगा
किसी को भी कुछ नहीं होगा
बस
पानी ही खुद में पानी पानी हो जायेगा ।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।

रविवार, 22 दिसंबर 2013

किताब पढ़ना जरुरी है बाकी सब अपने ही हिसाब से होता है

किताबों तक
पहुँच ही

जाते हैं
बहुत से लोग

कुछ नहीं भी
पहुँच पाते हैं

होता कुछ
भी नहीं है

किताबों को
पढ़ते पढ़ते
सब सीख
ही जाते हैं

किताबें
चीज कितने
काम की होती हैं

किताबों को
साथ रखना
पढ़ना ही
सिखाता है

अपनी
खुद की एक
किताब का
होना भी
कितना जरूरी
हो जाता है

एक
आदमी के
कुछ कहने
का कोई
अर्थ नहीं
होता है

क्या फरक
पड़ता है
अगर वो
गाँधी या
उसकी
तरह का ही
कोई और
भी होता है

लिखना पढ़ना
पाठ्यक्रम के
हिसाब से एक
परीक्षा दे देना

पास होना
या फेल होना
किताबों के
होने या
ना होने
का बस
एक सबूत
होता है

बाकी
जिंदगी के
सारे फैसले
किताबों से
कौन और
कब कहाँ
कभी ले लेता है

जो भी होता है
किसी की अपनी
खुद की किताब
में लिखा होता है

समय के साथ
चलता है
एक एक पन्ना
हर किसी की
अपनी किताब का

कोई जल्दी
और
कोई देर में
कभी ना कभी
तो अपने
लिये भी
लिख ही
लेता है

पढ़ता है
एक किताब
कोई भी
कहीं भी
और कभी भी

करने पर
आता है
तो उसकी
अपनी ही
किताब का
एक पन्ना
खुला होता है ।

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

जब भी कुछ संजीदा लिखने का मन होता है कोई राकेट उड़ गया की खबर दे देता है

राकेट
बना के
उड़ा देना
एक बात है

राकेट
की खबर
बना के
उड़ाना
कुछ
अलग
बात है

धरातल पर
जो कभी नहीं
होने दिया जाता है

वो सब
कहीं ना कहीं
को भिजवा
दिया गया एक
राकेट हो जाता है

अब
उड़ चुका
राकेट होता है

किसी को
नजर भी
कहीं नहीं
आ पाता है

हर तरफ
होती है खबर
राकेट के
कहीं होने की

अखबार
वाला भी
खबर लेने
राकेट के
उड़ने के
बाद ही
पहुंच पाता है

राकेट
बनाने वाला
राकेट
के बारे में
बताते हुऐ
जगह जगह
पर नजर
आ जाता है

जहाँ
खुद नहीं
पहुँच पाता है
राकेट
बनाने वाली
टीम के
सदस्य को
भिजवा
दिया जाता है

जिसे राकेट
के बारे में
पता नहीं
होता है
उसे
कुछ नहीं
आता है
कह कर
बदनाम कर
दिया जाता है

अब
राकेट
तो राकेट
होता है
धरातल में
कहीं भी
नहीं होता है

बस
खबर उड़
रही होती है
राकेट का कहीं
भी अता पता
नहीं होता है

समझने
की थोड़ी
सी कोशिश
तो करिये जनाब
कितना
अजब और
कितना
गजब होता है

राकेट
बनाने वाला
बहुत चालाक
भी होता है

राकेट के
लौट के
आने का
कहीं
इंतजाम
नहीं होता है

कितने कितने
राकेट उड़ते
चले जाते हैं

बातें होती
ही रहती हैं
वो कभी भी
कहीं भी
लौट के
नहीं आते हैं ।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

सब को आता है कुछ ना कुछ तुझे क्यों नहीं आता है

लिख देने
के बाद भी

यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है

इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है

अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी

कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है

खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है

अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका

हर कोई
समानता से
पा भी जाता है

बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की

और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको

तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है

कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब

इधर उधर के
पन्नों से कभी

जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी

बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है

एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ

ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है

जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर

बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है

अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये

तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है

'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी

उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

उधर ना जाने की कसम खाने से क्या हो वो जब इधर को ही अब आने में लगे हैं

जंगल के
सियार
तेंदुऐ
जब से
शहर की
तरफ
अपने पेट
की भूख
मिटाने
के लिये
भाग आने
लगे हैं

