उलूक टाइम्स: जुलाई 2017

सोमवार, 31 जुलाई 2017

काला पूरा काला सफेद पूरा सफेद अब कहीं नहीं दिखेगा

शतरंज की
काली सफेद
गोटियाँ
अचानक
अपने डिब्बे
को छोड़ कर
सारी की सारी
बाहर हो गयी हैं

दिखा रही हैं
डिब्बे के
अन्दर साथ
रहते रहते
आपस में
हिल मिल कर
एक दूसरे में
खो गयी हैं

समझा
रही हैं
तैयार हैं
खुद ही
मैदान में
जाने के लिये

आदेशित
नहीं की
गयी हैं
विनम्र
होते होते
खुद ही
निर्देशित
हो गयी हैं

कुछ काली
कुछ सफेद के
साथ इधर
की हो गयी हैं
कुछ सफेद
कुछ काली के
साथ उधर
को चली गयी हैं

अपने खेल
गोटियाँ अब
खुद खेलेंगी
चाल चलने
वालों को
अच्छी तरह से
समझा गयी हैं

घोड़े ऊँठ
और हाथी
पैदल वजीर
के साथी
सोचना छोड़ दें
पुराना खेल
खेलने के आदी

हार जीत
की बात
कोई नहीं
करेगा
भाईचारे के
खेल का
भाईचारा
भाई का भाई
अपने अखबार में
कम्पनी के लिये नहीं
खिलाड़ियों के
लिये ही
बस और बस
लिखता
हुआ दिखेगा

खेल का
मैदान भी
काले सफेद
खानों में
नहीं बटेगा

आधे
सफेद खाने
के साथ आधा
काला खाना भी
बराबरी के साथ
कंधे से कंधा
मिलाता
हुआ दिखेगा

 जातिवाद
क्षेत्रवाद
आतंकवाद
इसी तरह से
खेल खेल में
शतरंज के
खेल को
उसी की
गोटियों के हाथ
स्वतंत्रता के साथ
खेलने देने के हक
दे डालने के बाद
से मिटता हुआ
अपने आप दिखेगा

‘उलूक’
समझ ले
हिसाब किताब
पीछे पीछे कुछ भी
नहीं अब चलेगा

इस सब
के बाद
काला काले
के लिये ही
और सफेद
सफेद के
लिये ही नहीं

काला सफेद
के लिये और
सफेद काले
के लिये भी
आसानी से
सस्ते दामों में
खुली बाजार में
बिकता हुआ दिखेगा ।

चित्र साभार: 123RF.com

रविवार, 23 जुलाई 2017

अपना सच कह देना अच्छा है ताकि सनद रहे

बहुत अच्छा
लगता है

जब अपने
मोहल्ले की
अपनी गली में

अपने जैसा ही
कोई मिलता है
अपनी तरह का
अपने हाथ
खड़े किये हुऐ

उसे भी
वो सब
पता होता है
जितना तुम्हें
पता होता है

ना तुम
कुछ कर
पाते हो
ना वो
कुछ कर
सकता है

हाँ
दोनों की
बातों की
आवृति
मिलती है
दो सौ
प्रतिशत

फलाँ
चोर है
फलाँ
बिक
गया है
फलाँ
बेच
रहा है
फलाँ
बेशरम है

हाँ
हो रहा है
पक्का

अजी
बेशरमी से
शरम है
ही नहीं

लड़कियों
को फंसा
रही है वो

बहुत
गन्दे खेल
चल रहे हैं

नाक ए है
कहते हैं
आप लोग

ना जी ना
अखबार में
नहीं आ
सकती हैं
ये सब बातें

नौकरी का
सवाल हुआ

कोई नहीं
तुम अपने
अखबार में
लिखते रहो
अपने फूलों
के लड़ने
की खबरें
उनकी
खुश्बुओं
पर खुश्बू
छिड़क कर

