उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

होते होते नहीं मजा तो है होने के बाद कुछ देर में कुछ कुछ कहने का


दिन भर की बौखलाहटें 
उथल पुथल हुई सोच 

बारिश के बाद के
छोटे छोटे नाले 
मटमैला पानी उथली नदी 
कंकड़ पत्थर धूल धक्कड़ का साम्राज्य 

पारदर्शी जल के
ज्ञान के दर्शन का हरण 
थोड़ी खलबली कठिन एक परीक्षा 
जल की खुद की हलचल की समीक्षा 

बस इंतजार और इंतजार 
ठहराव तक सवरने का 
मिलावट के कुछ कर गुजरने का 
मिट्टी के दूर तक कहीं बहने का 

पत्थर का गहराई में जा ठहरने का
आहिस्ता आहिस्ता 
तमाशा जल के भरे पूरे यौवन के खिलने का 

एक दिन की बात नहीं
रोज का काम 
एक कफन में एक जेब सिलने का 

पता चलना
उसी तरह उथले पानी के निथरने का 
दिखना शुरु होना आर पार 

खबर छपना
ढके हुऐ सब कुछ के पारदर्शी होने का 
अंदाज वही हर बार की तरह 
वैसा हमेशा सही

कभी ऐसा भी 
कभी कभी कहीं कहीं 
कह लेने का । 

चित्र: गूगल से साभार ।