किसी
बहुत दूर
के शहर
के शेर का
मुखौटा लगा

मेरे शहर
के कुत्ते
दहाड़ने का
टेप बजाने
लगे हैं

सारे
बिना पूँछ
के कुत्ते
अब एक
ही जगह
पर खेलते
नजर आने
लगे हैं

पूँछ वाले
पूँछ वालों
के लिये ही
बस अब
पूँछ हिलाने
डुलाने लगे हैं

चलने लगे हैं
जब से कुछ
इस तरीके के
अजब गजब
से रिवाज

जरा सी बात
पर अपने ही
अपनों से दूरी
बनाने लगे हैं

कहाँ से चल
कर मिले थे
कई सालों
में कुछ
हम खयाल

कारवाँ बनने
से पहले ही
रास्ते बदल
बिखर
जाने लगे हैं

आँखो में आँखे
डाल कर बात
करने की
हिम्मत नहीं
पैदा कर सके
आज तक भी

चश्मे के ऊपर
एक और
चश्मा लगा
दिन ही नहीं
रात में तक
आने लगे हैं

अपने ही
घर को
आबाद
करने की
सोच पैदा
क्यों नहीं
कर पा
रहे हो
'उलूक'

कुछ आबाद
खुद की ही
बगिया के
फूलों को
रौँदने के
तरीके

अपनो को
ही सिखाने
लगे हैं ।

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

परेशान ना हो देख समय अभी आगे और क्या क्या दिखाता है

भय
मुक्त समाज

शेर
और
बकरी के

एक साथ
पानी पीने
वाली बात

ना
जाने
कब

कौन
सुना पढ़ा गया

किसी
जमाने से
दिमाग में जैसे
मार रही हों
कितनी ही लात

पता नहीं
कब से

अचानक
ऐसे
एक नाटक
का पर्दा
सामने से
उठा हुआ सा
नजर आता है

भय
निर्भय होकर
खुले आम
गली मौहल्ले में
चक्कर लगाता है
और समझाता है

बस
हिम्मत
होनी चाहिये

कुछ भी
किसी तरह भी
कभी भी कहीं भी
कर ले जाने की

डरना
क्यों और
किससे है

जब ऐसा
महसूस होता है

जैसे
सभी का ध्यान
बस भगवान की 

तरफ चला जाता है

हर कोई
मोह माया
के बंधन से
बहुत दूर जा कर
खुद की आत्मा के
बहुत पास चला आता है

और
वैसे भी डर
उस समय क्यों

जब
कुछ ही देर में
आने वाला अवतार

खुद आकर
पर्दा गिराता है

और
जब
सब के मन के
हिसाब से होता है
हैड या टेल

यहां तक
किसी का मन
ना भी होने
की स्थिति में

उसके लिये
सिक्का
टेड़े मेड़े
रास्ते पर
खुद ही जा कर
खड़ा हो जाता है

कहावत
है भी
होनहार
बिरवान के
होत चीकने पात

जब
दिखनी
शुरु हो जायें
बिल्लियाँ खुद
अपनी घंटियाँ
हाथ में लिये अपने

और
खूँखार कुत्ता
निकल कर

उनके
बगल से ही

उनको
सलाम ठोकते हुऐ
मुस्कुरा कर
चला जाता है

ऐसे
मौके पर
कोई फिर
क्यों चकराता है

और फिर
समझ में तेरे
ये क्यों नहीं आता है

क्या
गलत है
जब कुछ भी
ऐसा वैसा नहीं
कर पाने वाला

उसकी
ईमानदारी
कर्तव्यनिष्ठा
और
सच्चाई के लिये

सरे आम

किसी
चौराहे पर टाँक
दिया जाता है ।

मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कभी कभी अनुवाद करने से मामला गंभीर हो जाता है



बायोडाटा या क्यूरिक्यूलम विटे
नजदीकी और जाने पहचाने शब्द

अर्थ आज तक कभी सोचा नहीं
हाँ बनाये एक नहीं कई बार हैं

कई जगह जा कर बहुत से कागज 
बहुत से लोगों को दिखाते भी आये हैं

कोई नयी बात नहीं है 
पर आज अचानक हिंदी में सोच बैठा

पता चला
अर्थ नहीं हमेशा अनर्थ ही करते चले आये हैं
व्यक्तिवृत या जीवनवृतांत होता हो जिनका मतलब
उसके अंदर बहुत कुछ
ऊल जलूल बस बताते चले आये हैं

डेटा तक सब कुछ ठीक ठाक नजर आता है
बहुत से लोगों के पास
बहुत ज्यादा ज्यादा भी पाया जाता है

कुछ खुद ही बना लिया जाता है
कुछ
सौ पचास बार जनता से कहलवा कर
जुड़वा दिया जाता है

पर वृतांत कहते ही
डेटा खुद ही पल्टी मार ले जाता है

अपने बारे में सभी कुछ
सच सच बता देने का इशारा
करना शुरु हो जाता है

और
जैसे ही बात शुरु होती है
कुछ सोचने की वृतांत की

उसके बारे में फिर
कहाँ कुछ भी किसी से भी कहा जाता है

अपने अंदर की सच्चाई से लड़ता भिड़ता ही कोई
अपने बारे में कुछ सोच पाता है

रखता है जिस जगह पर अपने आप को
उस जगह को पहले से ही किसी और से
घिरा हुआ पाता है

आसान ही नहीं बहुत मुश्किल होता है
जहां अपने सारे सचों को
बिना किसी झूठ का सहारा लिये
किसी के सामने से रख देना

