उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 29 जून 2018

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के साथ साथ बहुत जरूरी है थोड़ा थोड़ा बेटी धमकाओ भी

पता नहीं
क्या क्या
उल्टा सीधा
देख सुन कर
आ जा रहा है

चुपचाप
बैठ ले रहा था
कुछ दिन के लिये
बीच बीच में इधर

फिर से
जरा सा में
सनक जा रहा है

कोई
क्यों नहीं
समझा रहा है

बेटी बेटी
नहीं कही
जा सकती है

जब उम्र
पचास पचपन
के पार
हो जाती है

बेटी की
बेटियाँ पैदा
हो जाती हैं

उम्र के
किसी मोड़
पर जा कर
माँग भी
उजड़ जाती है

सुगम के
सपने
देखते देखते
दुर्गम की
कठिन हवा धूप
में सूख जाती है

ऐसी महिला को
कैसे सोच रहा है

लक्ष्मीबाई
खुद को मान
लेने का हक

बेटी पढ़ाओ
बेटी बचाओ
के नारों के
जमाने में

फालतू में
यूँ ही मिल
जा रहा है

अखबार
रेडियो दूरदर्शन
सब देख रहे हैं
सब सही हो रहा है
इनमें से कोई भी
उसके लिये
रोने नहीं जा रहा है

बेटी
कहलवाने
का भाव उसके
सनकी हो गये
दिमाग में से
नहीं निकल
पा रहा है
उसकी समस्या है

तू किसलिये
फनफना रहा है
अगर कोई
बेटी
धमका रहा है

ठन्ड रख
उसके सनकने
का दण्ड भी उसे
निलम्बित कर के
दिया जा रहा है

बहुत सही
हो रहा है
‘उलूक’
तेरे सनकने
के लिये रोज
एक ना एक
बखेड़ा

जरूरी किताब
के जरूरी पाठ
का एक जरूरी
दोहा हो जा रहा है।

चित्र साभार: https://drawingismagic.com