उलूक टाइम्स

रविवार, 28 सितंबर 2014

इसकी उसकी करने का आज यहाँ मौसम नहीं हो रहा है


किसी
छुट्टी के दिन 

सोचने की भी
छुट्टी कर लेने
की सोच लेने में
क्या बुरा हो रहा है 

सोच के
मौन हो जाने का
सपना देख लेने से 
किसी को कौन कहाँ रोक रहा है 

अपने
अंदर की बात 
अपने अंदर ही
दफन कर लेने से 
कफन की बचत भी हो जाती है 

दिल
अपनी जगह से
चेहरा अपनी जगह से 
अपने अपने हिसाब का 
हिसाब किताब
खुद ही अगर कर ले रहा है 

रोज ही
मर जाती हैं कई बातें सोच की
भगदड़ में दब दबा कर 

बच बचा कर
बाहर भी आ जाने से भी 
कौन सा उनके लिये
कहीं जलसा
स्वागत का कोई हो रहा है 

कई बार पढ़ दी गई 
किताबों के कपड़े
ढीले होना शुरु हो ही जाते हैं 

दिखता है
बिना पढ़े
सँभाल के रख दी गई 

एक किताब
का
एक एक पन्ना 

चिपके हुऐ एक दूसरे को
बहुत प्यार से छू रहा है 

जलने
क्यों नहीं देता
किसी दिन दिल को
कुछ देर के लिये यूँ ही ‘उलूक’ 

भरोसा रखकर
तो देख किसी दिन
राख
हमेशा नहीं बनती हर चीज 

सोचने में क्या जाता है
जलता हुआ दिल है
और पानी
बहुत जोर से कहीं से चू रहा है 

सोचने की छुट्टी
किसी एक छुट्टी के दिन 
सोच लेने से

कौन सा क्या 
इसका उसका कहीं हो रहा है । 

चित्र साभार: http://www.gograph.com