वहीं बायोडेटा किसी का 
किसी को
कहाँ से कहाँ रख के आ जाता है

इस सब के बीच
बेचारा जीवनवृतांत
कब खुद से ही उलझ जाता है
पता ही नहीं चल पाता है ।

चित्र साभार:
https://interview-coach.co.uk/5-smart-ways-social-media-can-boost-your-career-success/

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र


कल
दूरभाष
पर 

हो रही
बात पर 
पुत्र
पूछ बैठा 

पिताजी
आपकी 
लम्बी लम्बी
बातें तो 
बहुत हो जा रही हैं 

मुझे
समझ में ही 
नहीं आ रहा है 
ये क्या सोच कर 
लिखी जा रही हैं 

मैं
हिसाब 
लगा रहा हूँ 
ऐसा ही अगर 
चलता चला जायेगा 

तो
किसी दिन 
कुछ साल के बाद 

ये
इतना हो जायेगा 
ना
आगे का दिखेगा 
ना
पीछे का छोर
ही 
कहीं नजर आयेगा 

इतना
सब लिखकर 
वैसे भी
आपका 
क्या
कर ले जाने 
का इरादा है

या 
ऐसा ही
लिखते रहने 
का
आप किसी
से 
कर चुके
कोई वादा हैंं 

सच पूछिये

तो 
मेरी समझ में 

आपकी लिखी 
कोई बात 
कभी भी 
नहीं आती है 

उस
समय 
जो लोग 
आपके लिखे 
की
तारीफ
कर रहे होते हैं 

उनकी
 पढ़ाई लिखाई 
मेरी
पढ़ाई लिखाई
से 
बहुत ही ज्यादा 
आगे
नजर आती है 

ये सब
को
सुन कर 

पुत्र को
बताना 
जरूरी हो गया 

लिखने विखने
का 
मतलब समझाना 
मजबूरी
हो गया 

मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 

फिर भी
चौकन्ना 
करने की कोशिश 
उसकी
अभी भी जारी है 

रात रात
जाग जाग
कर 
भौंकना नहीं लगता 
उसे
कभी भी भारी है 

मै

और
मेरे जैसे
दो चार 
कुछ
और

इसी तरह 
भौंकते
जा रहे हैं 

कोई
सुने ना सुने 
इस बात
को

हम भी 
कहाँ
सोच पा रहे हैं 

क्या पता
किसी दिन 
सियारों
की 
टोली की तरह 

हमारी
संख्या 
भी
बढ़ जायेगी 

फिर
सारी टोली 
एक साथ
मिलकर 
हुआ हुआ
की 
आवाज लगायेगी 

बदलेगा
कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं
कभी तो 

और
यही आशा 
बहुत कुछ 
बहुत दिनों
तक 
लिखवाती
ही 
चली जायेगी 

शायद
अब मेरी बात 
कुछ कुछ
तेरी भी 
समझ में
आ जायेगी ।
चित्र साभार: 
https://www.fotosearch.com/

रविवार, 15 दिसंबर 2013

मुझ गधे को छोड़ हर गधा एक घोड़ा होता है

कोई भी
समझदार

पुराना
हो जाने पर

कभी भी
भरोसा
नहीं करता है

इसी लिये
हमेशा
लम्बी रेस
का एक
घोड़ा होता है

पुराना
होने से
बचने का
तरीका भी

बहुत ही
आसान होता है

परसों तक
माना कि
बना रहा
कहीं एक
मकान होता है

आज
के दिन
एक बहुत
माना हुआ
बड़ा किसान होता है

किसी को
नजर भर
अपने को
देखने का
मौका नहीं देता है

जब तक
समझने
में आता है

किसी को
जरा सा भी
कुछ कुछ

आज के
काम को छोड़
कल के किसी
दूसरे काम
को पकड़ लेता है

एक ही
काम से
चिपके
रहने वाला

उसके
हिसाब से
एक गधा होता है

धोबी दर
धोबी के
हाथों में
होते होते
पुराने से पुराना
होता ही रहता है

धोबी
बदल देने
वाला गधा ही
बस खुश्किस्मत होता है

होता होगा
गधा कभी
किसी जमाने में

पर आज
के जमाने का

सबसे
मजबूत घोड़ा
बस वही होता है

रोज का रोज

एक नये
काम को
नये सिरे से
जो कर लेता है

किसी
के पास
इतना बड़ा
दिमाग ही
कहाँ होता है

जो ऐसों के
किये गये
काम को
समझ लेता है

एक ही
आयाम में
जिंदगी
काटने वालों
के लिये

वही तो
एक बहुआयामी
व्यक्तित्व होता है

जिसने
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
पूरा ही नहीं
किया होता है ।

