उलूक टाइम्स

बुधवार, 23 नवंबर 2016

सब नहीं लिखते हैं ना ही सब ही पढ़ते हैं सब कुछ जरूरी भी नहीं है लिखना सब कुछ और पढ़ना कुछ भी


मन तो बहुत होता है 
खुदा झूठ ना बुलाये 

अब खुदा बोल गये 
भगवान नहीं बोले 
समझ लें 

मतलब वही है 
उसी से है जो कहीं है 
कहीं नहीं है 

सुबह 
हाँ तो बात 
मन के बहुत 
होने से शुरु हुई थी 

और 
सुबह सबके साथ होता है 
रोज होता है वही होता है 

जब दिन शुरु होता है 
प्रतिज्ञा लेने जैसा 
कुछ ऐसा 
कि 
राजा दशरथ का प्राण जाये 
पर बचन ना जाये जैसा 

जो कि 

कहा जाये तो सीधे सीधे 
नहीं सोचना है आज से 
बन्दर क्या उसके पूँछ 
के बाल के बारे में भी 
जरा सा

नहीं बहुत हो गया 
भीड़ से दूर खड़े 
कब तक खुरचता रहे कोई 
पैर के अँगूठे से
बंजर जमीन को 
सोच कर उगाने की 
गन्ने की फसल 
बिना खाद बिना जल 

बोलना बोलते रहना 
अपने को ही
महसूस कराने लगे अपने पूर्वाग्रह 

जब 

अपने आसपास अपने जैसा 
हर कोई अपने साथ बैठा 
कूड़े के ढेर के ऊपर 
नाचना शुरु करे गाते हुऐ भजन 
अपने भगवान का 
भगवान मतलब खुदा से भी है 
ईसा से भी है 
परेशान ना होवें 

नाचना कूड़े की दुर्गंध 
और 
सड़ाँध के साथ 
निर्विकार होकर

पूजते हुऐ जोड़े हाथ


समझते हुऐ 


गिरोहों से अलग होकर 
अकेले जीने के खामियाजे 


‘उलूक’ 
मंगलयान पहुँच चुका होगा 

मंगल पर 

उधर देखा कर 
अच्छा रहेगा तेरे लिये 


कूड़े पर बैठे बैठे 
कब तक सूँघता रहेगा दुर्गंध 


वो बात अलग है 
अगर नशा होना शुरु हो चुका हो 


और 


आदत हो गई हो 


सबसे अच्छा है 
सुबह सुबह फारिग होते समय 

देशभक्ति कर लेना 

सोच कर तिरंगा झंडा 
जिसकी किसी को याद 
नहीं आ रही है इस समय 
क्योंकि देश व्यस्त है 
कहना चाहिये कहना जरूरी है ।

चित्र साभार: All-free-download.com