हम तो
लिखते
ही हैं
बीमार हैं

जरूरी है
लिखनी
अपनी
बीमारी
इलाज
नहीं है
कर्क
रोग का
जानते हुऐ

अच्छा लगा
मिलकर

दो भाइयों
का मिलन
हाथ खड़े
किये हुऐ ।

चित्र साभार: Shutterstock

सोमवार, 17 जुलाई 2017

फेस बुक मित्र के मित्रों के मित्रों के गिरोहों की खबरें

गिरोह
गिरोह की
बात करें

देखें
समझें
एक दूसरे को
आदाब करें

किसने
रोका है


खामखा
अकेले
चने को

भीड़ की
खबरें
दिखा कर

उसकी
शामें तो
ना बरबाद करें

माना कि
जमीन से
कुछ उठाने
के लिये
झुकना बहुत
जरूरी है

मिल कर झुकें
हाथ में हाथ
डाल कर झुकें

उठा लें
सारा
सब कुछ
मिल बाँट कर

मिट्टियाँ
अपने अपने
खेतों के नाम करें

सर उठा
कर जीने दें
एक दो पैर पर
खड़े इन्सान को

काट लें
बहुत जरूरी हो
सर कलम का
अगर मजबूरी हो

अपनी
खुद की
आँखों में

किसी
के शर्मसार
होने का ना
इन्तजाम करें

आपका
पन्ना है
आपके
दोस्त हैं

जो
करना है करें
कल्तेआम करें

जो
नहीं चाहता है
शामिल होना
गिरोहों के
जलसों
की खबरों में

उसके
पन्नों में
ले जा जाकर
खबरें अपनी

विज्ञापन
अपने अपने
धन्धों के
ना सरे आम करें

‘उलूक’
की आदत है
दिन के अंधेरे में
नहीं देखने के
बहाने लिखना

लिखने दें
भाड़ नहीं
फोड़ सकने
की खिसियाहट
उसे भी थोड़ी

मिल जुल कर
करें चीर हरण

खबर
अर्जुन ने
किया
बलात्कार

या फिर
कन्हैया
के ही
नाम करें।

चित्र साभार: Chatelaine

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

अपनी अपनी लकीरें

तुझे अपनी
खींचनी हैं
लकीरें

मुझे अपनी
खींचने दे

मैं भी
आता हूँ
देखने
तेरी लकीरें

तू भी
बिना नागा
आता रहा है

लकीरें
समझने
आता है
कोई या
गिन कर
चला
जाता है
पता नहीं
चलता है

फिर भी
आना जाना
लगा रहता है
क्या कम है

लकीरें
खींचने वाला
आने जाने
वालों की
गिनती से
अपनी लकीरों
को गिनना
शुरु नहीं
 कर देता है

लकीरें खींचना
मजबूरी होती है

लकीरें
सब की होती हैं

कौन किस
लकीर का
किस तरह
से उपयोग
कर ले
जाता है
उसे ही
पता होता है

कान नाक
और आँख
सबकी
एक जैसी
दिखती हैं
पर होती
नहीं हैं

कुछ दिखाना
पसन्द करते हैं
कुछ छिपाना
पसन्द करते हैं

पर खेल
सारा लकीरों
का ही है

तेरी लकीर
मेरी लकीर से
कितनी लम्बी
कितनी सीधी
या ऐसा कुछ भी

अपनी अपनी
लकीरें ले कर
दूसरों की
लकीरों को
तव्वजो
दे लेना
बहुत बड़ी
बात है

लकीरें
समझने
के लिये
होती भी
नहीं हैं

इसीलिये
‘उलूक’
भी लकीरें
पीट रहा
है अपनी

अब किसी
की लकीर
बड़ी हो
जाती है
किसी की
सीधी हो
जाती है

कोई बात
नहीं है
अगली
 लकीर में
 संशोधन
किया जा
सकता है

लकीरबाजों
को ठंड
रखनी भी
जरूरी है ।

चित्र साभार: notimerica.com960

शनिवार, 8 जुलाई 2017

बदचलन होती हैं कुछ कलमें चलन के खिलाफ होती हैं

 
खासों में आम सहमति से होती हैं कुछ खास बातें
कहीं किसी किताब में नहीं होती हैं

चलन में होती हैं कुछ पुरानी चवन्नियाँ और अठन्नियाँ
अपनी खरीददारियाँ अपनी दुकानें अपनी ही बाजार होती है