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

आँख में ही दिखता है पर बाजार में भी बिकता है अब दर्द

आँख में झाँक कर
दिल का दर्द
देख कर आ गया
मुझे पता है तू
अंदर भी बहुत सी
जगहों पर जा कर
बहुत कुछ देख सुन
कर वापस आ गया
कितना तुझे दिखा
कितना तूने समझा
मुझे पता नहीं चला
क्योंकि आने के बाद
तुझसे कुछ भी कहीं भी
ऐसा कुछ नहीं कहा गया
जिससे पता चलता
किसी को कि
तू गया तो
इतने अंदर तक
कैसे चला गया
और बिना डूबे ही
सही सलामत पूरा
वापस आ गया
जमाने के साथ
नहीं चलेगा तो
बहुत पछतायेगा
किसी दिन अंदर गया
वाकई में डूब जायेगा
वैसे किसी की
आँखों तक
नहीं जाना है
जैसी बात
किसी किताब
ने बताई नहीं है
कुऐं के मुडेर से
रस्सी से पानी
निकाल लेने में
कोई बुराई नहीं है
बाल्टी लेकर कुऐं
के अंदर भी जाते थे
किसी जमाने के लोग
पर अब कहीं भी
उस तरह की साफ
सफाई और
सच्चाई नहीं है
आ जाया कर
आने के लिये
किसी ने नहीं रोका है
पर दलदल में उतरने में
तेरी भी भलाई नहीं है
जो दिखता है
वो होता नहीं
जो होता नहीं
उसी को बार बार
दिखाने की रस्म
लगता है अभी तक
तुझे किसी ने भी
समझाई नहीं है
कितने जमाने
गुजर गये और
तुझे अभी तक
जरा सी भी
अक्ल आई
नहीं है ।

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

बात कोई नई नहीं कह रहा हूँ आज फिर हुई कहीं बस लिख दे रहा हूँ

समय के साथ
समय का मिलना
धीरे धीरे कम
होता चला गया
बच्चों से अपेक्षाओं
का ढेर कहीं
मन के कोने में
लगता चला गया
एक बूढ़ा और
एक बुढ़िया अब
अकले में
एक दूसरे से
बतियाते बतियाते
कहीं खो से जाते हैं
बात करते करते
भूल जाते हैं
बात कहाँ से
शुरु हुई थी
कुछ ही देर पहले
फिर मुस्कुराते हैं
उम्र के आखिरी
पड़ाव पर
दिखता है
कहीं असर
अपेक्षाओं
के भार का
फिर खुद बताना
शुरु हो जाते हैं
किस तरह
काटना होता है
समय को
समय की
ही छुरी से
रोज का रोज
कतरा कतरा
दिखने लगता है
कहीं दूर पर
अकेली
भटकती हुई
खुद की
परछाई भी
जैसे उन्ही
की तरह
ढूँढ रही हो
खुद को
खुद में ही
फिर बूढ़ा
देखता है
बुढ़िया के
चेहरे की
तरफ और
जवाब दे देता है
जैसे बिना कोई
प्रश्न किये हुऐ
किसी से भी
क्या सिखाया था
बच्चों को कभी
कि अ से अदब
भी होता है
नहीं सिखाया ना
मुझे पता है
सब सिखाते हैं
अ से अधिकार
और समझ आते ही
उसकी समझ में
आ जाता है
अपने लिये
अपना अधिकार
और फिर समय
नहीं बचता उसके
पास किसी और
के लिये कभी ।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

हो ही जाता है ऐसा भी कभी भी किसी के साथ भी

कभी
अचानक
उल्टी चलती
हुई एक
चलचित्र
की रील

अनायास
ही
पता नहीं
कैसे
बहुत पीछे
की ओर
निकल
पड़ती है

जब
सामने से
आता हुआ
कोई तुम्हें
देख कर
थोड़ा सा
ठिठकता
हुआ
आगे की
ओर चल
पड़ता है

बस
दो कदम
फिर
दोनो की
गर्दने
मुड़ती हैं
और
एक ही साथ
निकलता है
मुँह से
अरे आप हैं

