उलूक टाइम्स

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

आशा का एक दिया जलाना है जरूरी सोच में ही जलायेंगे

एक ही सच
से हट कर
कभी सोचें
कुछ देर के
लिये ही सही
जरूरी है
सोचना
एक दिया
और उससे
बिखरती रोशनी
अपने ही
अंदर कहीं
पालना और
बचाना भी
सोच की ही
हवा के थपेड़ों से
बहुत सारे हों
बहुत रोशनी हो
जरूरी नहीं है
एक ही हो
छोटा सा ही हो
मिट्टी से बना
ना भी हो
तेल भी नहीं
और बाती
भी नहीं हो
बस जलता
हुआ हो
सोच की
ही लौ से
सोच की ही
रोशनी हो
जरूरी है
झूठ से भरे
बाहर के दिये
बेचते हुऐ
रोशनी हर जगह
दीपावली आयेगी
दीपावली जायेगी
बाजार दीपों
के जलेंगे
रोशनी के लिये
रोशनी में ही
रोशनी से बिकेंगे
समेट कर रोशनी
के धन को कुछ
रोशनी से
चमक उठेंगे
रोशनी सिमट जायेगी
रोशनी में ही कहीं
कुछ देर में ही
दिये भी समेटे जायेंगे
बहुत जरूरी है
दिया अंतर्मन का
जला रहना
अगले साल की
दीपावली में
नहीं तो शायद
दिये जलाना भी
क्या पता
भूल जायेंगे
दिया एक
सोच का
सोच में जला
रहना जरूरी है बहुत
जलायेंगे तो ही
समझ पायेंगे ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com