होती हैं लिखी बातें पुरानी सभी हर बार 
फिर से लिख कर सबमें बाँटनी होती हैं

पढ़ने के लिये नहीं होती हैं कुछ किताबें
छपने छपाने के खर्चे ठिकाने लगाने की रसीद काटनी होती हैं

लिखी  होती हैं किसी के पन्ने में हमेशा कुछ फजूल बातें
कैसे सारी हमेशा ही घर की हवा के खिलाफ होती हैं

कलमें भी बदचलन होती हैं ‘उलूक’
नियत भी किसी की खराब होती है ।

चित्र साभार: 123RF.com

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

श्रद्धांजलि कमल जोशी

आप भी
शायद नहीं
जानते होंगे
कमल जोशी 
को

मैं भी नहीं
जानता हूँ

बस उसकी
और
उसकी तस्वीरों
से कभी कभी
मुठभेड़ हुई है

कोई खबर
ले कर
नहीं आया हूँ
बस लिख
रहा हूँ

खबर
मिली है
वो अब
नहीं है
क्यों नहीं है
पता नहीं है

सुना गया है
लटके मिले हैं
लटके या
लटकाया गया
पता नहीं है

सुना है
समाज के लिये
बहुत सोचते थे
किस समाज
के लिये
मुझे पता नहीं है


मेरी दिली
इच्छा थी
ऐसी कई
फजूल
इच्छायें
होती हैं

उसको
जानने की

बस इतना
पता करना था
उसका समाज
और मेरा समाज
एक ही है
या कुछ अलहदा

बातें हैं

बहुत
से लोग
मरते हैं
घर में
मोहल्ले में
शहर में
और
समाज में

घर से
मोहल्ले से
समाज तक
पहुँचने से
पहले
भटक जाना
अच्छी बात
नहीं होती है

उसके
अन्दर भी
कोई
आग होगी

ऐसा मैंने
नहीं कहा है
लोग
कह रहे हैं

अन्दर की
नमी में
आग भी
शरमा कर
बहुत बार
खुद ही
बुझ लेती है

सब में
इतनी हिम्मत
कहाँ होती है

अब हिम्मत
उसकी
खुद की थी
या समाज की
खोज का
विषय है

तुम्हारे मरने
के बाद
पता चला कि
तुम भी
रसायन विज्ञान
के विद्यार्थी रहे थे

तुम्हारे अन्दर
क्या चल रहा था

लोग तुम्हारे
जाने के बाद
कयास
लगा रहे हैं

‘उलूक’ की
श्रद्धांजलि
तुम्हें भी
और उस
समाज के
लिये भी
जो तुम्हें
रोक भी
नहीं सका ।

शनिवार, 1 जुलाई 2017

चिट्ठाकार चिट्ठाकारी चिट्ठे और उनका अपना दिन एक जुलाई आईये अपनी अपनी मनायें


चिट्ठा 
रोज भी लिखा जाता है 

चिट्ठा 
रोज 
नहीं भी लिखा जाता है 

इतना कुछ
होता है आसपास 

एक के नीचे 
तीन 
छुपा ले जाता है 

मजबूरी है 
अखबार की भी 

सब कुछ 
सुबह लाकर 
नहीं बता पाता है 

लिखना लिखाना 
पढ़ना पढ़ाना 
एक साथ एक जगह 
होता 
देखा जाता है 

चिट्ठाकारी 
सबसे बड़ी है 
कलाकारी 

हर कलाकार 
के 
पास होता है 
पर्दा खुद का 

खुद ही खोला 
खुद ही 
गिराया जाता है 

खुद छाप लेता है 
रात को 
अखबार अपना 

सुबह 
खुद ही पढ़ने 
बिना नागा 
आया जाता है 

अपनी खबर 
आसानी से छपने की 
खबर मिलती है 

कितने लोग 
किस खबर 
को
ढूँढने 

कब निकलते है

बस यही अंदाज 
यहाँ
नहीं लगाया 
जाता है 

जो भी है 
बस लाजवाब है 
चिट्ठों की दुनियाँ

‘उलूक’ 
अपनी लिखी किताब
खुद बाँचना

यहाँ के अलावा 
कहीं और
नहीं 
सिखाया जाता है । 

“ हैप्पी ब्लॉगिंग” 

चित्र साभार: Dreamstime.com