इस बीच
दोनो
देखना
शुरु हो
चुके होते हैंं

एक दूसरे
के चेहरों पर
समय के
कुछ निशान

जैसे ढूँढ
रहे होंं
अपना सा
कुछ
जो अपने को
याद आ जाये

ऐसा कुछ
पता चले
या
खबर मिले

किसी की
कहीं से भी
पर
ऐसा होता
नहीं हैं

सारी बातें
इधर उधर
घूमती हैं
बेवजह

कुछ देर
ना वो कुछ
कह पाता है
ना ये ही
कुछ कह
लेना
चाहता है

हाथ
मिलते हैं
कुछ देर
जैसे
महसूस करना
चाह रहे
होते हैं कुछ

फिर हट
जाते हैं
अपनी अपनी
जगह

और
बाकी सब
ठीक ही
होगा पर
बात खत्म
हो जाती है

दोनो निकल
पड़ते हैं
फिर आगे
अपने
सफर पर
जैसे
कोशिश
कर रहे हों
वापस
उसी जगह
लौटने की
जहाँ पर
से पीछे
मुड़ पड़े
थे दोनो
दो दो
कदम ।

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

क्या करे कोई गालिब खयाल वो नहीं हैं अब

होते होंगे कुछ कहीं
इस तरह के खयाल
तेरे पास जरूर गालिब
दिल बहल जाता होगा
बहुत ही आसानी से
उन दिनो तेरे जमाने में
अब ना वो दिल
कहीं नजर आता है
ना ही कोई खयाल
सोच में उतरता है कभी
ना ही किसी गालिब की
बात कहीं दूर बहुत दूर
तक सुनाई देती है
ठंडे खून के दौरों से
कहाँ महसूस हो पाती है
कोई गरमाहट
किसी तरह की
चेहरे चेहरे में पुती
हुई नजदीकियां
उथले पानी की गहराई
सी दिखती है जगह जगह
मिलने जुलने उठने बैठने
के तरीकों की नहीं है
कोई कमी कहीं पर भी
वो होती ही नहीं है
कहीं पर भी बस
बहुत दूर से आई
हुई ही दिखती है
जब भी होता है कुछ
लिख देना सोच कर कुछ
तेरे लफ्जों में उतर कर
बारिश ही बारिश होती है
बस आँख ही से नमी
कुछ दूर हो आई सी
लगती है अजनबी सी
कैसे सम्भाले कोई
दिल को अपने
खयाल बहलाने के
नहीं होते हों जहाँ
जब भी सोचो तो
बाढ़ आई हुई सी
लगती है गालिब ।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

बावन पत्ते कुछ इधर कुछ उधर हंस रहा है बस एक जोकर

चिड़ी ईट पान हुकुम
बस काले और लाल
तेरह गुणा चार
इक्के से लेकर
गुलाम बेगम बादशाह
पल पल हर पल
सुबह दिन शाम
आज कल परसों
दिन महीने
साल दर साल
फिर बरसों
बस और बस
बावन तरीकों से
कुछ इधर और
कुछ उधर से
हुई उंच नीच को
बराबर करने की
जुगत में लगे लगे
बहुत कुछ बटोर कर
अंगुलियों के पोरों के
बीच छुपा लेने की
एक भरपूर कोशिश के
बावजूद सब कुछ का
छिर जाना सब कुछ
साफ साफ नजर
आते हुऐ भी
फिर से जुट जाना
भरने के लिये
अंधेरे के लिफाफे में
जैसे कुछ रोशनी
एक नहीं कई बार
ये सोच कर
कभी तो कुछ रुकेगा
कहीं जाकर रास्ते के
किसी मोड़ पर
थोड़ी देर के लिये
सुस्ताते समय ही सही
बस नहीं दिखता है
तो केवल
ताश के पत्तों के
पट्ठे के डिब्बे में से
आधा बाहर निकला
हुआ त्रेपनवां पत्ता
बहुत बेशर्मी से
मुस्कुराता हुआ ।

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

दीमक है इतनी जल्दी हरियाली देख कर कैसे हार जायेगा

सड़े हुऐ पेड़
की फुनगी पर
कुछ हरे
पत्ते दिखाई
दे रहे हैं

का समाचार लेकर
अखबारी दीमक
दीमकों की
रानी के पास
डरते डरते
जा पहुँचा

उसके मुँह पर
उड़ रही हवा
को देखकर
रानी ने अपने
मंत्री दीमक
को इशारा
करके पूछा

क्या बात है
क्या हो गया
इस को देख कर
तो लग रहा है
जैसे कहीं कोई
बहुत बड़ा तूफान
है आ बैठा

मंत्री मुस्कुराया
थोड़ा उठा
रानी जी के
नजदीक पहुँच कर
कान में फुसफुसाया

महारानी जी
कुछ भी कहीं
नहीं हुआ है
इसको थोड़ी
देर के लिये
कुछ मतिभ्रम सा
कुछ हो गया है

