किसी
छुट्टी के दिन
छुट्टी के दिन
सोचने की भी
छुट्टी कर लेने
की सोच लेने में
क्या बुरा हो रहा है
सोच के
मौन हो जाने का
सपना देख लेने से
किसी को कौन कहाँ रोक रहा है
अपने
अंदर की बात
अपने अंदर ही
दफन कर लेने से
दफन कर लेने से
कफन की बचत भी हो जाती है
दिल
अपनी जगह से
चेहरा अपनी जगह से
अपने अपने हिसाब का
हिसाब किताब
खुद ही अगर कर ले रहा है
खुद ही अगर कर ले रहा है
रोज ही
मर जाती हैं कई बातें सोच की
भगदड़ में दब दबा कर
बच बचा कर
बाहर भी आ जाने से भी
कौन सा उनके लिये
कहीं जलसा
स्वागत का कोई हो रहा है
कहीं जलसा
स्वागत का कोई हो रहा है
कई बार पढ़ दी गई
किताबों के कपड़े
ढीले होना शुरु हो ही जाते हैं
ढीले होना शुरु हो ही जाते हैं
दिखता है
बिना पढ़े
सँभाल के रख दी गई
एक किताब
का
एक एक पन्ना
चिपके हुऐ एक दूसरे को
बहुत प्यार से छू रहा है
जलने
क्यों नहीं देता
किसी दिन दिल को
कुछ देर के लिये यूँ ही ‘उलूक’
भरोसा रखकर
तो देख किसी दिन
राख
हमेशा नहीं बनती हर चीज
हमेशा नहीं बनती हर चीज
सोचने में क्या जाता है
जलता हुआ दिल है
और पानी
बहुत जोर से कहीं से चू रहा है
और पानी
बहुत जोर से कहीं से चू रहा है
सोचने की छुट्टी
किसी एक छुट्टी के दिन
सोच लेने से
कौन सा क्या
कौन सा क्या
इसका उसका कहीं हो रहा है ।
चित्र साभार: http://www.gograph.com