शुरु के सालों में
होश ही नहीं था
बीच के सालों में
कभी पुराने साल
को जाते देख
अफसोस करते
और
नये साल को
आते देख
मदहोश होकर
होश खोते खोते
पता ही नहीं चला
कि
बहुत कुछ खो गया
रुपिये पैसे की
बात नहीं है
पर बहुत कुछ
से कुछ भी
नहीं होते होते
आदमी
दीवालिया हो गया
पता नहीं
समझ नहीं पाया
उस समय समझ थी
या
अब समझ खुद
नासमझ हो गई
साल के
बारहवें महीने
की अंतिम तारीख
आते समय
कुछ अजीब अजीब
सी सोच
सबकी होने लगी है
या
मेरे ही दिमाग
की हालत
कुछ ऐसी
या वैसी
हो गई है
पुराने साल
को हाथ से
फिसलते देख
अब रोना
नहीं आता है
नये साल के
आने की
कोई खुशी
नहीं होती है
हाथ में
आता हुआ
एक नया हाथ
जैसे पकड़ा
जाता नहीं है
पता होता है
तीन सौ
पैंसठ दिन
पीछे के
जाने ही थे
चले गये हैं
तीन सौ पैंसठ
आगे के आने है
आयेंगे ही शायद
आना शुरु हो गये हैं
खड़ा भी
रहना चाहो
बीच में
सालों के
बिना
इधर हुऐ
या बिना
उधर हुऐ ही
ऐसा किसी
से किया
जाता नहीं है
इक्तीस की रात
कही जा रही है
कई जमानों से
कत्ल की रात
यही राज तो
किसी के
समझ में
आता नहीं है
जिसके आ
जाता है
वो भी
समझाता नहीं है ।
चित्र साभार: community.prometheanplanet.com
होश ही नहीं था
बीच के सालों में
कभी पुराने साल
को जाते देख
अफसोस करते
और
नये साल को
आते देख
मदहोश होकर
होश खोते खोते
पता ही नहीं चला
कि
बहुत कुछ खो गया
रुपिये पैसे की
बात नहीं है
पर बहुत कुछ
से कुछ भी
नहीं होते होते
आदमी
दीवालिया हो गया
पता नहीं
समझ नहीं पाया
उस समय समझ थी
या
अब समझ खुद
नासमझ हो गई
साल के
बारहवें महीने
की अंतिम तारीख
आते समय
कुछ अजीब अजीब
सी सोच
सबकी होने लगी है
या
मेरे ही दिमाग
की हालत
कुछ ऐसी
या वैसी
हो गई है
पुराने साल
को हाथ से
फिसलते देख
अब रोना
नहीं आता है
नये साल के
आने की
कोई खुशी
नहीं होती है
हाथ में
आता हुआ
एक नया हाथ
जैसे पकड़ा
जाता नहीं है
पता होता है
तीन सौ
पैंसठ दिन
पीछे के
जाने ही थे
चले गये हैं
तीन सौ पैंसठ
आगे के आने है
आयेंगे ही शायद
आना शुरु हो गये हैं
खड़ा भी
रहना चाहो
बीच में
सालों के
बिना
इधर हुऐ
या बिना
उधर हुऐ ही
ऐसा किसी
से किया
जाता नहीं है
इक्तीस की रात
कही जा रही है
कई जमानों से
कत्ल की रात
यही राज तो
किसी के
समझ में
आता नहीं है
जिसके आ
जाता है
वो भी
समझाता नहीं है ।
चित्र साभार: community.prometheanplanet.com