दो चार हरे पत्ते
पेड़ पर देख कर
क्या आ गया है

सारा जंगल हरा
हो जाने वाला है
सोच कर ही
फालतू में
चकरा गया है

आप क्यों
बेकार में
परेशान होने
जा रही हैं

कुछ मजबूत
दीमकों को
आज से
नई तरह से
काम शुरु करने
का न्योता
भेजा गया है

हमारे दीमक
इतना चाट चुके
हैं पेड़ की लकड़ी को

वैसे भी चाटने
के लिये कहीं
कुछ बचा क्या है

पुराने दीमकों को
छुट्टी पर इसलिये
कल से ही
भेज दिया गया है

नये दीमक
नई उर्जा से
चाटेंगे पेड़ के
कण कण को

यही संदेश
हर कोने कोने पर
पहुँचा दिया गया है

पीले दीमक
पीछे को
चले जा रहे हैं

लाल दीमक
झंडा अपना
अब लहरा रहे हैं

इस
बेवकूफ को
क्या पता
कहाँ कहाँ
इस युग में
क्या से क्या
हो गया है

पेड़ को भी
पता नहीं
आज ही
आज में
ना जाने
क्या हो गया है

बुझते हुऐ दिये
की जैसे एक
लौ हो गया है

चार हरे पत्तों से
क्या कुछ हो जायेगा

बेवकूफ
जानता ही नहीं

नया दीमक
लकड़ी के
साथ साथ
हरे पत्ते
सलाद
समझ कर
स्वाद से
खा जायेगा ।

रविवार, 8 दिसंबर 2013

जरूरी जो होता है कहीं जरूर लिखा होता है

क्या ये
जरूरी है

कि

कोई
महसूस करे

एक
शाम की
उदासी

और

पूछ ही ले

बात ही
बात में
शाम से

कि

वो इतनी
उदास क्यों है

क्या
ये भी
जरूरी है

कि

वो
अपने
हिस्से की

रोशनी
की बात

कभी

अपने
हिस्से के
अंधेरे से
कर ही ले

यूं ही

कहीं
किसी
एक खास
अंदाज से

शायद

ये भी
जरूरी नहीं

कर लेना

दिन की
धूप को
पकड़ कर
अपनी मुट्ठी में

और

बांट देना
टुकड़े टुकड़े

फिर
रात की
बिखरी

चाँदनी
को बुहारने
की कोशिश
में देखना

अपनी
खाली हथेली
में रखे हुऐ
चंद अंंधेरे
के निशान

और
खुद ही
देखना

करीने से
सजाने की
जद्दोजहद
में कहीं

फटे
कोने से
निकला हुआ

खुद की
जिंदगी
का एक
छोटा सा कोना

कहाँ
लिखा है

अपनी
प्रायिकताओं से

खुद
अपने आप
जूझना

और

अपने
हिसाब से
तय करना
अपनी जरूरते

होती रहे
शाम उदास

आज
की भी

और
कल
की भी

बहुत
कुछ
होता है

करने
और
सोचने
के लिये
बताया हुआ

खाली

इन
बेकार की
बातों को ही

क्यों है
रोज
का रोज
कहीं ना कहीं

इसी
तरह से
नोचना !

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मुझे तो छोड़ दे कम से कम हर किसी को कुछ ना कुछ सुनाता है

कभी कहीं किसी ऐसी
जगह चला चल जहाँ
बात कर सकें खुल के
बहुत से मसले हैं
सुलझाने कई जमाने से
रोज मुलाकात होती है
कभी सुबह कभी शाम
कभी रास्ते खासो आम
इसके उसके बारे में तो
रोज कुछ ना कुछ
सामने से आता है
कुछ कर भी
ना पाये कोई
तब भी लिख
लिखा कर
बराबर कर
लिया जाता है
तेरा क्या है तू तो
कभी कभार ही
बहुत ही कम
समय के लिये
मिल मिला पाता है
जब बाल बना
रहा होता है कोई
या नये कपड़े कैसे
लग रहे हैं पहन कर
देखने चला जाता है
हर मुलाकात में ऐसा
ही कुछ महसूस
किया जाता है
अपने तो हाल ही
बेहाल हो रहे हैं
कोई इधर दौड़ाता है
कोई उधर दौड़ाता है
एक तू है हर बार
उसी जगह पर
उसी उर्जा से ओतप्रोत
बैठा नहीं तो खड़ा
पाया जाता है
जिस जगह पर कोई
पिछली मुलाकात में
तुझे छोड़ के जाता है
बहुत कर लिये मजे तूने
उस पार आईने के
रहकर कई सालों साल
अब देखता हूँ कैसे
बाहर निकल कर के
मिलने नहीं आता है
कुछ तो लिहाज कर ले
फिर नहीं कहना किसी से
दुनियाँ भर में कोई कैसे
अपने खुद के अक्स को
इस तरह से बदनाम
कर ले जाता है ।

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

करे तो सही कोई समझौता वो करना सिखाना चाहता है

जानवर को पालतू
हो जाने में कोई
परेशानी नहीं होती है
काबू में आसानी
से आ जाता है
कोशिश करता है
सामंजस्य बैठाने की
हर अवस्था में
अगर बांध दिया
जाता है जंजीर से
तब भी मान लेता है
बंधन को और
खुश रहता है
ऐसा लगता है
क्योंकि खुल गया कभी
तो कहीं नहीं जाता है
वापस लौट आता है
लगता है जानवर को
आदमी बहुत अच्छी
तरह से समझ
में आता है
आदमी भी तो आदमी
से हमेशा सामंजस्य
बिठाना चाहता है
बराबरी की बने रहे रिश्तेदारी
इसलिये स्टूल में बैठ कर
सामने वाले को जमीन
में बैठाना चाहता है
स्टूल में बैठना बहुत
ही दुखदायी होता है
हर बात में इसी बात को
समझाना चाहता है
बना रहता है सामंजस्य
हमेशा तब तक जब तक
जमीन पर बैठा आदमी
अपने लिये भी एक
स्टूल नहीं बनवाना चाहता है
कोई स्टूल कोई रस्सी
कोई जंजीर कहीं भी
किसी को नजर
नहीं आती है
हर किसी के लिये
हर कोई एक
अलग ही तरीका
इस सब में
अपनाना चाहता है
दिखती रहे सबको
रेगिस्तान में हरियाली
समझदारी से
सारी बातों को
इशारों में ही समझा
ले जाना चाहता है
आदमी की तरह बना रहे
आदमी की तरह करता रहे
आदमी की तरह दिखता रहे
हर समय हर जगह
बस अपने सामने
अपने आस पास ही
एक जानवर जैसा ही
बना ले जाना चाहता है
इस तरह के समझौते
होते रहे आपस में
वो भी मिल जुल कर
एक का समझौता
दूसरे को कभी भूल कर भी
बताना नहीं चाहता है ।

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

किसी की लकीरों का किसी को समझ में आ जाना

कई दिन से
देख रहा हूँ
उसका एक
खाली दीवार
पर कुछ
आड़ी तिरछी
लकीरें बनाते
चले जाना
उसके चेहरे
के हाव भाव
के अनुसार
उसकी लकीरों
की लम्बाई
का बढ़ जाना
या फिर कुछ
सिकुड़ जाना
रोज निकलना
दीवार के
सामने से
राहगीरों का
कुछ का
रुकना
कुछ का
उसे देखना
कुछ का
बस दीवार
को देखना
कुछ का
उसके चेहरे
को निहारना
फिर मुस्कुराना
उसका किसी
के आने जाने
ठहरने से
प्रभावित
नहीं होना
बिना नागा
जाड़ा गरमी
बरसात
लकीरों को
बस गिनते
चले जाना
हर लकीर
के साथ
कोई ना
कोई अंतरंग
रिश्ता बुनते
चले जाना
उसकी खुशी
उसके गम
उसके
अहसासों का
कुछ लकीरें
हो जाना
सबसे बड़ी बात
मेरा कबूल
कर ले जाना
उसकी हर
लकीर का
मतलब उतना
ही उसकी
समझ के
जितना ही
समझ ले जाना
उसकी लकीरों
का मेरी अपनी
लकीरें हो जाना
महसूस हो जाना
लकीर से
शुरु होना
एक लकीर का
और लकीर पर
जा कर
पूरी हो जाना | 

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

अपना अपना देखना अपना अपना समझना हो जाता है

एक चीज मान लो
कलगी वाला एक
मुर्गा ही सही
बहुत से लोगों
के सामने से
मटकता हुआ
निकलता है
कुछ को दिखता है
कुछ को नहीं
भी दिखता है
या कोई देखना
नहीं चाहता है
जिनको देखना ही
पड़ जाता है
उनको पता
नहीं चलता है
मुर्गे में क्या
दिखाई दे जाता है
अब देखने का
कोई नियम भी तो
यहाँ किसी को
नहीं बताया जाता है
जिसकी समझ में
जैसा आता है
वो उसी हिसाब से
हिसाब लगा कर
उतना ही मुर्गा
देख ले जाता है
बात तो तब
बिगड़ती है जब
सब से मुर्गे
की बात को
लिख देने को
कह दिया जाता है
सबसे मजे में
वो आ जाता है
जो कह ले जाता है
मुर्गा क्या होता है
उसको बिल्कुल
भी नहीं आता है
बाकी सब
जिन के लिये
लिखना एक मजबूरी
ही हो जाता है
वो एक दूसरा क्या
लिख रहा है
देख देख कर भी
अलग अलग बात
लिख जाता है
देखे गये मुर्गे को
हर कोई एक मुर्गा
ही बताना चाहता है
इसके बावजूद भी
किसी के लिखे में
वो एक कौआ
किसी में कबूतर
किसी में मोर
हो जाता है
पढ़ने वाला जानता
है अच्छी तरह
कि मुर्गा ही है
जो इधर उधर
आता जाता है
लेकिन पढ़ने के
बावजूद उसकी
समझ में किसी
के लिखे में से
कुछ भी
नहीं आता है
क्या फरक
पड़ना है
'उलूक' बस यही
कह कर चले जाता है
लिखने वाला अपने
लिखे के लिये ही
जिम्मेदार माना जाता है
पढ़ने वाले का उसका
कुछ अलग मतलब
निकाल लेना उसकी
अपनी खुद की
जिम्मेदारी हो जाता है
इसी से पता चल
चल जाता है
मुर्गा देखने
मुर्गा समझने
मुर्गा लिखने
मुर्गा पढ़ने में
कोई सम्बंध
आपस में
कहीं नजर
नहीं आता है ।

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

बदतमीजी कर मगर तमीज से नहीं तो आजादी के मायने बदल जाते हैं

वो
करते
थे सुना

गुलामी
की बात

जो
कभी
आजाद
भी हो गये थे

कुछ
बच गये थे

आज
भी हैं
शायद
कहीं
इंतजार में

बहुत सारे
मर खप भी
कभी के गये थे

ऐसे ही
कुछ
निशान

आजादी
के कुछ

गुलामी
के कुछ

आज भी
नजर कहीं
आ ही जाते हैं

कुछ
खड़ी
मूर्तियाँ

शहर
दर शहर
चौराहों पर

कुछ
बैठे बूढ़े
लाठी लिये

खेतों के लिये
जैसे वजूका
एक हो जाते है

पर
कौए
फिर भी
बैठ ही
कभी जाते हैं

कोई
नहीं देखता
उस तरफ
कभी भी

मगर
साल
के किसी
एक दिन

रंग
रोगन कर
नये कर
दिये जाते हैं

देख सुन
पढ़ रहे होंं
सब कुछ

आज भी

आज को
उसी अंदाज में

देखो
उनकी
तरफ तो
नजर से
नजर मिलाते
नजर आ जाते हैं

बदतमीजी

बहुत
हो रही है
चारों तरफ

बहुत
ही तमीज
और बहुत
आजादी के साथ

बस
दिखता है
इन्ही को

समझते
भी ये
हैं सब

बाकी तो
आजाद हैं

कुछ
इधर से
निकलते
हैं उनके

कुछ
उधर से
भी निकल
जाते हैं ।

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है

अब बातें
तो बातें है

कुछ भी
कर लो

कहीं भी
कर लो

मुसीबत

तो तब
हो जाती है

जब बातें

दो
अलग अलग
तरह की

सोच रखने
वालों के
बीच हो
जाती हैंं

बातें

सब से
ज्यादा
परेशान
करती हैंं

एक
जमीन
से जुड़ने
की कोशिश
करने वाले
आदमी को

जो
कभी
गलती से

हवा
में बात
करने
वालों मेंं

जा कर
फंस
जाता है

ना उड़
पाता है
ना ही
जमीन पर
ही आ
पाता है

जो हवा
में होता है

उसे क्या
होता है

खुद हवा
फैलाता है

बातों
को भी
हवा में
उड़ाता है

हवा में
बात करने
वाले को
पता होता है

कुछ ऐसा
कह देना है

जो
कभी भी
और
कहीं भी
नहीं होना है

जो
जमीनी
हकीकत है

उससे
किसी
को क्या
लेना होता है

पर
बस
एक बात
समझ में
नहीं आती है

हवा
में बात
करने वालों
की टोली

हमेशा

एक
जमीन
से जुड़े
कलाकार को

अपने
कार्यक्रमों का
हीरो बनाती है

बहुत सारी
हवा होती है

इधर भी
होती है

उधर भी
होती है

हर चीज
हवा में
उड़ रही
होती है

जब
सब कुछ
उड़ा दिया
जाता है

हर एक
हवाबाज
अपने अपने
धूरे में जाकर
बैठ जाता है

जमीन से
जुड़ा हुआ

बेचारा

एक
जोकर
बन कर

अपना
सिर खुजाता हुआ

वापस
जमीन
पर लौट
आता है

एक
सत्य को
दूसरे सत्य से
मिलाने में

अपना जोड़
घटाना भी
भूल जाता है

पर
क्या किया जाय

आज
हवा बनाने
वालों को ही
ताजो तख्त
दिया जाता है

जमीन
की बात
करने वाला

सोचते सोचते

एक दिन
खुद ही
जमींदोज
हो जाता है ।